माघ मास महात्यमय विशेषाङ्क

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

माघ मास महात्यमय विशेषाङ्क
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ॐ नमो नारायण…..हिन्दू पंचांग के चंद्रमास के अनुसार वर्ष का ग्यारहवां महीना है माघ.पौष के बाद माघ माह प्रारंभ होता है.पुराणों में माघ मास के महात्म्य का वर्णन मिलता है.इसका नाम माघ इसलिए रखा गया क्योंकि यह मघा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा से प्रारंभ होता है.चंद्रमास के महीने के नाम नक्षत्रों पर ही आधारित है, जैसे पौष का पुष्य नक्षत्र से संबंध है.।

पद्म पुराण में माघ मास में कल्पवास के दौरान स्नान, दान और तप के माहात्म्य के विस्तार से वर्णन मिलता है.इसके अलावा माघ में ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा सुनने के महत्व का वर्णन भी मिलता है.।

माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है और तिल चतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी आदि व्रत प्रारंभ होते हैं.माघ शुक्ल चतुर्थी को उमा चतुर्थी कहता जाता है.शुक्ल सप्तमी को व्रत का अनुष्ठान होता है.माघ कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और दशरथ ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया था.अतएव मनुष्यों को उस दिन उपवास रखकर तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए.इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है.।

‘माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।’
‘प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापानुत्तये। माघ स्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानवः॥’

पुराणों के अनुसार इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्ग लोक में जाते हैं.पद्मपुराण में अनुसार माघ मास में पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती,जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है.इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए.।

माघमासे गमिष्यन्ति गंगायमुनसंगमे।
ब्रह्माविष्णु महादेवरुद्रादित्यमरूद्गणा:।।

माघ मास में प्रयाग संगम तट पर कल्पवास करने का विधान है.साथ ही माघ मास की अमावास्या को प्रयागराज में स्नान से अनंत पुण्य प्राप्त होते हैं.वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरूद्गण माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं.।

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