श्रीगणेशाय नमः ….संकष्टी चतुर्थी व्रत हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि को आती हैं.इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है ,चतुर्थी के व्रत रखने के बाद चांद के दर्शन जरूरी माना जाता हैं.शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है,और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है…!
-:श्रीगणेश संकष्ट चतुर्थी पूजा विधि:-
संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह में स्नान कर गणेश जी की पूजा की जाती है.हाथ में जल,अक्षत् और फूल लेकर व्रत का संकल्प लिया जाता है,इसके बाद पूजा स्थल पर एक चौकी पर गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित किया जाता है.दिनभर उपवास रखें.गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर सिंदूर चढ़ाये. उन्हें पुष्प,अक्षत,चंदन,धूप-दीप,और शमी के पत्ते अर्पित करें.व्रत का संकल्प लेकर घी का दीपक जलाकर श्रद्धा भाव से आरती करें.गणेश जी को दुर्वा जरूर चढ़ाएं और लड्डुओं एवं केले का भोग लगाएं…!
गणपति जी को अक्षत्,रोली,फूलों की माला,धूप, वस्त्र आदि से सुशोभित करें.इसके बाद गणेश जी के मंत्रों का जाप करें.रात में चंद्रमा को जल से अर्घ्य दें.इसके बाद उनके अतिप्रिया 21 दूर्वा अर्पित करें और उनके पसंदीदा केले/लड्डूओं वा मोदकों का भोग लगाएं,श्री गणेश जी को दूर्वा अर्पित करते समय ओम गं गणपतये: नम: मंत्र का जाप करें.व्रत कथा पढ़े अंत में सभी लोगों को प्रसाद वितरित कर पूजा संपन्न करें…!
-:श्रीगणेश संकष्ट चतुर्थी महत्व:-
संकष्टी चतुर्थी पर श्री गणेश की पूजा दिन में दो बार करने का विधान है.संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी की उपासना करने से में सुख-समृद्धि, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि प्राप्ति होती है. भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है.इसलिए संकष्टी चतुर्थी के दिन की गई पूजा से व्यक्ति के सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं….
!
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत करने से घर-परिवार में आ रही विपदा दूर होती है,कई दिनों से रुके मांगलिक कार्य संपन्न होते है तथा भगवान श्री गणेश असीम सुखों की प्राप्ति कराते हैं,माह की किसी भी चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा के दौरान संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत की कथा पढ़ना अथवा सुनना जरूरी होता है,इससे संबंधित अनेकानेक कथाएं प्रचलित हैं,उन्ही कथाओं में से एक काठ निम्नवत हैं..!
-:श्रीगणेश संकष्ट चतुर्थी कथा:-
पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे,तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए,उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे,देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है,तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया..!
इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा…!
भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए,परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा,तभी उन्हें एक उपाय सूझा,गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए,परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे,तब शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा..!
तब गणेश जी ने कहा – ‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं,’ यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी,इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप,दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे,इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी,चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी,पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी..!
नोट :- अपनी पत्रिका से सम्वन्धित विस्तृत जानकारी अथवा ज्योतिष,अंकज्योतिष,हस्तरेखा,वास्तु एवं याज्ञिक कर्म हेतु सम्पर्क करें…!