12 Jyotirlingas in India | भारत में 12 ज्योतिर्लिंग
ॐ नमः शिवाय……भारत वर्ष में अनेकानेक धर्मस्थल है.भारत देश धार्मिक आस्था और विश्वास का देश है.यहां शिवलिंग की विशेष रुप से पूजा की जाती है.!
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
गुजरात में स्थित श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत वर्ष में गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे सोमनाथ नामक विश्वप्रसिद्ध मंदिर में यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है,पहले यह क्षेत्र प्रभास क्षेत्र के नाम से जाना जाता था,शंकरजी के बारह ज्योतिर्लिंग में से सोमनाथ को आद्य ज्योतिर्लिंग माना जाता है.।
यह स्वयंभू देवस्थान होने के कारण और हमेशा जागृत होने के कारण लाखों भक्तगण यहाँ आकर पवित्र-पावन हो जाते है,यहीं भगवान् श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला का संवरण किया था.!
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृ्थ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग है.इस मंदिर कि यह मान्यता है,कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं देव चन्द्र ने किया था.विदेशी आक्रमणों के कारण यह 17 बार नष्ट हो चुका है. हर बार यह बनता और बिगडता रहा है.!
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये.
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।I
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं.
सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥
जय सोमनाथ,जय जय सोमनाथ.
जय जय जय सोमनाथ॥
-:’Somnath Jyotirlingas: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर कथा :–
चन्द्रमा और दक्ष प्रजापति दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं,उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था,किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था.उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं,उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा अपने पिता को सुनाई.।
दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया,किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा,अंततः दक्ष ने कुद्ध होकर उन्हें क्षयग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया,इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए.।
उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रूक गया,चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई,चंद्रमा भी बहुत दु:खी और चिंतित थे.।
-:’Somnath Jyotirlingas: चन्द्र देव की भगवान् शिव आराधना’:-
उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए,सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा :-
“चंद्रमा अपने शाप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभास क्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान् शिव की आराधना करें,उनकी कृपा से अवश्य ही इनका शाप नष्ट हो जाएगा और ये रोगमुक्त हो जाएंगे, उनके कथनानुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान् की आराधना का सारा कार्य पूरा किया,उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया.।
-:’Somnath Jyotirlingas: शिवजी का चन्द्रमा को वरदान’:-
इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया,उन्होंने कहा :–
“चंद्रदेव.! तुम शोक न करो,मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही,साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी,कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी,किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी.।
इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा,चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे,सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत् करने लगे.।
शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान् से प्रार्थना की कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहां निवास करें.।
-:Somnath Jyotirlingas: चन्द्रम देव् अथात सोम की भगवान् शंकर से प्रार्थना’:-
भगवान् शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहां रहने लगे, पावन प्रभास क्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ – ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से बताई गई है.।
चंद्रमा का एक नाम सोम भी है,उन्होंने भगवान् शिव को ही अपना नाथ अर्थात स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी,इसी लिए इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ के नाम से जाना जाता है,इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं.तथा वह भगवान् शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है,उनके लौकिक-पारलौकिक सारे कृत्य,स्वयमेव सफल हो जाते हैं.।
ज्योतिर्लिंग के प्राद्रुभाव की एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार राजा दक्ष ने अपनी सताईस कन्याओं का विवाह चन्द्र देव से किया था.सत्ताईस कन्याओं का पति बन कर चन्द्रदेव अपार प्रसन्न थे.सभी कन्याएं भी इस विवाह से प्रसन्न थी.इन सभी कन्याओं में चन्द्र देव सबसे अधिक रोहिंणी नामक कन्या पर मोहित थे़,यह बात दक्ष को मालूम हुई तो उन्होनें चन्द्र देव को समझाया,लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. उनके समझाने का प्रभाव यह हुआ कि उनकी आसक्ति रोहिणी के प्रति और अधिक हो गई.यह जानने के बाद राजा दक्ष ने देव चन्द्र को शाप दे दिया कि,जाओं आज से तुम क्षयरोग के मरीज हो जाओ.श्रापवश देव चन्द्र् क्षय रोग से पीडित हो गए.उनके सम्मान और प्रभाव में भी कमी हो गई.इस शाप से मुक्त होने के लिए वे भगवान ब्रह्मा की शरण में गए.इस शाप से मुक्ति का ब्रह्म देव ने यह उपाय बताया कि जिस जगह पर आज सोमनाथ मंदिर है,उस स्थान पर आकर चन्द देव को भगवान शिव का तप करने के लिए कहा.भगवान ब्रह्मा जी के कहे अनुसार भगवान शिव की उपासना करने के बाद चन्द्र देव श्राप से मुक्त हो गए.!
उसी समय से यह मान्यता है, कि भगवान चन्द इस स्थान पर शिव तपस्या करने के लिए आये थे. तपस्या पूरी होने के बाद भगवान शिव ने चन्द्र देव से वर मांगने के लिए कहा. इस पर चन्द्र देव ने वर मांगा कि हे भगवान आप मुझे इस श्राप से मुक्त कर दीजिए. और मेरे सारे अपराध क्षमा कर दीजिए.
इस श्राप को पूरी से समाप्त करना भगवान शिव के लिए भी सम्भव नहीं था. मध्य का मार्ग निकाला गया, कि एक माह में जो पक्ष होते है.एक शुक्ल पक्ष और कृ्ष्ण पक्ष,एक पक्ष में उनका यह श्राप नहीं रहेगा. परन्तु इस पक्ष में इस श्राप से ग्रस्त रहेगें. शुक्ल पक्ष और कृ्ष्ण पक्ष में वे एक पक्ष में बढते है, और दूसरे में वो घटते जाते है. चन्द्र देव ने भगवान शिव की यह कृ्पा प्राप्त करने के लिए उन्हें धन्यवाद किया. ओर उनकी स्तुति की.!
उसी समय से इस स्थान पर भगवान शिव की इस स्थान पर उपासना करना का प्रचलन प्रारम्भ हुआ. तथा भगवान शिव सोमनाथ मंदिर में आकर पूरे विश्व में विख्यात हो गए. देवता भी इस स्थान को नमन करते है. इस स्थान पर चन्द्र देव भी भगवान शिव के साथ स्थित है.!
-:’शिवस्त्रोत’:-
नमामि शमीशान निर्वाण रूपं,विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं !
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं,चिदाकाश माकाश वासं भजेयम !!१!!
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं,गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं !
करालं महाकाल कालं कृपालं,गुणागार संसार पारं नतोहं !!२!!
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं,मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं !
स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा,लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा !!३!!
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं,प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं !
म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं,प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि !!४!!
प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं,अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम !
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम,भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं !!५!!
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी,सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी !
चिदानंद संदोह मोहापहारी,प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी !!६!!
न यावत उमानाथ पादार विन्दम,भजंतीह लोके परे वा नाराणं !
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं,प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो !!७!!
ओ३म नमः शिवाय.!ओ३म नमः शिवाय.!हर हर भोले नमः शिवाय.!I
ओ३म नमः शिवाय.!ओ३म नमः शिवाय.!हर हर भोले नमः शिवाय.!I