Diwali Shri Maha Laxmi Pujan Vidhi: दीपावली/श्रीमहालक्ष्मी वृहद् पूजन विधि

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on email
Share on print

ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा….महालक्ष्मी का प्राकट्यपर्व दीपावली 12 नवंबर, रविवार को है.इस दिन महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना के साथ-साथ श्रीगणेश, कुबेर,नवग्रह,षोडशमातृका,सप्तघृत मातृका,दसदिक्पाल और वास्तुदेव का आवाहन-पूजन करने से वर्षपर्यंत अष्टलक्ष्मी की कृपा बनी रहती है जिनसे परिवार में मांगलिक कार्यों और सुख-शान्ति की वृद्धि से आत्मसुख मिलता है.इस दिन घर में आ रही लक्ष्मी की स्थिरता के लिए देवताओं के कोषाध्यक्ष धन एवं समृद्धि के स्वामी कुबेर का पूजन-आराधना करने से नष्ट हुआ धन भी वापस मिल जाता है और कर्ज से मुक्ति के द्वार खुल जाते हैं.व्यापार में बड़ी सफलता और यश प्राप्ति के लिए कुबेर यंत्र का पूजन आवश्यक है इसे किसी भी तरह के सोने,चांदी,अष्टधातु,तांबे,भोजपत्र,आदि पर निर्मितकर पूजन करना श्रेष्ठ होता है.इन्हीं वस्तुओं पर यंत्रो के राजा ‘श्रीयंत्र’ भी निर्मित कर सकते हैं…!

किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है,इसलिए आपको भी सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा करनी चाहिए,हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें.मंत्र पढ़ें :-
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ.इतना कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें….!
अर्घा में जल लेकर बोलें- एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:। रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं,इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:,दर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं,गणेश जी को वस्त्र पहनाएं,इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि..!

पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें:- इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:,मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:,प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें,दं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:,इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:,अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:….!

इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें……!

-:कलश पूजन:-
घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें,कलश के अंदर सुपारी,दूर्वा, अक्षत,मुद्रा रखें,कलश के गले में मोली लपेटें,नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें,हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें:-
ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:,अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:,(अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ,स्थापयामि पूजयामि॥)
इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण देवता की पूजा करें,इसके बाद देवराज इन्द्र फिर कुबेर की पूजा करें….!

-:श्रीमहालक्ष्मी पूजन:-
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करें
ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें,हाथ में अक्षत लेकर बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ,एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं,पुनराचमनीयम्..!
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः,ॐ लक्ष्म्यै नमः, इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं,इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं,‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः,अनेकैः कुसुमैः शुभैः.पूजयामि शिवे,भक्तया,कमलायै नमो नमः.ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि.’इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं.अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं….!

-:लक्ष्मी देवी की अंग पूजा:-
बायें हाथ में अक्षत लेकर दायें हाथ से थोड़ा-थोड़ा छोड़ते जायें.ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि,ऊं चंचलायै नम:जानूं पूजयामि,ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि,ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि,ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि,ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि,ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि,ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि,ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि…..।

-:अष्टसिद्धि पूजा:-
पूजन की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें.ऊं अणिम्ने नम:,ओं महिम्ने नम:,ऊं गरिम्णे नम:,ओं लघिम्ने नम:,ऊं प्राप्त्यै नम:,ऊं प्राकाम्यै नम:,ऊं ईशितायै नम:ओं वशितायै नम:..!

-:अष्टलक्ष्मी पूजन:-
अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें,ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:,ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:,ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:,ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:,ऊं लक्ष्म्यै नम:,ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:,ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:,ऊं योग लक्ष्म्यै नम:…!

-:नैवैद्य अर्पण:-
पूजन के पश्चात देवी को “इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें,मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें,प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें,इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:,इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि,अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:…!
लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें,पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें :–

-:क्षमा प्रार्थना:-

न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो,न चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः.!
नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनं,परं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणं.!!

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया,विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्याच्युतिरभूत्.!
तदेतत् क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे,कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति.!!

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः संति सरलाः,परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुतः.!
मदीयोयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे,कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति.!!

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता,न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया.!
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे,कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति.!!

परित्यक्तादेवा विविध सेवाकुलतया,मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि.!
इदानींचेन्मातः तव यदि कृपा,नापि भविता निरालंबो लंबोदर जननि कं यामि शरणं.!!

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा,निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः.!
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं,जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ.!!

चिताभस्म लेपो गरलमशनं दिक्पटधरो,जटाधारी कंठे भुजगपतहारी पशुपतिः.!
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं,भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदं.!!

न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे,न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः.!
अतस्त्वां सुयाचे जननि जननं यातु मम वै,मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः.!!

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः,किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः.!
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाधे,धत्से कृपामुचितमंब परं तवैव.!!

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं,करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि.!
नैतच्छदत्वं मम भावयेथाः,क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरंति.!!

जगदंब विचित्रमत्र किं,परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि.!
अपराधपरंपरावृतं नहि माता,समुपेक्षते सुतं.!!

मत्समः पातकी नास्ति,पापघ्नी त्वत्समा नहि.!
एवं ज्ञात्वा महादेवि,यथायोग्यं तथा कुरु.!!

नोट :- अपनी पत्रिका से सम्वन्धित विस्तृत जानकारी अथवा ज्योतिष, अंकज्योतिष,हस्तरेखा, वास्तु एवं याज्ञिक कर्म हेतु सम्पर्क करें.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on email
Share on print
नये लेख