Sakat Chauth 2024 Date: संकष्टी चतुर्थी व्रत

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

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श्रीगणेशाय नमः…प्रत्येक महीने पड़ने वाली चतुर्थी तिथि भगवान गणेश जी को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह में दो चतुर्थी तिथि आती हैं,कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) कहा जाता है जबकि शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है.!

संकष्टी चतुर्थी व्रत (Sankashti Chaturthi Vrat) को संकट हरने वाला व्रत माना गया है.भक्तों के बीच इस व्रत का विशेष महत्व है,संकष्टी चतुर्थी के दिन विधि-विधान से गणेश जी का पूजा करने से भक्तों की सभी परेशानियां और बाधाएं दूर हो जाती हैं,साथ ही भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है.!

“2024 संकष्टी चतुर्थी कब-कब है.? (वर्ष 2024 संकष्टी चतुर्थी की सूची)

जनवरी 2024 29 जनवरी,(सोमवार)
फरवरी 2024 28 फरवरी (बुधवार)
मार्च 2024 29 मार्च (शुक्रवार)
अप्रैल 2024 28 अप्रैल (रविवार)
मई 2024 27 मई (सोमवार)
जून 2024 25 जून (मंगलवार)
जुलाई 2024 24 जुलाई (बुधवार)
अगस्त 2024 23 अगस्त (शुक्रवार)
सितम्बर 2024 21 सितम्बर (शनिवार)
अक्तूबर 2024 20 अक्तूबर (रविवार)
नवम्बर 2024 19 नवम्बर (मंगलवार)
दिसम्बर 2024 19 दिसम्बर (गुरुवार)

-:’संकष्टी चतुर्थी महत्व’:-
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है।- ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’। इस दिन विधि विधान से पूजा अर्चना करने से भगवान गणेश अपने भक्तों के हर दुख को हर लेते हैं। अतः संकष्टी चतुर्थी को पूरे विधि-विधान से गणपति की पूजा करें.!

इस दिन भगवान गणेशजी की पूजा करने से घर से सभी नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर की सभी परेशानियां दूर होती हैं। साथ ही यश, धन, वैभव और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

चतुर्थी के दिन सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखने से इस व्रत का पूरा लाभ मिलता हैं।

-:’संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि’:-
इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद स्नादि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहन लें।
इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है।
इसके बाद गणपति की पूजा की शुरुआत करें।
गणपति की पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।
सबसे पहले आप गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें।
पूजा में आप तिल, गुड़, लड्डू, फूल ताम्बे के कलश में पानी, धुप, चन्दन, प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रख लें।
ध्यान रहे कि पूजा के समय आप देवी दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति भी अपने पास रखें। ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है।
भगवान गणेश को रोली लगाएं, फूल और जल अर्पित करें।
संकष्टी को भगवान् गणपति को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं और फिर धूप-दीप जलाएं।
इसके बाद शाम के समय चांद के निकलने से पहले आप गणपति की पूजा करें और संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (sankashti Chaturthi Vrat katha) का पाठ करें।
पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें। रात को चांद देखने के बाद व्रत खोला जाता है और इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण होता है।

-:’संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा’:-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्‍मी जी के साथ तय हो गया था। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया।

जब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को न्योता नहीं गया है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।

विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेश जी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।

इतनी बात कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।

होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।

अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।

तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए। गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?

पास के खेत में ब्राह्मण काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। ब्राह्मण अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते ब्राह्मण ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।

वह ब्राह्मण कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूर्ख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा।

ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।

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