मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः।
मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः।।
ॐ नमो नारायण…फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के रूप में मनाया जाता है. यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है.तभी तो प्रभु राम जी ने भी इस व्रत को धारण करके अपने विजय को पूर्ण रूप से प्राप्त किया था.एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि होती है तथा अशुभता का नाश होता है.विजया एकादशी व्रत 16/17 फरवरी 2023 को किया जाएगा.विजया एकादशी व्रत करने से साधक को व्रत से संबन्धित मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है.सभी एकादशी अपने नाम के अनुरुप फल देती है.!
-:’विजया एकादशी शुभ मुहूर्त’:-
दिवाकर पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि गुरुवार 16 फरवरी 2023 को प्रातः 05 बजकर 29 मिनट से प्रारम्भ होगी.शुक्रवार 17 फरवरी 2023 को प्रातः 04 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगी,एकादशी व्रत वपारण का शुभ समय 17 फरवरी 2023 को प्रातः 07:01 से सुबह 09:51 तक रहेगा.।
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ।।
-:’विजया एकादशी व्रत कथा’:-
विजया एकादशी का पौराणिक महत्व श्री राम जी से जुडा़ हुआ है जिसके अनुसार विजया एकादशी के दिन भगवान श्री राम लंका पर चढाई करने के लिये समुद्र तट पर पहुंचे.समुद्र तट पर पहुंच कर भगवान श्री राम ने देखा की सामने विशाल समुद्र है और उनकी पत्नी देवी सीता रावण कैद में है.इस पर भगवान श्री राम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की.परन्तु समुद्र ने जब श्री राम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया तो भगवान श्री राम ने ऋषि गणों से इसका उपाय पूछा.!
ऋषियों ने भगवान श्रीराम को बताया कि प्रत्येक शुभ कार्य को शुरु करने से पहले व्रत और अनुष्ठान कार्य किये जाते है.व्रत और अनुष्ठान कार्य करने से कार्यसिद्धि की प्राप्ति होती है.और सभी कार्य सफल होते है.हे भगवान आप भी फाल्गुण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किजिए.!
भगवान श्रीराम ने ऋषियों के कहे अनुसार व्रत किया, व्रत के प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया और यह व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में सहायक बना.तभी से इस व्रत की महिमा का गुणगान आज भी सर्वमान्य रहा है और विजय प्राप्ति के लिये जन साधारण द्वारा किया जाता है.!
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ।।
-:’विजया एकादशी पूजा विधि’:-
विजया एकादशी व्रत के विषय में यह मान्यता है, कि एकादशी व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान और गौदान से अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. एकादशी व्रत के दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. व्रत पूजन में धूप, दीप, नैवेध, नारियल का प्रयोग किया जाता है.विजया एकादशी व्रत में सप्त धान्य घट की स्थापना की जाती है.इसके ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रखी जाती है.इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को पूरे दिन व्रत करने के बाद रात्रि में विष्णु पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए.I
व्रत से पहले की रात्रि में सात्विक भोजन करना चाहिए और रात्रि भोजन के बाद कुछ नहीं लेना चाहिए.एकादशी व्रत 24 घंटों के लिये किया जाता है.व्रत का समापन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घडा ब्राह्माण को दिया जाता है.यह व्रत करने से दु:ख दूरे होते है. और अपने नाम के अनुसार विजया एकादशी व्यक्ति को जीवन के कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाती है. समग्र कार्यो में विजय दिलाने वाली विजया एकादशी की कथा इस प्रकार है.!
-:’विजया एकादशी महत्व’:-
विजया एकादशी व्रत के बारे में शास्त्रों में लिखा है कि यह व्रत करने से स्वर्णणदान,भूमि दान,अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है और अंततः उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है,यदि कोई आपसे शत्रुता रखता है तो विजया एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए.।