ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
ॐ नमो नारायण…..षट्तिला एकादशी का व्रत बुद्धवार 18 जनवरी, 2023 के दिन रखा जाएगा.प्रतिवर्ष माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है.अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिलों से जुडा हुआ है,तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और हिन्दु धर्म में यह बहुत पवित्र माने जाते हैं पूजा में इनका विशेष महत्व होता है.!
षट्तिला एकादशी के दिन तिलों का छ: प्रकार से उपयोग किया जाता है.जिसमें तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना,तिल से हवन करना,तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है.जो भी व्यक्ति इस षटतिला एकादशी के व्रत को करता है उसे तिलों से भरा घडा़ भी ब्राह्मण को दान करना चाहिए.जितने तिलों का दान वह करेगा उतने ही ह्जार वर्ष तक वह स्वर्गलोक में रहेगा.!
-:’षटतिला एकादशी शुभ मुहूर्त’:-
इस वर्ष जनवरी माह में 18 जनवरी के दिन षटतिला एकादशी मनाई जाएगी.दिवाकर पञ्चाङ्गानुसार मंगलवार 17 जनवरी सायंकालीन 18 बजकर 06 मिनट से एकादशी तिथि आरम्भ होगी.तथा बुद्धवार 18 जनवरी अपराह्न 16 बजकर 03 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार बुद्धवार 18 जनवरी को ही षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा.I
-: षटतिला एकादशी व्रत का महत्व :-
माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को व्रत रखना चाहिए. इससे मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाएंगें तथा उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी.जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके सभी पापों का नाश होता है. इसलिए माघ मास में पूरे माह व्यक्ति को अपनी समस्त इन्द्रियों पर काबू रखना चाहिए. काम, क्रोध, अहंकार, बुराई तथा चुगली का त्याग कर भगवान की शरण में जाना चाहिए.!
-: षटतिला एकादशी व्रत विधि :-
एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि मनुष्य कौन सा दान अथवा पुण्य कर्म करे जिससे इनके सभी पापों का नाश हो. तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि हे ऋषिवर माघ मास लगते ही मनुष्य को सुबह स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए. व्यक्ति पुष्य नक्षत्र में तिल तथा कपास को गोबर में मिलाकर उसके 108 कण्डे बनाकर रख लें. माघ मास की षटतिला एकादशी को सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. व्रत करने का संकल्प करके भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए. यदि व्रत आदि में किसी प्रकार की भूल हो जाए तब भगवान कृष्ण जी से क्षमा याचना करनी चाहिए.!
रात्रि में गोबर के कंडों से हवन करना चाहिए. रात भर जागरण करके भगवान का भजन करना चाहिए. अगले दिन भगवान का भजन-पूजन करने के पश्चात खिचडी़ का भोग लगाना चाहिए. व्यक्ति इस प्रार्थना को ऎसे भी बोल सकते हैं कि हे प्रभु आप दीनों को शरण देने वाले हैं. संसार के सागर में फंसे हुए लोगों का उद्धार करने वाले हैं. इसके बाद व्यक्ति को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए. ब्राह्मण को जल से भरा घडा़, छाता, जूते तथा वस्त्र देने चाहिए.!
भगवान विष्णु ने नारद जी को एक सत्य घटना से अवगत कराया और नारदजी को एक षटतिला एकादशी के व्रत का महत्व बताया. इस प्रकार सभी मनुष्यों को लालच का त्याग करना चाहिए. किसी प्रकार का लोभ नहीं करना चाहिए. षटतिला एकादशी के दिन तिल के साथ अन्य अन्नादि का भी दान करना चाहिए. इससे मनुष्य का सौभाग्य बली होगा. कष्ट तथा दरिद्रता दूर होगी. विधिवत तरीके से व्रत रखने से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी.!
-:षट्तिला एकादशी व्रत वधि:-
कथा के पश्चात इस एकादशी का जो व्रत विधान है वह जानते हैं.व्रत विधान के विषय में जो पुलस्य ऋषि ने दलभ्य ऋषि को बताया वह यहां प्रस्तुत है.ऋषि कहते हैं माघ का महीना पवित्र और पावन होता है इस मास में व्रत और तप का बड़ा ही महत्व है. इस माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षट्तिला कहते हैं.षट्तिला एकादशी के दिन मनुष्य को भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखना चाहिए.व्रत करने वालों को गंध,पुष्प,धूप दीप,ताम्बूल सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार से पूजन करना चाहिए.उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए.रात्रि के समय तिल से 108 बार ॐ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा इस मंत्र से हवन करना चाहिए.!
–:इन छः प्रकार से करें का प्रयोग:–
इस व्रत में तिल का छ: रूप में प्रयोग करना उत्तम फलदायी होता है.जो व्यक्ति जितने रूपों में तिल का प्रयोग करता है उसे उतने हज़ार वर्ष स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है.ऋषिवर ने जिन 6 प्रकार से तिल उपयोग की बात कही है वह इस प्रकार हैं.!
01.तिल मिश्रित जल से स्नान करना.!
02.तिल का उबटन लगाना.!
03.तिल का तिलक लगाना.!
04.तिल मिश्रित जल का सेवन करना.!
05.तिल युक्त भोजन का सेवन करना.!
06.तिल युक्त सामग्री से हवन करना.!
इस दिन जो ब्यक्ति इन वस्तुओं का स्वयं भी प्रयोग करें और किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें भी इन वस्तुओं का दान दें तो उसे उत्तम फल की प्राप्ति होती हैं.I
इस तरह से जो षट्तिला एकादशी का व्रत रखते हैं भगवान उनके अज्ञानता पूर्वक किये गये सभी अपराधों से मुक्त कर देते हैं और पुण्य दान देकर स्वर्ग में स्थान प्रदान करते हैं. इस कथन को सत्य मानकर जो भग्वत् भक्त यह व्रत करता हैं उनका निश्चित ही प्रभु उद्धार करते हैं.!