नमो नारायण…महर्षि भृगु द्वारा रचित ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों का अवलोकन किया गया है.जिनमें 21 नक्षत्र उत्तम श्रेणी में आते है तथा 06 निकृष्ट श्रेणी आते है,इन निकृष्ट/कष्ट कारक नक्षत्रों को ही मूल/गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है,शुभ और अशुभ नक्षत्र अपना उत्तम तथा अधम प्रभाव प्रदान करते हैं.मूल/गण्डमूळ नक्षत्र में जन्में जातक/जातिकाओं के माता पिता सहित स्वयं को अधिक सन्घर्ष करना पड़ता हैं
यह नक्षत्र दो राशियों की संधि पर होते हैं, एक नक्षत्र के साथ ही राशि समाप्त होती है और दूसरे नक्षत्र के आरंभ के साथ ही दूसरी राशि आरंभ होती है.!
संधिकाल को सदैव ही अशुभ और कष्टकारक माना जाता रहा है.जैसे ऋतुओं के संधिकाल में रोगों की उत्पत्ति होती है.दिन एवं रात्रि के संधिकाल में केवल प्रभु की आराधना की जाती है.घर की दहलीज पर भी कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.यही कारण है कि बालक के जन्म लेते ही सर्वाधिक चिंता माता-पिता को बालक के जन्म-नक्षत्र के बारे में होती है.।
जातक/जातिका जन्म लेता है.वैसे ही उसके जन्म नक्षत्र के बारे में अवश्य जान लेना चाहते हैं कि कहीं उक्त बालिका/बालक का जन्म गंडमूल नक्षत्र में तो नहीं है..? यदि गंडमूल में है तो घोर मूल में तो नहीं है..? क्योंकि अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूला तथा रेवती नक्षत्रों में उत्पन्न बालक का मुंह देखना पिता के लिए हानिकारक होता है.इस प्रकार के संधि कालों में शुभ कार्य, विवाह व यात्रा आदि वर्जित माने जाते हैं.।
बुध व केतु के नक्षत्रों को गंडमूल नक्षत्रों में शामिल किया गया है.मीन-मेष,कर्क-सिंह,वृश्चिक-धनु राशियों में गंडमूल नक्षत्र होता है.I
रेवती, अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा तथा मूल नक्षत्र को गंडमूल नक्षत्र माना जाता है.इन नक्षत्रों में से किसी एक में भी शिशु के जन्म लेने पर बच्चा माता,पिता तथा स्वयं पर कष्टकारी मन जाता है.।
इसके लिए बच्चे के जन्म नक्षत्र के पुनरावृत्ति तक़रीबन 27वें दिन उक्त नक्षत्र शांति पूजा का विधान है जिससे उस गंडमूल नक्षत्र के दुष्प्रभाव से निबृत्ति प्राप्त हो सके.I
गंडमूल नक्षत्र छ: प्रकार के होते है और उनके नाम कुछ इस प्रकार है :-
01.अश्विनी
02.अश्लेषा
03.मघा
04.ज्येष्ठा
05.मूल
06.रेवती
गंडमूल नक्षत्र में जन्में बच्चे का प्रभाव माता-पिता और स्वयं पर क्या होता है…? इनका प्रभाव कुछ इस तरह से होता हैं :-
-:स्वास्थ्य मे दिक्क्त होना।
-:माता पिता को कष्ट व आयु भय।
-:जीवन में नकारात्मक प्रभाव तथा संघर्ष।
-:दुर्घटना भय या जीवन में कष्टदायी स्थिति बनती हैं।
-:दरिद्रता और भाग्यहीनता का भय।
-:घर-परिवार और भाग्य को भी प्रभावित करता है।