श्रीजानकी त्वां नमस्यामि….सीता जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत में उत्साह व श्राद्धा के साथ मनाया जाएगा. यह पर्व माँ सीता के जन्म दिवस के रुप में जाना जाता है. वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को भी जानकी-जयंती के रूप में मनाया जाता है, परंतु भारत के कुछ क्षेत्रों में फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सीता-जयंती के रूप में भी मनाने की परंपरा रही है. इस तथ्य का उदघाटन निर्णयसिंधु से भी प्राप्त होता है जिसके अनुसार फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष के दिन सीता जी का जन्म हुआ था इसीलिए इस तिथि को सीताष्टमी के नाम से भी संबोद्धित किया जाता है. सीता शक्ति, इच्छा-शक्ति तथा ज्ञान-शक्ति तीनों रूपों में प्रकट होती हैं वह परमात्मा की शक्ति स्वरूपा हैं.!
-:’Janaki Jayanti: सीता जयंती का पौराणिक संदर्भ’:-
सीता माँ का चरित्र सभी के लिये मार्गदर्शक रहा है और आज भी प्रासंगिक है. सीता उपनिषद जो कि अथर्ववेदीय शाखा से संबंधित उपनिषद है जिसमें सीता जी की महिमा एवं उनके स्वरूप को व्यक्त किया गया है. इसमें सीता को शाश्वत शक्ति का आधार बताया गया है तथा उन्हें ही प्रकृति में परिलक्षित होते हुए देखा गया है. सीता जी को प्रकृति का स्वरूप कहा गया है तथा योगमाया रूप में स्थापित किया गया है. सीता जी ही प्रकृति हैं वही प्रणव और उसका कारक भी हैं. शब्द का अर्थ अक्षरब्रह्म की शक्ति के रूप में हुआ है यह नाम साक्षात ‘योगमाया’ का है. देवी सीता जी को भगवान श्रीराम का साथ प्राप्त है, जिस कारण वह विश्वकल्याणकारी हैं. सीता जी जग माता हैं और श्री राम को जगत-पिता बताया गया है एकमात्र सत्य यही है कि श्रीराम ही बहुरूपिणीमाया को स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे हैं और सीता जी ही वही योगमाया है. वाल्मीकि रामायण में तथा वेद-उपनिषदों में सीता के स्वरूप का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है. ऋग्वेद में एक स्तुति के अनुसार कह अगया है कि असुरों का नाश करने वाली सीता जी आप हमारा कल्याण करें. गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में सीताजी को संसार की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करने वाली माता कहते हुए नमस्कार करते हैं, एक पुत्री, पुत्रवधू, पत्नी और मां के रूप में उनका आदर्श रूप सभी के लिए पूजनीय रहा है.!
-:’Janaki Jayanti: सीता जयंती पूजन’:-
सीता जयंती के उपलक्ष्य पर भक्तगण माता की उपासना करते हैं. परम्परागत ढंग से श्रद्धा पूर्वक पूजन अर्चन किया जाता है. सीता जी की विधि-विधान पूर्वक आराधना की जाती है. इस दिन व्रत का भी नियम बताया गया है जिसे करने हेतु व्रतधारी को व्रत से जुडे सभी नियमों का पालन करना चाहिए. सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता व श्री राम जी की पूजा उपासना करनी चाहिए. पूजन में चावल, जौ, तिल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इस व्रत को करने से सौभाग्य सुख व संतान की प्राप्त होती है, माँ सीता लक्ष्मी का हैं इसकारण इनके निमित्त किया गया व्रत परिवर में सुख-समृ्द्धि और धन कि वृद्धि करने वाला होता है. एक अन्य मत के अनुसार माता का जन्म क्योंकि भूमि से हुआ था, इसलिए वे अन्नपूर्णा कहलाती है. माता जानकी का व्रत करने से उपावसक में त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते है.!
-:’Janaki Jayanti: श्री जानकी स्रोत्र’:-
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥१॥
दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम् ।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम् ॥२॥
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ।
पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम् ॥३॥
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् ।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ॥४॥
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम् ।
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम् ॥५॥
नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम् ।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम् ॥६॥
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्षःस्थलालयाम् ।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम् ॥७॥
आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम् ।
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम् ।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा ॥८॥
नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook पर प्राप्त कर सकते हैं.!