या कुन्देन्दु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता !
या वीणावरदंडमंडितकरा, या श्वेत पद्मासना !!
या ब्रह्मास्च्युत शंकर प्रभृतिर्भिरदेवाः सदाबंदिताः
सा मां पातु सरस्वती देवी, या निशेष जाड़यापहा !!
ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नम:….बसन्त पंचमी का पर्व माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व गुरुवार 26 जनवरी 2023 में मनाया जायेगा.बसन्त पंचमी के दिन भगवान श्रीविष्णु, श्री कृष्ण-राधा व शिक्षा की देवी माता सरस्वती की पूजा पीले फूल,गुलाल,अर्ध्य,धूप,दीप,आदि द्वारा की जा जाती है.पूजा में पीले व मीठे चावल व पीले हलुवे का श्रद्धा से भोग लगाकर, स्वयं इनका सेवन करने की परम्परा है…!
सरस्वती वाणी एवं ज्ञान की देवी है. ज्ञान को संसार में सभी चीजों से श्रेष्ठ कहा गया है. इस आधार पर देवी सरस्वती सभी से श्रेष्ठ हैं. कहा जाता है कि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी एवं काली माता भी विराजमान रहती हैं. इसका प्रमाण है माता वैष्णो का दरबार जहॉ सरस्वती, लक्ष्मी, काली ये तीनों महाशक्तियां साथ में निवास करती हैं. जिस प्रकार माता दुर्गा की पूजा का नवरात्रे में महत्व है उसी प्रकार बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का महत्व है….!
-:’बसंत पंचमी शुभ मुहूर्त’:-
इस वर्ष माघ शुक्ल पञ्चमी तिथि बुद्धवार 25 जनवरी को मध्याहन 12 बजकर 35 मिनट से आरम्भ होगी तथा गुरुवार 26 जनवरी 2023 को पूर्वाह्न 10 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होगी अतैव उदया तिथि के अनुसार बसंत पंचमी 26 जनवरी 2023 को मान्य होगी.इस दिन प्रातः 07 बजकर 11 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 51 मिनट तक पूजन हेतु सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त है.I
-:बसन्त पंचमी पर्व का सरस्वती माता से संबन्ध:-
माता सरस्वती बुद्धि व संगीत की देवी है. पंचमी के दिन को माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रुप में भी मनाया जाता है. यह पर्व ऋतुओं के राजा का पर्व है. इन दिन से बसंत ऋतु से शुरु होकर, फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी तक रहता है. यह पर्व कला व शिक्षा प्रेमियों के लिये विशेष महत्व रखता है..!
एक किंवदन्ती के अनुसार इस दिन ब्रह्मा जी ने सृ्ष्टि की रचना की थी.यह त्यौहार उतर भारत में पूर्ण हर्ष- उल्लास से मनाया जाता है. एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम ने माता शबरी के झूठे बैर खाये थे. इस उपलक्ष में बसन्त पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है…!
-:वसन्त पंचमी सरस्वती का जन्मोत्सव:-
वसन्त पंचमी के दिन सरस्वती माता की पूजा की प्रथा सदियों से चली आ रही है. मान्यता है सृष्टि के निर्माण के समय देवी सरस्वती बसंत पंचमी के दिन प्रकट हुई थीं अत: बसंत पंचमी को सरस्वती माता का जन्मदिन माना जाता है. सरस्वती माता का जन्मदिन मनाने के लिए ही माता के भक्त उनकी पूजा करते हैं…!
-:सरस्वती पूजनोत्सव:-
ज्ञान एवं वाणी के बिना संसार की कल्पना करना भी असंभव है. माता सरस्वती इनकी देवी हैं अत: मनुष्य ही नहीं, देवता एवं असुर भी माता की भक्ति भाव से पूजा करते हैं. सरस्वती पूजा के दिन लोग अपने-अपने घरों में माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर की पूजा करते हैं. विभिन्न पूजा समितियों द्वारा भी सरस्वती पूजा के अवसर पर पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है…!
-:सरस्वती पूजा की विधि:-
सरस्वती पूजा करते समय सबसे पहले सरस्वती माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखना चाहिए. इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा करनी चाहिए. इसके बाद माता सरस्वती की पूजा करें. सरस्वती माता की पूजा करते समय उन्हें सबसे पहले आचमन एवं स्नान कराएं. इसके बाद माता को फूल एवं माला चढ़ाएं. सरस्वती माता को सिन्दुर एवं अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करनी चाहिए. बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल भी अर्पित किया जाता है…!
देवी सरस्वती श्वेत(सफेद) वस्त्र धारण करती हैं अत: उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं.सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं.प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के अलावा बूंदिया अर्पित करना चाहिए.इस दिन सरस्वती माता को मालपुए एवं खीर का भी भोग लगाया जाता है..!
-:सरस्वती माता का हवन:-
सरस्वती पूजा करने बाद सरस्वती माता के नाम से हवन करना चाहिए. हवन के लिए हवन कुण्ड अथवा भूमि पर सवा हाथ चारों तरफ नापकर एक निशान बना लेना चाहिए. इसे कुशा से साफ करके गंगा जल छिड़क कर पवित्र करने के बाद. आम की छोटी-छोटी लकडि़यों को अच्छी तरह बिछा लें और इस पर अग्नि प्रजज्वलित करें. हवन करते समय गणेश जी, नवग्रह के नाम से हवन करें. इसके बाद सरस्वती माता के नाम से “ॐ श्री सरस्वत्यै नमः ” इस मंत्र से 108 बार हवन करना चाहिए. हवन के बाद सरस्वती माता की आरती करें और हवन का भभूत लगाएं…!
-:सरस्वती विसर्जन:-
माघ शुक्ल पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा के बाद षष्ठी तिथि को सुबह माता सरस्वती की पूजा करने के बाद उनका विसर्जन कर देना चाहिए. संध्या काल में मूर्ति को प्रणाम करके जल में प्रवाहित कर देना चाहिए…!
-:सरस्वती उत्पत्ति कथा:-
सृष्टि के निर्माण के समय सबसे पहले महालक्ष्मी देवी प्रकट हुईं. इन्होंने भगवान शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का आह्वान किया. जब ये तीनों देव उपस्थित हुए. देवी महालक्ष्मी ने तब तीनों देवों से अपने-अपने गुण के अनुसार देवियों को प्रकट करने का अनुरोध किया. भगवान शिव ने तमोगुण से महाकली को प्रकट किया, भगवान विष्णु ने रजोगुण से देवी लक्ष्मी को तथा ब्रह्मा जी ने सत्वगुण से देवी सरस्वती का आह्वान किया. जब ये तीनो देवी प्रकट हुईं तब जिन देवों ने जिन देवियों का आह्वान किया था उन्हें वह देवी सृष्टि संचालन हेतु महालक्ष्मी ने भेंट किया. इसके पश्चात स्वयं महालक्ष्मी माता लक्ष्मी के स्वरूप में समा गईं…!
-:सरस्वती वाणी की देवी:-
सृष्टि का निर्माण कार्य पूरा करने के बाद ब्रह्मा जी ने जब अपनी बनायी सृष्टि मृत शरीर की भांति शांत है. इसमें न तो कोई स्वर है और न वाणी. अपनी उदासीन सृष्टि को देखकर ब्रह्मा जी को अच्छा नहीं लगा. ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास गये और अपनी उदासीन सृष्टि के विषय में बताया. ब्रह्मा जी से तब भगवान विष्णु ने कहा कि देवी सरस्वती आपकी इस समस्या का समाधान कर सकती हैं. आप उनका आह्वान किया कीजिए उनकी वीणा के स्वर से आपकी सृष्टि में ध्वनि प्रवाहित होने लगेगी..!
भगवान विष्णु के कथनानुसार ब्रह्मा जी ने सरस्वती देवी का आह्वान किया. सरस्वती माता के प्रकट होने पर ब्रह्मा जी ने उन्हें अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर भरने का अनुरोध किया. माता सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ उससे ‘सा’ शब्द फूट पड़ा. यह शब्द संगीत के सप्तसुरों में प्रथम सुर है…!
इस ध्वनि से ब्रह्मा जी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा. हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को वाणी मिल गयी. नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी. इससे ब्रह्मा जी अति प्रसन्न हुए उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया. माता सरस्वती का एक नाम यह भी है. सरस्वती माता के हाथों में वीणा होने के कारण इन्हें वीणापाणि भी कहा जाता है…!
-:बसन्त पंचमी की विशेषता:-
बसन्त पंचमी को जीवन की शुरुआत का दिन माना जाता है. यह दिन खुशियों के आगमन का दिन है. बसंत का मौसम बहार का मौसम होता है, इस माह में खेतों में चारों ओर पीली सरसों सबका मन मोह लेती है. गेंहू की बालियां सोने का रुप ले लह-लहाने लगती है. रंग- बिरंगी फूल खिलने लगते है. बसन्त पंचमी के दिन को रंगों, खुशियों के स्वागत के रुप में भी मनाया जाता है…!
माघ माह की पांचवी तिथि को बसन्त पंचमी मनाई जाती है. इस दिन सरस्वती मां के अलावा भगवान विष्णु व कामदेव की भी पूजा- उपासना की जाती है. सभी छ: ऋतुओं में से बसन्त ऋतु सबसे अधिक मनमोहक होती है…!
-:बसन्त पंचमी के दिन माता शारदा का पूजन:-
माता शारदा के पूजन के लिये भी बसंत पंचमी का दिन विशेष शुभ रहता है. इस दिन 2 से 10 वर्ष की कन्याओं को पीले-मीठे चावलों का भोजन कराया जाता है. तथा उनकी पूजा की जाती है. मां शारदा और कन्याओं का पूजन करने के बाद पीले रंग के वस्त्र और आभूषण कुमारी कन्याओ, निर्धनों व विप्रों को दिने से परिवार में ज्ञान, कला व सुख -शान्ति की वृ्द्धि होती है. इसके अतिरिक्त इस दिन पीले फूलों से शिवलिंग की पूजा करना भी विशेष शुभ माना जाता है….!
-:बसंत पंचमी का मुहूर्त समय में उपयोग:-
बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्तों में शामिल किया जाता है. बसंत पंचमी के दिन शुभ कार्य जिसमें विवाह, भवन निर्माण, कूप निर्माण, फैक्ट्री आदि का शुभारम्भ, शिक्षा संस्थाओं का उद्धघाटन करने के लिये शुभ मुहूर्त के रुप में प्रयोग किया जाता है…!
-:बसन्त पंचमी में पंतगंबाजी उत्सव:-
बसन्त पंचमी के दिन पूजा उपासना के साथ साथ पंतगबाजी के उत्सव भी आयोजित किये जाते है. इन उत्सवों में देश -विदेश से प्रतियोगी भाग लेते है. पंतग उडाने की परम्परा की शुरुआत चीन देश से हुई. पंतगबाजी उत्सवों में नई- नई व विचित्र पंतगों को देखने का अवसर प्राप्त होता है…!
–:सरस्वती वंदना:–
विद्या की देवी सरस्वती कुन्द फूल, चंद्रमा, हिम एवं सफेद मोती के हार जैसी गौर वर्ण मनमोहक छवि के जैसी हैं तथा जो श्वेत वस्त्र धारण किए हैं जिनके हाथों में वीणा-दण्ड है, जो श्वेत कमलों पर विराजित हैं एवं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि देवताओं द्वारा सदा पूज्य हैं, वही देवी सरस्वती हमारी जड़ता एवं अज्ञानता को दूर कर हमारी रक्षा करें…!
“माँ सरस्वती वंदना”
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमर कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥