वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:’……..नवरात्रि के चतुर्थ दिवस आध्यशक्ति नव दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप माँ कूष्माण्डा पूजा अर्चना की जाती है,वर्ष 2023 के वसंत नवरात्रि में 25 मार्च को माँ कूष्माण्डा का पूजन किया जाएगा,इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है,अतः इस दिन मां कूष्माण्डा की पूजा करने से व्यक्ति पर मां की कृपा-दृष्टि बनी रहती है,मान्यता है कि जब इस सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब इन्हीं ने ब्रह्मांड की रचना की थी,यह सृष्टि की आदि-स्वरूपा हैं,मां कुष्माण्डा के शरीर में कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान है,इनके प्रकाश से ही दसों दिशाएं उज्जवलित हैं,इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है,इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल,धनुष,बाण,कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश,चक्र तथा गदा मौजूद हैं,वहीं, आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों की जपमाला सुसज्जित है,मां कूष्माण्डा का वाहन सिंह है.!
चतुर्थ नवरात्रि के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर मां कूष्माण्डा का स्मरण करें,मां को धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सुहाग का सामान चढ़ाएं,मां को हलवे और दही का भोग अर्पित करें,इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें…!
-:”माँ कूष्मांडायै ध्यान”:-
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥
-:’विशेष मन्त्र’:-
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता.!
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:..!!
-:’माँ कूष्माण्डा की आरती’:-
चौथा जब नवरात्र हो, कूष्मांडा को ध्याते।
जिसने रचा ब्रह्मांड यह, पूजन है
आद्य शक्ति कहते जिन्हें, अष्टभुजी है रूप।
इस शक्ति के तेज से कहीं छांव कहीं धूप॥
कुम्हड़े की बलि करती है तांत्रिक से स्वीकार।
पेठे से भी रीझती सात्विक करें विचार॥
क्रोधित जब हो जाए यह उल्टा करे व्यवहार।
उसको रखती दूर मां, पीड़ा देती अपार॥
सूर्य चंद्र की रोशनी यह जग में फैलाए।
शरणागत की मैं आया तू ही राह दिखाए॥
जय मां कूष्मांडा मैया।
जय मां कूष्मांडा मैया॥
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