November 18, 2024 1:09 PM

Ramanujacharya Jayanti 2024: श्री रामानुजाचार्य जयंती

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest

नमो नारायण……भारत में चली आ रही संत एवं भक्ति परंपरा के मध्य एक नाम रामानुजाचार्य जी का भी आता है. यह दर्शन शास्त्र में अपनी भूमिका को दर्शाते हैं. रामानुजाचार्य जी ने अपनी ज्ञान एवं आध्यात्मिक ऊर्जा द्वारा देश भर में भक्ति का प्रचार किया. वैष्णव सन्त होने के साथ साथ भक्ति परंपरा पर भी इनका बहुत प्रभाव रहा है. इस वर्ष रामानुजाचार्य जयंती 12/13 मई 2024 को रविवार के दिन मनाई जाएगी.!

-:”Ramanujacharya Jayanti 2024: श्रीरामानुजाचार्य जन्म अवधी”:-
रामानुजाचार्य का समय 1017-1137 ई. तक का माना जाता है. इनका जन्म दक्षिण भारत के तिरुकुदूर क्षेत्र में हुआ था. रामानुजाचार्य जी के शिष्यों में रामानंद जी का नाम अग्रीण रहा है और जिनके आगे कबीर, रैदास और सूरदास जैसी शिष्य परंपरा देखने को मिलती है.!

-:”Ramanujacharya Jayanti 2024: रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैतवाद”:-
आचार्य रामानुज का विशिष्टाद्वैत दर्शन का सिद्धांत बहुत सी पुरानी मान्यताओं को दर्शाता था. यह सिद्धांत प्राचीन चले आ रहे दर्शन के अलग-अलग मतों में से एक रहा है. रामानुजाचार्य द्वारा चलाया गया यह विचार प्रभावशाली विचारों में से एक था. दक्षिण भारत में मुख्य रूप से चल रहे भक्ति आंदोलन से प्रभावित होते हुए यह आगे बढ़ता है.!
विशिष्टाद्वैत का अर्थ विशिष्ट अद्वैत के सिद्धांत को प्रतिपादित करता है. आचार्य रामानुज ने 1037-1137 ईसवी के समय के मध्य इस मत का प्रचार किया. यह दार्शनिक मत है जिसके द्वारा बताया गया है कि सृष्टि और जीवात्मा दोनों ब्रह्म से भिन्न हैं लेकिन वह उसी ब्रह्म से ही उद्भूत अर्थात उत्पन्न हैं, यह संबंध बहुत घनिष्ट है. इस संबंध को ऎसे समझा जा सकता है जैसे शरीर में प्राण का होना. सूर्य के साथ किरणों का होना. ब्रह्म एक होने पर भी अनेक है.!

रामानुज जी ने वेदों का चिंतन किया और उसके अनुरूप – उपनिषदों तथा वेदांत सूत्रों के ब्रह्म से एकात्मता को अपनी पद्धति का आधार बनाया. ईश्वर के रूप में ब्रह्म में जीव पूरी संपूर्णता के साथ संबंधित होता है, इन्हीं बातों पर रामानुज ने अपना विचार विस्तार से रखा.!

विशिष्टाद्वैत दर्शन में बताया गया है कि शरीर विशिष्ट है, जीवात्मा अंश और परमात्मा अंशी है. संसार प्रारंभ होने से पूर्व “सूक्ष्म चित विशिष्ट ब्रह्म” की स्थिति होती है संसार एवं जगत की उत्पत्ति के उपरांत ‘स्थूल चित विशिष्ट ब्रह्म’ की स्थिति रहती है. ‘तयो एकं इति ब्रह्म’ जब प्राण शरीर से मुक्त होता है तो वह सीमाओं की परिधि से छूट कर ब्रह्म में विलीन हो जाता है और उसकी यही स्थिति मोक्ष है. जो आत्मा शरीर से मुक्त होती हैं व ईश्वर की भांति हो जाती हैं किंतु ईश्वर नहीं होती हैं.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पितAstro Dev YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest