November 18, 2024 1:09 PM

Kaal Bhairav Jayanti: कालभैरवाष्टमी

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

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‘ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं’….! इस वर्ष 05 दिसंबर 2023 के दिन भैरवाष्टमी मनाई जाएगी.काल भैरव अष्टमी तंत्र साधना के लिए अति उत्तम मानी जाती है.कहते हैं कि भगवान का ही एक रुप है भैरव साधना भक्त के सभी संकटों को दूर करने वाली होती है,यह अत्यंत कठिन साधनाओं में से एक होती है जिसमें मन की सात्विकता और एकाग्रता का पूरा ख्याल रखना होता है. पौराणिक मान्यताओं के आधार स्वरूप मार्गशीर्ष कृष्ष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए थे अत: इसी उपलक्ष्य में इस तिथि को व्रत व पूजा का विशेष विधान है….!

भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना द्वारा सभी शत्रुओं और पापी शक्तियों का नाश होता है और सभी प्रकार के पाप, ताप एवं कष्ट दूर हो जाते हैं. भैरवाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना जाता है. इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन-पूजन शुभ फल देने वाला होता है…!

भैरव जी की पूजा उपासना मनोवांछित फल देने वाली होती है. यह दिन साधक भैरव जी की पूजा अर्चना करके तंत्र-मंत्र की विद्याओं को पाने में समर्थ होता है. यही सृष्टि की रचना, पालन और संहारक हैं. इनका आश्रय प्राप्त करके भक्त निर्भय हो जाता है तथा सभी कष्टों से मुक्त रहता है….!

–:भैरवाष्टमी पूजन:–

भगवान शिव के इस रुप की उपासना षोड्षोपचार पूजन सहित करनी चाहिए. रात्री समय जागरण करना चाहिए व इनके मंत्रों का जाप करते रहना चाहिए. भजन कीर्तन करते हुए भैरव कथा व आरती की जाती है. इनकी प्रसन्नता हेतु इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराना शुभ माना जाता है. मान्यता अनुसार इस दिन भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं, भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहता है….!

भैरव उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है. भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं. भैरव साधना स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और सम्मोहन जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए कि जाती है. इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं…….!

मूल मंत्र- ‘ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं’।

श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए,सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है,तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है,वे इस प्रकार हैं-
1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव।

–:भैरव साधना महत्व :–

इन्हीं से भय का नाश होता है और इन्हीं में त्रिशक्ति समाहित हैं. हिंदू देवताओं में भैरव जी का बहुत ही महत्व है यह दिशाओं के रकक्षक और काशी के संरक्षक कहे जाते हैं. कहते हैं कि भगवान शिव से ही भैरव जी की उत्पत्ति हुई. यह कई रुपों में विराजमान हैं बटुक भैरव और काल भैरव यही हैं. इन्हें रुद्र, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहारक भी कहा जाता है. भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है और नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व रहा है…..!

भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है, व्यक्ति में साहस का संचार होता है. इनकी आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है, रविवार और मंगलवार के दिन इनकी पूजा बहुत फलदायी है. भैरव साधना और आराधना से पूर्व अनैतिक कृत्य आदि से दूर रहना चाहिए पवित्र होकर ही सात्विक आराधना की जाती है तभी फलदायक होती है. भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष अनेक विधियों का उल्लेख किया जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है…..!

भैरव जी शिव और दुर्गा के भक्त हैं व इनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक माना गया है न की डर उत्पन्न करने वाला इनका कार्य है सुरक्षा करना और कमजोरों को साहस देना व समाज को सही मार्ग देना. काशी में स्थित भैरव मंदिर सर्वश्रेष्ठ स्थान पाता है. इसके अलावा शक्तिपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है माना जाता है कि इन्हें स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था…..!

–:काल भैरव अष्टक:–

देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् । दिसंबर
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥
॥ फल श्रुति॥
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥
॥इति कालभैरवाष्टकम् संपूर्णम् ॥

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