Phool Sangraad / Phooldei Festival: फूल संग्राद/फूलदेई पर्व

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

फूल संग्राद/फूलदेई पर्व विशेषाङ्क
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on email
Share on print

Phool Sangraad / Phooldei Festival:फुलदेई,छम्मा देई.दैणी द्वार,भर भकार,ये देली तई बारंबार नमस्कार..नमस्कार…

{यह देहरी फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो,सबकी रक्षा करे और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दे.इस देहली को बारम्बार नमस्कार नमस्कार)

Phool Sangraad / Phooldei Festival:14 मार्च से शुरू हो रहा चैत का महीना उत्तराखंडी समाज के बीच विशेष पारंपरिक महत्व रखता है,चैत की संक्रांति यानी फूल संक्रांति से शुरू होकर इस पूरे महीने घरों की देहरी पर फूल डाले जाते हैं,इसी को गढ़वाल में फूल संग्राद और कुमाऊं में फूलदेई पर्व कहा जाता है,फूल डालने वाले बच्चे फुलारी कहलाते हैं.!

यह मौल्यार {बसंत} का पर्व है.इन दिनों उत्तराखंड में फूलों की चादर बिछी दिखती है,बच्चे कंडी {टोकरी} में खेतों-जंगलों से फूल चुनकर लाते हैं और सुबह-सुबह पहले मंदिर में और फिर प्रत्येक घर की देहरी पर रखकर जाते हैं,माना जाता है कि घर के द्वार पर फूल डालकर ईश्वर भी प्रसन्न होंगे और वहां आकर खुशियां बरसाएंगे.!

चला फुलारी फूलों को.
सौदा-सौदा फूल बिरौला.i
भौंरों का जूठा फूल ना तोड्यां.
म्वारर्यूं का जूठा फूल ना लैयां.II

Phool Sangraad / Phooldei Festival: लोक पर्व फूलदेई फूलों के बहार के साथ ही नव वर्ष के आगमन का भी प्रतीक है,कई दिनों तक इस त्योहार को मनाने के पीछे मनभावन वसंत के मौसम की शुरुआत भी मानी जाती है,सूर्य उगने से पहले फूल लाने की परंपरा है,इसके पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, क्योंकि सूर्य निकलने पर भंवरे फूलों पर मंडराने लगते हैं, जिसके बाद परागण एक फूल से दूसरे फूल में पहुंच जाते हैं और बीज बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है,पौधों से अच्छी पैदावार और उन्नत किस्म के बीज प्राप्त करने के लिए जीवित्ता के संघर्ष को कम करना जरूरी होता है,जिसकी सटीक तकनीक है कि कुछ फूलों को पौधों से अलग कर दिया जाए,फूलदेही का त्योहार इसका एक प्रायोगिक उदाहरण है,फूलदेई का त्योहार खुशी मनाने के साथ ही प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है,साथ ही वसंत के इस मौसम में हर तरफ फूल खिले होते हैं, फूलों से ही नए जीवन का सृजन होता है,चारों तरफ फैली इस वासंती बयार को उत्सव के रूप में मनाया जाता है.!

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on email
Share on print
नये लेख