“जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल”…..”वर्ष 2024 में बुद्धवार 17 जनवरी को गुरू गोबिंद सिंह जयंती मनाई जाएगी,सिखों के दसवें गुरू गोबिंग सिंह जी की जयंती,जानें इस दिन का महत्व और सिखों के दसवें गुरू से जुड़ा इतिहास.गुरू गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरू थे.उनका जन्म पौष मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन 1666 में बिहार के पटना शहर में हुआ था.!
इनके पिता श्री गुरू तेग बहादुर सिंह जी सिखों के 9वें गुरू थे. इनके शुरुवाती चार साल पटना में ही बीते. इसके बाद उनका परिवार आनंदपुर साहिब आ गया.!
श्रीगुरू गोबिंद सिंह जी ने योद्धा बनने के लिए कला सीखी और साथ ही संस्कृत और फारसी भाषा का भी ज्ञान लिया. इनके पिता ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ खुद का बलिदान दे दिया.!
लोगों को धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए दिल्ली के चांदनी चौक पर इनके पिता गुरू तेग बहादुर जी का गला औरंगजेब ने सिर धड़ से अलग कर दिया. इसके बाद उनके बेटे गुरू गोबिंद सिंह जी को 10वां गुरू घोषित किया गया. उ समय उनकी उम्र 10 साल थी.!
सन 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोविंद साहब ने खालसा पंथ की स्थापना की. उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया.!
श्री गुरु गोबिंद सिंह जयंती के दान भक्त इकट्ठा होते हैं और आशीर्वाद के लिए अपनी प्रार्थना करते हैं. बड़ी सभाओं का आयोजन किया जाता है जिसमें वे भक्ति गीत गाते हैं और वयस्कों और बच्चों के साथ लंगड़ खाते हैं. इसके बाद उनके पूजा स्थल गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थना की जाती है. उत्सव में भोजन भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है. इस शुभ अवसर पर, कई भक्त प्रार्थना करने और पवित्र सरोवर में डुबकी लगाने के लिए पंजाब के स्वर्ण मंदिर में आते हैं.!
“सिखों द्वारा पालन किए जाने वाले पांच ‘ककार'”
केश – बिना कटे बाल
कंघा – लकड़ी की कंघी
कारा – कलाई पर पहना जाने वाला लोहे या स्टील का कड़ा
कृपान – एक तलवार
कचेरा- छोटी जांघिया
श्रीगुरु गोबिंद सिंह एक कवि, आध्यात्मिक गुरु, योद्धा, दार्शनिक और लेखक भी थे. 1708 में उनका निधन हो गया लेकिन उनके मूल्य और विश्वास उनके माध्यम से जीवित हैं.!
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