ॐ नमः शिवाय…रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना,जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं,शिव को ही रुद्र कहा जाता है.!
“रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:” अर्थात भोले शंकर सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं,हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं,रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है,रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं।,रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है,शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है.!
शिवार्चन-रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं,ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है.!
रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- “सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:” अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं.!
तथापि रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है,श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है.!
-:’रुद्राभिषेक…..?’:-
अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान करना अथवा कराना,रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना,यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है.!
वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है,अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं,शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना,वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है.!
-:’रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं..?’:-
रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है.”रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:” अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं.! वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं.!
-:रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ..?’:-
प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई.ब्रह्माजी जब अपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है,परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ,इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए,इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए,कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ.!
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे,उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है…..? तथा इसका फल क्या है….? भगवान शिव ने कहा – हे प्रिये.! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोष स्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है,जो मनुष्य “शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी” से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ,जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए.!
-:’रुद्राभिषेक पाठ एवं उसके भेद’:-
पूरा संसार अपितु पाताल से लेकर मोक्ष तक जिस अक्षर की सीमा नही..! ब्रम्हा आदि देवता भी जिस अक्षर का सार न पा सके उस आदि अनादी से रहित निर्गुण स्वरुप ॐ के स्वरुप में विराजमान जो अदितीय शक्ति भूतभावन कालो के भी काल गंगाधर भगवान महादेव को प्रणाम करते है.!
अपितु शास्त्रों और पुरानो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसे याग्यों से भी प्राप्त नही होता.!
स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते है.संसार में ऐसी कोई वस्तु,कोई भी वैभव,कोई भी सुख,ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके.वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है. लेकिन मुख्या पांच ही प्रकार है.!
रूपक या षडड पाठ – रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ खा गया है.!
सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी के दस अध्यायों का षडडंग रूपक पाठ कहलाता है षडडंग पाठ में विशेष बात है की इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवे अध्याय की आवृति नही होती है.!
रुद्री या एकादिशिनि – रुद्राध्याय की गयी ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है.!
लघुरुद्र- एकादिशिनी रुद्री की ग्यारह अव्रितियों के पाठ के लघुरुद्र पाठ कहा गया है.!
यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है, तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादिशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होती है.!
महारुद्र — लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है.!
अतिरुद्र – महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 1331 आवृति पथ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है.!
1)अनुष्ठात्मक
(2) अभिषेकात्मक
(3) हवनात्मक ,
तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन अनुष्ठानो की अत्यधिक फल है व तीनो का फल समान है.!
-:’रुद्राभिषेक से लाभ’:-
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा,रुद्राभिषेक अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार से हैं.!
जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै
दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।
मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।
बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।
जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।
तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः।
प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।
केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः।
शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।
श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!!
सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।।
जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।
पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।
महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा।
कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।
–:’अर्थात’:-
जल से रुद्राभिषेक करने पर — वृष्टि होती है।
कुशा जल से अभिषेक करने पर — रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है।
दही से अभिषेक करने पर — पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
गन्ने के रस से अभिषेक करने पर — लक्ष्मी प्राप्ति
मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर — धन वृद्धि के लिए।
तीर्थ जल से अभिषेक करने पर — मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इत्र मिले जल से अभिषेक करने से — बीमारी नष्ट होती है ।
दूध् से अभिषेककरने से — पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण
गंगाजल से अभिषेक करने से — ज्वर ठीक हो जाता है।
दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से — सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू।
घी से अभिषेक करने से — वंश विस्तार होती है।
सरसों के तेल से अभिषेक करने से — रोग तथा शत्रु का नाश होता है।
शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से —- पाप क्षय हेतू।
इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व रूप सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद सेसमृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति.!
-:’जल से अभिषेक’:-
हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक कर.!
सर्वप्रथम भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें तत्पश्चात तांबे को छोड़ अन्य किसी भी पात्र विशेषकर चांदी के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें,.!
ॐ इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र
||ॐ नम: शिवाय||
का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करेत हुए
|ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा|
मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
-:’दूध से अभिषेक’:-
शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें
भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें।
अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। खासकर तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए। इससे ये सब मदिरा समान हो जाते हैं। तांबे के पात्र में जल का तो अभिषेक हो सकता है लेकिन तांबे के साथ दूध का संपर्क उसे विष बना देता है इसलिए तांबे के पात्र में दूध का अभिषेक बिल्कुल वर्जित होता है। क्योंकि तांबे के पात्र में दूध अर्पित या उससे भगवान शंकर को अभिषेक कर उन्हें अनजाने में आप विष अर्पित करते हैं। पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ श्री कामधेनवे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए
||ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम: ||
मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
-:’फलों के रस से अभिषेक’:-
अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें।
भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें,
|| ॐ कुबेराय नम:|| का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र
||ॐ नम: शिवाय||
का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर फलों का रस की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए
|ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा| मंत्र का जाप करें, शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
-:’सरसों के तेल से अभिषेक’:-
ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें।
भगवान शिव के ‘प्रलयंकर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें फिर ताम्बे के पात्र में ‘सरसों का तेल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
|| ॐ भं भैरवाय नम: ||
का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र
||ॐ नम: शिवाय||
का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए
||ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा||
मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
:’शहद मिश्रित गंगा जल’:-
संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें।
सबसे पहले भगवान शिव के ‘चंद्रमौलेश्वर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ” शहद मिश्रित गंगा जल” भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें,
|ॐ चन्द्रमसे नम: |का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र
||ॐ नम: शिवाय’ ||का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें अभिषेक करते हुए
|ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा’| का जाप करें शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें।
-:’घी व शहद से अभिषेक’:-
रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें।
इसके लिये सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘त्रयम्बक’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘घी व शहद’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें फिर
|ॐ धन्वन्तरयै नम:| का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र
|| ॐ नम: शिवाय|| का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें अभिषेक करते हुए
|ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा| का जाप करें शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें.!
-:’केसर मिश्रित जल से अभिषेक’:-
आकर्षक व्यक्तित्व का प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर के मिश्रण से अभिषेक करें।
सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘नीलकंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें चाँदी अथवा स्टील के पात्र में ‘कुमकुम केसर और पंचामृत’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें –
|ॐ उमायै नम:| का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र
||ॐ नम: शिवाय|| का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें पंचाक्षरी मंत्र पढ़ते हुए पात्र में फूलों की कुछ पंखुडियां दाल दें-||ॐ नम: शिवाय|| फिर शिवलिंग पर पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें. अभिषेक का मंत्र
|ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहास्वाहा| शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें।
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