नमो नारायण…..विष्णु का एक अवतार,यह अश्वमुखी होने के कारण इसे ‘हयग्रीव’ नाम प्राप्त हुआ था,इसे ‘हयशिरस्’ ‘अश्वशिरस्’ नामांतर भी प्राप्त थे वर्ष 2023.में हयग्रीव जयन्ती 30 अगस्त को हैं..!
स्वरूपवर्णन अगस्त्य ऋषि को कांची नगरी में इसके दिये दर्शन का वर्णन ब्रह्मांड में प्राप्त है, जहाँ इसे शंख,चक्र,अक्षवलय एवं ‘पुस्तक’ {ग्रंथ} धारण करनेवाला कहा गया है.! [ब्रह्मांड. ४.५, ९.३५-४०]..!
वैदिक साहित्य में इस साहित्य में सर्वत्र इसे विष्णु का नहीं, बल्कि यज्ञ का अवतार कहा गया है,किन्तु तैत्तिरीय आरण्यक में यज्ञ को विष्णु का ही एक प्रतिरूप कथन किया गया है,इससे प्रतीत होता है कि, वैदिक एवं पौराणिक साहित्य मतें निर्दिष्ट हयग्रीवकथा का स्तोत्र एक ही है,जिसका प्रारंभिक रूप वैदिक साहित्य में पाया जाता है,पंचविश ब्राह्मण में हयग्रीव की कथा निम्नप्रकार बतायी गयी है,एक बार अग्नि, इंद्र, वायु एवं यज्ञ {विष्णु} ने एक यज्ञ किया.!
इस यज्ञ के प्रारंभ में यह तय हुआ था कि,यज्ञ को जो हविर्भाग प्राप्त होगा,वह सभी देवताओं में बाँट दिया जायेगा,उस समय यज्ञ को सर्वप्रथम हविर्भाव प्राप्त हुआ,जिसे ले कर वह भाग गया,इस कारण बाकी सारे देव इसका पीछा करने लगे,अपने दैवी धनुष की सहायता से यज्ञ ने सभी देवताओं को हरा दिया,अन्त में एक दीमक के द्वारा देवों ने यज्ञ के धनुष की प्रत्यंचा कटवा दी,एवं इस प्रकार असहाय हुए यज्ञ का मस्तक कटवा दिया,तत्पश्चात् अपने कृतकर्म के लिए यज्ञ देवों से माफ़ी माँगने लगा,इस पद देवों ने अश्विनों के द्वारा एक अश्वमुख यज्ञ के कबंध पर लगा दिया [पं. ब्रा. ७.५.६];[ तै. आ. ५.१];[ तै. सं. ४.९.१] .!
पौराणिक साहित्य में यही कथा स्कंद पुराण आदि पौराणिक साहित्य में कुछ मामूली फर्क के साथ दी गयी है,एक बार देवताओं की प्रतियोगिता में विष्णु सर्वश्रेष्ठ देव सिद्ध हुआ,इस कारण क्रुद्ध हो कर,ब्रह्मा ने उसे उसका टूट जाने का शाप दिया,आगे चल कर एक अश्वमुख लगा कर यह देवताओं के यज्ञ में शामिल हुआ,यज्ञसमाप्ति के पश्चात् इसने धर्मारण्य में तप किया, जहाँ शिव की कृपा से इसका अश्वमुख नष्ट को कर इसे अपना पूर्वरूप प्राप्त हुआ.!
हयग्रीव असुर का वध पौराणिक साहित्य में हयग्रीव एवं मधुकैटभ असुरों का वध करने के लिए श्रीविष्णु का हयग्रीव नामक अवतार होने का निर्देश प्राप्त है,एक बार हयग्रीव नामक असुर ने पृथ्वी में स्थित वेदों का हरण किया,उस पर ब्रह्मादि सारे देव हयग्रीव की शिकायत ले कर विष्णु के पास गये,पश्चात् विष्णु आदि देव हयग्रीव के पास पहुँच गये,जहाँ इन्होनें देखा कि, वह असुर भूमि पर अपने धनुष रख कर पास ही सो गया है,तदुपरांत विष्णु ने पास ही स्थित दीमक की सहायता से हयग्रीव असुर केधनुष की प्रत्यंचा को तोड़ डाला, एवं उसका नाश किया,हयग्रीव के धनुष की प्रत्यंचा टूटते ही विष्णु का स्वयं का मुख भी टूट गया, जो आगे चल कर विश्र्वकर्मन् की सहायता से पुनः जोड़ा गया,उस समय विश्वकर्मन् ने विष्णु को जो मुख प्रदान किया था, वह अश्व का था,इस कारण हयग्रीव असुर का वध करनेवाले इस अवतार को ‘हयग्रीव’ नाम प्राप्त हुआ [दे. भा. १.५].!
देवी भागवत के अनुसार, हयग्रीव असुर को देवी का आशीर्वाद था कि, केवल ‘हयग्रीव’ नाम धारण करनेवाला व्यक्ति ही उसका वध कर सकती है । इस कारण हयग्रीव का अवतार ले कर विष्णु को इसका वध करना पड़ा,विष्णु के इस अवतार का निर्देश महाभारत में भी प्राप्त है [म. उ. १२८.४९];[ म. शां. १२२.४६, २३६.५६],रसातल में रहनेवाले मधु एवं कैकटक नामक राक्षसों का वध भी इसी अवतवार के द्वारा होने का निर्देश महाभारत में प्राप्त है [म. शां. ३३५.५२-५५];[ भा. ५.१८. १-६],क्रम-पाठ n. इसीके आराधना से पंचाल ऋषि ने वेदों का क्रमपाठ प्राप्त किया था [म. शां. ३३५.६९-७१].।
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