नमो नारायण…. शीतलाष्टमी का पर्व होली के सम्पन्न होने के कुछ दिन पश्चात मनाया जाता है. देवी शीतला की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से आरंभ होती है. शीतला अष्टमी पर्व मंगलवार 02,अप्रैल 2024 दिन मनाई जाएगी. शीतला अष्टमी पर्व के दिन शीतला माता का व्रत एवं पूजन किया जाता है. शीतला अष्टमी के दिन शीतला माँ की पूजा अर्चना में बासी ठंडा खाना ही माता को भोग लगया जाता है जिसे बसौडा़ कहा जाता हैं और यही बासा भोजन प्रसाद रूप में खाया जाता है तथा यही नैवेद्य के रूप में समर्पित सभी भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.!
-:”रोगों से मुक्ति दिलाता शीतलाष्टमी व्रत”:-
स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है. मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी. शीतला माता एक प्रमुख हिन्दू देवी के रूप में पूजी जाती है. अनेक धर्म ग्रंथों में शीतला देवी के संदर्भ में वर्णित है, स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग कि देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं.!
-:”शीतला अष्टमी पूजन”:-
शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व देवी को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग ‘बसौड़ा’ उपयोग में लाया जाता है. अष्टमी के दिन बासी वस्तुओं का नैवेद्य शीतला माता को अर्पित किया जाता है. इस दिन व्रत-उपवास किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है. कथा समाप्त होने पर मां की पूजा अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक को पढा़ जाता है, शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा को दर्शाता है, साथ ही साथ शीतला माता की वंदना उपरांत उनके मंत्र का उच्चारण किया जाता है…!
पूजा को विधि विधान के साथ पूर्ण करने पर सभी भक्तों के बीच मां के प्रसाद बसौडा़ को बांटा जाता है, संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से भी विख्यात है. मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में समस्त शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं, ज्वर, चेचक, नेत्र विकार आदी रोग दूर होते हैं.!
-:”शीतला सप्तमी कथा”:-
शीतला सप्तमी का व्रत संतान की सुरक्षा एवं आरोह्य प्राप्ति के लिए किया जाता है. इस दिन व्रत रखने के साथ ही शीतला सप्तमी कथा भी करनी चाहिए. शीतला सप्तमी कथा को सुनने और पढ़ने से शुभ फलों में वृद्धि होती है.!
शीतला सप्तमी कथा इस प्रकार है : – एक गांव में एक वृद्ध स्त्री अपनी बहुओं के साथ रहती है थी और सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही होती है. एक बार शीतला सप्तमी का दिन आता है. वृद्ध स्त्री और उसकी दोनों बहुएं शीतला सप्तमी का व्रत रखती हैं. वृद्ध स्त्री खाना बना कर रख देती हैं क्योंकि माता के व्रत में शीतल व बासी भोजन करना होता है. लेकिन उसकी दोनों बहुओं को कुछ समय पूर्व ही संतान प्राप्ति हुई होती है, इस कारण बहुओं को था की उन्हें शीतला सप्तमी के दिन बासी ओर ठंडा भोजन करना पड़ेगा. बासी भोजन करने से उनकी संतानों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. इस कारण वह भोजन ग्रहण करना नहीं चाहती थीं.!
शीतला माता की पूजा करने बाद बहुओं ने बासी भोजन का सेवन नहीं किया और अपने लिए खाना बना कर खा लिया. जब सास ने उनसे खाने को कहा तो उन दोनों ने बहाना बना कर सास को झूठ बोल दिया की वह दोनों घर का काम खत्म करने के बाद भोजन कर लेंगी. बहुओं की बात सुन सास बासी भोजन खा लेती है. बहुएं माता का भोजन नहीं खाती हैं.!
बहुओं के इस कार्य से शीतला माता उनसे रुष्ट हो जाती हैं. माता के क्रोध के परिणाम स्वरुप बहुओं के बच्चों की मृत्यु हो जाती है. अपनी संतान की ऎसी दशा देख वह बुरी तरह से रोने लगती हैं, अपनी सास को सारी सच्चाई बता देती हैं. सास को जब इस बात का पता चलता है तो वह अपनी बहुओं को घर से निकाल देती है. बहुएं अपनी मृत संतानों को अपने साथ लेकर वहां से चली जाती हैं.!
रास्ते में दोनों एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ जाती हैं. वहीं पर ओरी और शीतला नामक दो बहनें मिलती हैं. वह दोनों अपने सिर पर पड़े कीड़ों से दुखी हो रखी होती हैं. बहुओं को उन पर दया आती है और वह उनकी मदद करती हैं. शरीर पर से पिड़ा दूर होने पर दोनों को सकून मिलता है और वह बहुओं को पुत्रवती होने का आशीर्वाद देती हैं.!
बहुएं पहचान जाती हैं की वह बहने शीतला माता है, दोनों बहुओं ने माता से क्षमा याचना की तो माता को उन पर दया आती है और वह उन्हें माफ कर देती हैं. संतान के पुन: जीवित होने का वरदान देती हैं. शीतला माता के वरदान से बच्चे जीवित हो जाते हैं और बहुएं अपनी संतान को लेकर अपने घर जाकर सास और गांव के लोगों को इस चमत्कार के बारे में बताती हैं. सभी लोग शीतला माता की जयकार करते हैं और माता का पूजन भक्ति भाव से करने लगते हैं.!
-:”शीतला अष्टमी महत्व”:-
शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता. चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है. आज के समय में शीतला माता की पूजा स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण महत्वपूर्ण है.!
देवी शीतला की पूजा से पर्यावरण को स्वच्छ व सुरक्षित रखने की प्रेरणा प्राप्त होती है तथा ऋतु परिवर्तन होने के संकेत मौसम में कई प्रकार के बदलाव लाते हैं और इन बदलावों से बचने के लिए साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है और इसी संदर्भ में शीतला माता की पूजा से हमें स्वच्छता की प्रेरणा मिलती है. अत: शीतला माता की पूजा का विधान पूर्णत: महत्वपूर्ण एवं सामयिक है.!
नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook पर प्राप्त कर सकते हैं.II