ॐ श्री गणेशाय नमः…..लोहड़ी का त्यौहार खुद में अनेक सौगातों को लिए होता है.फसल पकने पर किसान खुशी को जाहिर करता है जो लोहड़ी पर्व, जोश व उल्लास को दर्शाते हुए सांस्कृत्तिक जुड़ाव को दर्शाता है , पंजाब और हरियाणा में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है. लोहडी केवल पंजाब तक ही सीमित नहीं है बल्कि संपूर्ण भारत में मनाया जाता है अलग-अलग नामों से फसल पकने की खुशी यहां पूरे जोश के साथ लोहड़ी के रुप में मनाई जाती है.!
लोहड़ी मकर संक्रांति के एक/दो दिन पहले मनाई जाती है और इस बार लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी, 2023 को मनाया जाएगा.लोहडी त्यौहार है, प्रकृति को धन्यवाद कहने का,यह मकर संक्रान्ति के आगमन की दस्तक भी कहा जाता है.!
लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं
लोहडी़ के पर्व के संदर्भ में अनेकों मान्यताएं हैं जैसे कि लोगों के घर जा कर लोहड़ी मांगी जाती हैं और दुल्ला भट्टी के गीत गाए जाते हैं,कहते हैं कि दुल्ला भट्टी एक लुटेरा हुआ करता था लेकिन वह हिंदू लड़कियों को बेचे जाने का विरोधी था और उन्हें बचा कर वह उनकी हिंदू लड़कों से शादी करा देता था इस कारण लोग उसे पसंद करते थे और आज भी लोहड़ी गीतों में उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है.!
सनातन धर्म में यह मान्यता है कि आग में जो भी समर्पित किया जाता है वह सीधे हमारे देवों-पितरों को जाता है.इसलिए जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालियों से की जाती है. लोहडी के दिन अग्नि को प्रजव्व्लित कर उसके चारों ओर नाच- गाकर शुक्रिया अदा किया जाता है.!
तथापि लोहडी उतरी भारत में प्रत्येक वर्ग, हर आयु के जन के लिये खुशियां लेकर आती है.परन्तु नवविवाहित दम्पतियों और नवजात शिशुओं के लिये यह दिन विशेष होता है.युवक -युवतियां सज-धज, सुन्दर वस्त्रों में एक-दूसरे से गीत-संगीत की प्रतियोगिताएं रखते है.लोहडी की संध्यां में जलती लकडियों के सामने नवविवाहित जोडे अपनी वैवाहिक जीवन को सुखमय व शान्ति पूर्ण बनाये रखने की कामना करते है. सांस्कृतिक स्थलों में लोहडी त्यौहार की तैयारियां समय से कुछ दिन पूर्व ही आरम्भ हो जाती है.!
“लोहड़ी पर भंगड़ा और गिद्दा की धूम”
लोहडी़ के पर्व पर लोकगीतों की धूम मची रहती है, चारों और ढोल की थाप पर भंगड़ा-गिद्दा करते हुए लोग आनंद से नाचते नज़र आते हैं. स्कूल व कालेजों में विशेष तौर पर इस दिन को मनाते हैं बच्चे नाच गा कर मजे कर्ते नज़र आते हैं. मन को मोह लेने वाले गीतों कुछ इस प्रकार के होते है कि एक बार को जाता हुआ बैरागी भी अपनी राह भूल जाए.!
लोहडी के दिन में भंगडे की गूंज और शाम होते ही लकडियां की आग और आग में डाले जाने वाली चीजों की महक एक गांव को दूसरे गांव व एक घर को दूसरे घर से बांधे रखती है. यह सिलसिला देर रात तक यूं ही चलता रहता है. बडे-बडे ढोलों की थाप, जिसमें बजाने वाले थक जायें, पर पैरों की थिरकन में कमी न हों, रेवडी और मूंगफली का स्वाद सब एक साथ रात भर चलता रहता है.!
“माघ का आगमन”
लोहडी पर्व क्योकि मकर-संक्रान्ति की पूर्व संध्या मनाया जाता है तथा इस त्यौहार का सीधा संबन्ध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से होता है.लोहड़ी पौष की आख़िरी रात को मनायी जाती है जो माघ महीने के शुभारम्भ व उत्तरायण काल का शुभ समय के आगमन को दर्शाता है और साथ ही साथ ठंड को दूर करता हुआ मौसम में बदलाव का संकेत बनता है.!
“लोहड़ी गीत”
सुंदर मुंदरिये हो !
तेरा कौन विचारा हो !
दुल्ला भट्टी वाला हो !
दुल्ले धी व्याही हो !
सेर शक्कर पाई हो !
कुड़ी दे जेबे पाई
कुड़ी दा लाल पटाका हो !
कुड़ी दा सालू पाटा हो !
सालू कौन समेटे हो !
चाचे चूरी कुट्टी हो !
ज़मिदारां लुट्टी हो !
ज़मींदार सदाए हो !
गिन-गिन पोले लाए हो !
इक पोला रह गया !
सिपाही फड के लै गया !
सिपाही ने मारी ईट
भावें रो भावें पिट
सानू दे दे लोहड़ी
तुहाडी बनी रवे जोड़ी !