श्रीगणेश चतुर्थी विशेषाङ्क

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

श्रीगणेश चतुर्थी विशेषाङ्क
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श्री गणेशाय नमः…फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है,इस वर्ष फाल्गुन मास की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 9 फरवरी दिन गुरुवार को रखा जा रहा है,धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन विधि-विधान से गौरी पुत्र श्री गणेश की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं,ऐसा कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से गणपति बप्पा की पूजा अर्चना करता है, उसके जीवन से सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में मंगल का आगमन होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी का आशय संकट को रहने वाली चतुर्थी तिथि से है.।

चतुर्थी तिथि को भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है.इस दिन विधिपूर्वक श्री गणेश जी का पूजन-अर्चन करने से जीवन की हर मनोकामना पूर्ण होती है तथा घर में खुशियां आती है,हर माह आने वाली कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चतुर्थी व्रत किया जाता है.।

पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है,यह भगवान गणेश की तिथि है,अत: इस दिन उनका विधि-विधान से पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया जाता है.गणेश पुराण के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्य, समृद्धि और संतान सुख मिलता है.भविष्य पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं.।

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले भगवान श्री गणेश का आह्वान किया जाता है,क्योंकि श्री गणेश प्रथम पूज्य देवता माने गए हैं,ये बुद्धि के देवता भी है। फाल्गुन मास चतुर्थी को बहुत ही शुभ माना जाता है तथा इस दिन भगवान गणेश के छठे स्वरूप की पूजा की जाती है.।

-:’द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त’:-
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी . गुरुवार, 9 फरवरी, 2023 फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी तिथि गुरुवार 09 फरवरी को प्रातः 06.24 मिनट से आरम्भ होगी,तथा शुक्रवार 10 फरवरी प्रातः 07.58 मिनट पर समाप्त होगी.!

-:’द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी महत्व’:-
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के 32 रुपों में से उनके 6वें स्वरूप की पूजा की जाती है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस व्रत के परिणाम स्वरूप साधक को धन, सुख, व्यापार में वृद्धि और ग्रह दोष का अंत होता है. मान्यता है कि इस दिन दूर्वा, सुपारी, लाल फूल से गणपति की विशेष की जाती है.

-:’द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि’:-
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणपति को पूजा 11 दूर्वा गांठ चढ़ाएं और फिर 108 बार ॐ श्रीम गम सौभाग्य गणपतये वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥ इस मंत्र का जाप करें. मान्यता है कि इस विधि से गौरी पुत्र गजानन की पूजा करने पर सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ की प्राप्ति होती है. परिवार में चल रहे जमीन-जायदाद के विवाद की समस्या का समाधान होता है.!

-:’संकटनाशन गणेश स्तोत्रम’:-
|| नारद उवाच ||
प्रणम्य शिरसा देवं गौरींपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरे न्नित्यंमायुः कामार्थसिद्धये || 1
प्रथमम् वक्रतुण्डम् च एकदन्तम् द्वितीयकम् |
तृतीयम् कृष्ण पिंगक्षम् च गजवक्त्रं चतुर्थकम् || 2 ||
लंबोदरम् पंचमं च षष्ठम विकटमेव च |
सप्तमं विघ्नराजेंद्रम् च धूम्रवर्णम् तथाष्टमम || 3 ||
नवमं भालचंद्रम् च दशमं तु विनायकम् |
एकादशम् गणपतिम् द्वादशम् तु गजाननम् || 4 ||
द्वादशएतानि नामानि त्रिसंध्यम यः पठेन्नरः |
न च विघ्नभ्यम् तस्य सर्वसिद्धि करं प्रभो || 5 ||
विध्यार्थी लभते विद्याम धनार्थी लभते धनम् |
पुत्रार्थी लभते पुत्रान मोक्षार्थी लभते गतिम् || 6 ||
जपेद गणपति स्तोत्रम् षडभिमासैः फलम् लभते |
संवत्सरेण सिद्धि चं लभते नात्र संशयः || 7 ||
अष्टाभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां यः समर्पयेत |
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः || 8 ||
|| इति श्री नारदपुराणे संकष्टनाशनं स्त्रोत्रम् सम्पूर्णम् ||

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