नमो नारायण…पंचांग दिवाकर के अनुसार वर्ष 2024 में होलिका दहन 24 मार्च को किया जायेगा सोमवार 25 मार्च को रंगोत्सव अर्थात होली का त्यौहार सम्पन्न किया जायेगा,ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस बार होली पर चंद्र ग्रहण भी लगेगा,अपितु यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा,इस लिए इस उपच्छाया चंद्र ग्रहण के सुतकादि नियम भारत वर्ष में मान्य नहीं होंगे,इस बार होली पर कई शुभ और अद्भुत संयोग बनने जा रहा है.!
-:”होलिका दहन और भद्रा का साया”:-
पंचांग दिवाकर के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को प्रातः 09 बजकर 56 मिनट पर प्रारम्भ होगी तथा 25 मार्च को मध्याह्न 12 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी.!
24 मार्च को भद्रा का साया पूर्वाह्न 11 बजकर 13 मिनट से प्रारम्भ होकर रात्रि 23 बजकर 13 मिनट तक रहेगी.इस अवधी के पश्चात ही होलिका दहन किया जाएगा.!
-:”होलिका दहन शुभ मुहूर्त”:-
वर्ष 2024 में रविवार 24 मार्च को होलिका दहन का शुभ समय (मुहूर्त) रात्रि के 23 बजकर 14 (11:14PM) मिनट से लेकर मध्यरात्रि 24 बजकर 33 मिनट (00:33AM) तक है.!
भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है. हिंदू धर्म में अनगिनत मान्यताएं, परंपराएं एवं रीतियां हैं. वैसे तो समय परिवर्तन के साथ-साथ लोगों के विचार व धारणाएं बदलीं, उनके सोचने-समझने का तरीका बदला, परंतु संस्कृति का आधार अपनी जगह आज भी कायम है.!
आज की युवा पीढ़ी में हमारी प्राचीन नीतियों को लेकर कई सवाल उठते हैं,परंतु भारतीय धर्म साधना के परिवेश में वर्ष भर में शायद ही ऐसा कोई त्योहार हो जिसे हमारे राज्य अपने-अपने रीति रिवाजों के अनुसार धूमधाम से न मनाते हो.!
-: होलिका पूजन के पश्चात् करें होलिका दहन:-
विधिवत रुप से होलिका का पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है.होलिका दहन सदैव भद्रा समय के बाद ही किया जाता है.इसलिये दहन करने से भद्रा का विचार कर लेना चाहिए.ऎसा माना जाता है कि भद्रा समय में होलिका का दहन करने से क्षेत्र विशेष में अशुभ घटनाएं होने की सम्भावना बढ जाती है…!
इसके अलावा चतुर्दशी तिथि,प्रतिपदा में भी होलिका का दहन नहीं किया जाता है.तथा सूर्यास्त से पहले कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए.होलिका दहन करने समय मुहूर्त आदि का ध्यान रखना शुभ माना जाता है…!
-:होलिका पूजन एवं आहुति देने वाली सामग्रियां:-
होलिका पूजन में एक लोटा जल,माला,रोली,चावल,गंध,पुष्प,कच्चा सूत,गुड,साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए.इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है.!
होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है,उसमें कच्चे आम, नारियल,भुट्टे या सप्तधान्य,चीनी के बने खिलौने,नई फसल का कुछ भाग है.सप्त धान्य है,गेंहूं,उडद, मूंग,चना,जौ, धान और मसूर.!
-:होलिका दहन की पूजा विधि:-
होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है.इस पूजा को करते समय,पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए.इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है.!
होलिका दहन मुहुर्त समय में जल,मोली,फूल,गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए.गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है. इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है.!
कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है.फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है.रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है. गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है. पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है.!
सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है.इसमें अग्नि प्रज्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है.सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है.अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती है. तथा बडों का आशिर्वाद लिया जाता है.!
“सेक कर लाये गये धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है…..
ऎसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है. तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है.!
“बभूति लेपन करते समय निम्न मंत्र का जाप करना कल्याणकारी रहता है”
वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।
अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥
“होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.”
अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्
इस मंत्र का उच्चारण एक माला,तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए.!
-:”होलिका कथा”:-
होलिका दहन से संबन्धित कई कथाएं जुडी हुई है. जिसमें से कुछ प्रसिद्ध कथाएं इस प्रकार है. कथाएं पौराणिक हो, धार्मिक हो या फिर सामाजिक, सभी कथाओं से कुछ न कुछ संदेश अवश्य मिलता है. इसलिये कथाओं में प्रतिकात्मक रुप से दिये गये संदेशों को अपने जीवन में ढालने का प्रयास करना चाहिए. इससे व्यक्ति के जीवन को एक नई दिशा प्राप्त हो सकती है. होलिका दहन की एक कथा जो सबसे अधिक प्रचलन में है, वह हिर्ण्यकश्यप व उसके पुत्र प्रह्लाद की है.!
-:”हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद होलिका दहन कथा”:-
राजा हिर्ण्यकश्यप अहंकार वश स्वयं को ईश्वर मानने लगा. उसकी इच्छा थी की केवल उसी का पूजन किया जाये, लेकिन उसका स्वयं का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. पिता के बहुत समझाने के बाद भी जब पुत्र ने श्री विष्णु जी की पूजा करनी बन्द नहीं कि तो हिरण्य़कश्यप ने अपने पुत्र को दण्ड स्वरुप उसे आग में जलाने का आदे़श दिया. इसके लिये राजा नें अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को जलती हुई आग में लेकार बैठ जाये. क्योकि होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी.!
इस आदेश का पालन हुआ, होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई. लेकिन आश्चर्य की बात थी की होलिका जल गई, और प्रह्लाद नारायण कृ्पा से बच गया. यह देख हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से और अधिक नाराज हुआ. हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह वह न दिन में मर सकता है न रात में, न जमीन पर मर सकता है और न आकाश या पाताल में, न मनुष्य उसे मार सकता है और न जानवर या पशु- पक्षी, इसीलिए भगवान उसे मारने का समय संध्या चुना और आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य का- नृसिंह अवतार. नृसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप की हत्या न जमीन पर की न आसमान पर, बल्कि अपनी गोद में लेकर की. इस तरह बुराई की हार हुई और अच्छाई की विजय.!
इस कथा से यही धार्मिक संदेश मिलता है कि प्रह्लाद धर्म के पक्ष में था और हिरण्यकश्यप व उसकी बहन होलिका अधर्म निति से कार्य कर रहे थे. अतंत: देव कृ्पा से अधर्म और उसका साथ देने वालों का अंत हुआ. इस कथा से प्रत्येक व्यक्ति को यह प्ररेणा लेनी चाहिए, कि प्रह्लाद प्रेम, स्नेह, अपने देव पर आस्था, द्र्ढ निश्चय और ईश्वर पर अगाध श्रद्धा का प्रतीक है. वहीं, हिरण्यकश्यप व होलिका ईर्ष्या, द्वेष, विकार और अधर्म के प्रतीक है.!
यहां यह ध्यान देने योग्य बात यह है कि आस्तिक होने का अर्थ यह नहीं है, जब भी ईश्वर पर पूर्ण आस्था और विश्वास रखा जाता है. ईश्वर हमारी सहायता करने के लिये किसी न किसी रुप में अवश्य आते है.!
-:”शिव पार्वती कथा-होलिका दहन”:-
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है कि हिमालय पुत्री पार्वती की यह मनोइच्छा थी, कि उनका विवाह केवल भगवान शिव से हो. सभी देवता भी यही चाहते थे की देवी पार्वती का विवाह ही भगवना शिव से होना चाहिए. परन्तु श्री भोले नाथ थे की सदैव गहरी समाधी में लीन रहते थे, ऎसे में माता पार्वती के लिये भगवान शिव के आमने अपने विवाह का प्रस्ताव रखना कठिन हो रहा था.!
इस कार्य में पार्वती जी ने कामदेव का सहयोग मांगा, प्रथम बार में तो कामदेव यह सुनकर डर गये कि उन्हें भगवान भोले नाथ की तपस्या को भंग करना है. परन्तु पार्वती जी के आग्रह करने पर, वे इसके लिये तैयार हो गये. कामदेव ने भगवान शंकर की तपस्या भंग करने के लिये प्रेम बाण चलाया जिसके फलस्वरुप भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई. अपनी तपस्या के भंग होने से शिवजी को बडा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल कर कामदेव को भस्म कर दिया. इसके पश्चात भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह कर लिया. होलिका दहन का पर्व क्योकि कामदेव के भस्म होने से संबन्धित है. इसलिये इस पर्व की सार्थकता इसी में है, कि व्यक्ति होली के साथ अपनी काम वासनाओं को भस्म कर दें. और वासनाओं से ऊपर उठ कर जीवन व्यतीत करें.!
-:नारद जी और युद्धिष्ठर की कथा:-
पुराण अनुसार श्री नारदजी ने एक दिन युद्धिष्ठर से यह निवेदन किया कि है राजन फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सभी लोगों को अभयदान मिलना चाहिए. ताकी सभी कम से कम एक साथ एक दिन तो प्रसन्न रहे, खुशियां मनायें. इस पर युधिष्ठर ने कहा कि जो इस दिन हर्ष और खुशियों के साथ यह पर्व मनायेगा, उसके पाप प्रभाव का नाश होगा. उस दिन से पूर्णिमा के दिन हंसना-होली खेलना आवश्यक समझा जाता है.!
-:श्री विष्णु जी को झूले में झुलाने की प्रथा:-
होली से जुडी एक अन्य कथा के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन जो लोग चित को एकाग्र कर भगवान विष्णु को झुले में बिठाकर, झूलते हुए विष्णु जी के दर्शन करते है, उन्हें पुन्य स्वरुप वैंकुण्ठ की प्राप्ति होती है…!
-: आधुनिक परिपक्ष्य में होलिका दहन :-
आज के संदर्भ में वृ्क्षारोपण के महत्व को देखते हुए,आज होलिका में लकडियों को जलाने के स्थान पर,अपने मन से आपसी कटुता को जलाने का प्रयास करना चाहिए,जिससे हम सब देश की उन्नति और विकास के लिये एक जुट होकर कार्य कर सकें.आज के समय की यह मांग है कि पेड जलाने के स्थान पर उन्हें प्रतिकात्मक रुप में जलाया जायें. इससे वायु प्रदूषण और वृ्क्षों की कमी से जूझती इस धरा को बचाया जा सकता है. प्रकृ्ति को बचाये रखने से ही मनुष्य जाति को बचाया जा सकता है, यह बात हम सभी को कभी नहीं भूलनी चाहिए.!
नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook पर प्राप्त कर सकते हैं.II