श्रीमन्न लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः…पञ्चदिवसीय प्रकाश पर्व के चतुर्थ पर्व “गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट पर्व की आपको मंगल कामना.गोवर्धन पूजा जिसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है.कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है. इस वर्ष 14 नवम्बर 2023 को गोवर्धन पूजा के साथ ही अन्नकूट पर्व भी मनाया जायेगा,यह पर्व उत्तर भारत में विशेषकर मथुरा क्षेत्र में बहुत ही धूम-धाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है. दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है.!
-:”कृष्ण भक्ति है गोवर्धन पूजा”:-
यह उत्सव कृष्ण की भक्ति व प्रकृत्ति के प्रति उपासना व सम्मान को दर्शाता है. भारत के लोकजीवन इस त्यौहार का महत्व प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है. अनेक मान्यताओं और लोककथा से जुडा़ यह पर्व जीवन के हर क्षेत्र में प्रेम व समर्पण का भाव दर्शाता है..!
-:”गोवर्धन पूजन”:-
गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है. यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है श्रीमद्भागवत में इस बारे में कई स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होते हैं जिसके अनुसार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ करवाई थी. इसलिए आज भी दीपावली के दूसरे दिन सायंकाल ब्रज में गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन होता है..!
भगवान श्रीकृष्ण इसी दिन इन्द्र का अहंकार धवस्त करके पर्वतराज गोवर्धन जी का पूजन करने का आहवान किया था. इस विशेष दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है तथा संध्या समय गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है. इस दिन अग्नि देव, वरुण, इन्द्र, इत्यादि देवताओं की पूजा का भी विधान है. इस दिन गाय की पूजा की जाती है फूल माला, धूप, चंदन आदि से इनका पूजन किया जाता है. गोवर्धन पूजा ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है.!
-:”प्रकृति की उपासना है गोवर्धन पूजा”:-
यह पर्व विशेष रुप से प्रकृति को उसकी कृपा के लिये धन्यवाद करने का दिन है. गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ द्वारा कृष्ण ने लोगों को प्रकृत्ति की सुरक्षा व उसके महत्व को समझाया. गोवर्धन पूजा के मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु मथुरा में गोवर्धन पर्वत कि परिक्रमा के लिए आते है, जिनमें विदेशी भक्तों की संख्या भी बडी तादाद में रहती है.!
-:”गोवर्धन पूजा महत्व”:-
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई मानी जाती है. गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है. जिसके अनुसार ब्रजवासी देवराज इन्द्र की पूजा किया करते थे क्योंकि देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर वर्षा का आशिर्वाद देते जिससे अन्न पैदा होता. किंतु इस पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासीयों को समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है.!
ब्रज के लोगों ने श्री कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी. जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उनके अंह को ठेस पहुँची क्रोधित होकर उन्होने ने मेघों को गोकुल में जाकर खूब बरसने का आदेश दिया आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें. ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गये तथा श्री कृष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा.!
जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गये. ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा. यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगी सात दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा. तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है.!
-:”गोवर्धन पूजा सुख समृद्धि का आगमन”:-
गोवर्धन पूजा करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की प्राप्ति होती है. इस दिन घर के आँगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है. गोवर्धन देव से प्रार्थना कि जाती है कि पृथ्वी को धारण करने वाले भगवन आप हमारे रक्षक है, मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें. यह दिन गौ दिवस के रुप में भी मनाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है.!
जिन क्षेत्रों में गाय होती है, उन क्षेत्रों में गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है. गोवर्धन पर्व पर विशेष रुप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है. गोबर से बने, श्री कृ्ष्ण पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है. गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढाये जाते हैं तथा सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग का नैवैद्ध चढाया जाता है.!
-:”अन्नकूट पर्व”:-
अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबन्धित है. इस दिन भगवान विष्णु जी को 56 भोग लगाए जाते हैं. की संज्ञा दी जाती है. इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है. उसपर अन्नपूर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है. अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन होता है. इस दिन परिवार के सदस्य एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते हैं.!
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