November 22, 2024 5:50 AM

Skanda Sashti 2024: श्री चैत्र माह स्कंद षष्ठी व्रत

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest

श्रीगणेशाय नमः..हिन्दू पंचांग अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. इस वर्ष 13 अप्रैल 2024 को शनिवार के दिन स्कन्द षष्ठी पर्व मनाया जाएगा स्कंद भगवान को अनेकों नाम जैसे कार्तिकेय, मुरुगन व सुब्रहमन्यम इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है. दक्षिण भारत में इस पर्व को विशेष रुप से मनाने की परंपरा रही है.!

दक्षिण भारत में इस पर्व के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना एवं झांकियों का आयोजन भी होता है. स्कन्द देव को भगवान शिव और देवी पार्वती का पुत्र बताया गया है. यह गणेश के भाई हैं. भगवान स्कन्द को देवताओं का सेनापति कहा गया है.!

षष्ठी तिथि भगवान स्कन्द को समर्पित हैं. मान्यता है की स्कंद भगवान का जन्म इसी तिथि में हुआ था इसलिए कारण से भी इनके जन्म दिवस के रुप में भी इस तिथि को मनाया जाता है. स्कंद षष्ठी के दिन श्रद्धालु भक्ति भाव से स्कंद देव का पूजन अर्चन करते हैं और व्रत एवं उपवास रखते हैं.!

-:’कब रखते हैं स्कंद षष्ठी व्रत’:-
स्कंद षष्ठी का पूजन एवं व्रत के संदर्भ में बहुत से मत प्रचलित हैं. धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु ग्रंथों के अनुसार सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य में अगर पंचमी तिथि समाप्त होती हो या षष्ठी तिथि का आरंभ हो रहा हो, इन दोनों तिथि के आपस में संयुक्त हो जाने के कारण इस दिन को स्कन्द षष्ठी व्रत के लिए चयन करना उपयुक्त माना गया है.!
षष्ठी तिथि का पंचमी तिथि के साथ मिल जाना स्कंद षष्ठी व्रत के लिए बहुत ही शुभ माना गया है. ऎसे समय में व्रत करने का नियम बताया गया है. इसी कारण से कई बार स्कन्द षष्ठी का व्रत पंचमी तिथि के दिन भी रखा जाता रहा है.!

-:’स्कंद षष्ठी कथा’:-
स्कंद भगवान की कथा इस प्रकार की है – तारकासुर नामक राक्षस को वरदान प्राप्त था की उसे कोई मार नही सकता है, केवल शिव पुत्र ही उसका संहार कर सकता है. इस वरदान का लाभ उठाते हुए वह हर ओर से निर्भय होकर लोगों पर अत्याचार शुरु कर देता है. तारकासुर का प्रकोप जब चारों ओर बढ़ने लगा. वह देवताओं पर अधिकार करने और इंद्र का स्थान पाने के लिए उत्तेजित होता है, तब उस समय इंद्र समेत सभी देवता त्रिदेवों से रक्षा की गुहार लगाते हैं.!
विष्णु भगवान उनकी मदद का आश्वासन देते हैं और उनके प्रयासों द्वारा भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से संपन्न होता है. भगवान शिव और माता पार्वती अपनी शक्ति द्वारा एक दिव्य पुंज का निर्माण करते हैं, जिसे अग्नि देव अपने साथ ले जाते हैं. ऎसे में उस पुंज का ताप अग्नि सहन न कर पाने के कारण गंगा में फैंक देते हैं. गंगा भी इस तेज को सहन करमे में अक्षम होती है. गंगा उस पुंज को शरवण वन में लाकर स्थापित कर देती हैं जिसके कारण उस दिव्य पुंज से सुंदर बालक का जन्म होता है. उस वन में छह कृतिकाओं की दृष्टि जब शिशु पर पड़ती है तब वह उन्हें अपना लेती हैं और उनका पालन करने लगती हैं. कृतिकाओं द्वारा पालन होने पर ये कार्तिकेय कहलाये.!
कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति बनाया जाता है. उसके पश्चात वह तारकासुर पर हमला बोलते हैं और उसे परास्त करते हैं. तारकासुर के वध के पश्चात सभी उपद्रव शांत होते हैं और देवता पुन: शांति से अपना कार्य आरंभ करते हैं.!

-:’स्कंद भगवान का दक्षिण से संबंध’:-
वैसे तो संपूर्ण भारत में ही स्कंद भगवान का पूजन होता है लेकिन दक्षिण भारत से स्कंद भगवान का महत्व बहुत अधिक जुड़ा हुआ है. दक्षिण भारत में इन्हें अनेकों नामों से पूजा जाता है और इनके अनेकों मंदिर भी वहां मौजूद हैं. इसके संदर्भ में एक कथा बहुत अधिक प्रचलित है जो उनके दक्षिण के साथ के संबंध को दर्शाती है.!
जिसके अनुसार एक बार भगवान कार्तिकेय अपनी माता पार्वती जी और पिता भगवान शिव व भाई श्रीगणेश से नाराज होकर कैलाश पर्वत से मल्लिकार्जुन चले जाते हैं जो दक्षिण की ओर हैं. ऎसे में दक्षिण उनका निवास स्थान बनता है. वास्तु में दक्षिण दिशा का संबंध भी स्कंद (कार्तिकेय) भगवान से ही जुड़ा रहा है.!

-:’स्कंद षष्ठी पूजन’:-
स्कन्द षष्ठी के दिन कुमार कार्तिकेय की पूजा की जाती है. इस पूजा में इनके समस्त परिवार का पूजन भी होता है. विधि पूर्वक पूजा करने करने से कष्टों का निवारण होता है. कोई संघर्ष हो या शत्रुओं से विजय पानी हो, इस समय स्कंद भगवान का पूजन करने से व्यक्ति को अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है.!
भगवान स्कंद जो कुमार हैं, बाल रुप में हैं इसलिये इनका पूजन करना संतान के सुख में वृद्धि करने वाला होता है. बच्चों की रक्षा एवं उन्हें रोग से बचाव के लिए स्कंद षष्ठी की पूजा करना बहुत अनुकूल माना गया है.!

स्कंद षष्ठी के दिन स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए और स्कंद कुमार (कार्तिकेय) के नाम का स्मरण करना चाहिए.
कार्तिकेय भगवान के पूजन में पूजा स्थल पर कार्तिक्ये की मूर्ति अथवा चित्र रखना चाहिए इसके साथ ही इनके साथ भगवान शिव, माता गौरी, भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर भी स्थापित करनी चाहिये.
भगवान कार्तिकेय को अक्षत्, हल्दी, चंदन से तिलक लगाना चाहिए.
साथ में स्थापित सभी को देवों को तिलक लगाना चाहिए.
भगवान के समक्ष पानी का कलश भर के स्थापित करना चाहिए और एक नारियल भी उस कलश पर रखना चाहिए.
पंचामृत, फल, मेवे, पुष्प इत्यादि भगवान को अर्पित करने चाहिए.
गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए.
भगवान को इत्र और फूल माना चढ़ानी चाहिये.
स्कंद षष्ठी महात्म्य का पाठ करना चाहिए.
स्कंद भगवान आरती करनी चाहिए और भोग लगाना चाहिए.
भगवान के भोग को प्रसाद सभी में बांटना चाहिए और खुद भी ग्रहण करना चाहिए.

विधि प्रकार से भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय का पूजन करने से कष्ट दूर होते हैं और परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है.
स्कंद षष्ठी महत्व और इसमें किये जाने वाले कार्य

धर्म शास्त्रों में स्कंद षष्ठी तिथि को संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत उत्तम माना गया है. इस दिन भगवान कार्तिकेय का पूजन करने से नि:संतान दंपति को भी संतान का सुख प्राप्त होता है. ज्योतिष शास्त्र अनुसार यदि जन्म कुण्डली में मंगल ग्रह से अशुभ फल मिल रहे हैं तो मंगल ग्रह की अशुभता से बचने के लिए कार्तिकेय भगवान का पूजन करना अत्यंत शुभ फल देने वाला होता है. व्यक्ति को स्कंद भगवान का पूजन करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook पर प्राप्त कर सकते हैं.II

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पितAstro Dev YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest