November 23, 2024 2:57 PM

Jyeshtha Amavasya 2024: ज्येष्ठ अमावस्या

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest

ॐ नमो नारायण ….ज्येष्ठ माह में आने वाली 30वीं तिथि “ज्येष्ठ अमावस्या” कहलाती है. इस अमावस्या तिथि के दौरान पूजा पाठ और स्नान दान का विशेष आयोजन किया जाता है.हिन्दू पंचांग में अमावस्या तिथि को लेकर कई प्रकार के मत प्रचलित हैं ओर साथ ही इस तिथि में किए जाने वाले विशेष कार्यों को करने की बात भी की जाती है. ज्येष्ठ अमावस्या को जेठ अमावस्या, दर्श अमावस्या, भावुका अमावस्या इत्यादि नामों से पुकारा जाता है.! यह तिथि 6 जून गुरुवार को है.

ज्येष्ठ अमावस के दौरान चंद्रमा की शक्ति निर्बल होती है.अंधकार की स्थिति अधिक होती है. इस वातावरण में नकारात्मकता का प्रभाव भी अधिक होता है. इसलिए इस समय पर तंत्र से संबंधित कार्य भी किए जाते हैं. ऐसा कहा जाता है तांत्रिकों के लिए ये रात खास होती है, जब वे अपनी सिद्धियों से विभिन्न शक्तियों को जाग्रत करते हैं.!

-:”ज्येष्ठ अमावस्या पर स्नान का महत्व”:-
किसी भी अमावस्या के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने की महत्ता अत्यंत ही प्राचीन काल से चली आ रही है. पूर्णिमा के समान ही अमावस्या पर भी पवित्र नदियों में स्नान का महत्व है. इस दिन स्नान करने पर शरीर में मौजूद नकारात्मक तत्व दूर होते है. मानसिक बल मिल मिलता है और विचारों में शुद्धता आती है. शरीर निरोगी बनता है वहीं बुरी शक्तियां भी दूर रहती हैं. स्नान करने से विशेष ग्रह नक्षत्रों का भी लाभ प्राप्त होता है.अपितु वर्तमान कोरोना महामारी के कारन आप घर पर ही जल में गंगा जल आदि तीर्थ के जल से घर पर ही स्नान करें.!

-:”ज्येष्ठ अमावस्या पर क्या नहीं करना चाहिए”:-
व्यक्ति को मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए.इस दिन धन उधार {ऋण} नहीं लेना चाहिए.कोई नई वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए.ज्येष्ठ अमावस्या का प्रभाव माह के अनुसार और ग्रह नक्षत्रों के द्वारा विभिन्न राशियों के लोगों पर भी पड़ता है. इसलिए इस दिन गलत कार्यों से दूरी रखनी चाहिए और व्रत-उपासना इष्ट देव की आराधना करनी चाहिए.!

-“:ज्येष्ठ अमावस्या पर दान पुण्य का फल”:-
निर्णय सिंधु जैसे ग्रथों में ज्येष्ठ अमावस्या के दिन दान की महत्ता के विषय में कहा गया है. इस दिन असमर्थ एवं गरीबों को दान करने. ब्राह्मणों को भोजन करवाने से सहस्त्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है. अमावस्या के दिन दूध से बनी वस्तुओं अथावा श्वेत वस्तुओं का दान करना चंद्र ग्रह के शुभ फल देने वाला होता है.!

-:”ज्येष्ठ अमावस्या उपाय”:-
अमावस्या के अवसर पर सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है पितरों के निम्मित दान. इस समय पर पितृ शांति के कार्य किये जाते हैं. इस तिथि के समय पर प्रात:काल समय पितरों के लिए सभी कार्यों को किया जाना चाहिये. इस दान को करने से नवग्रह दोषों का नाश होता है. ग्रहों की शांति होती है, कष्ट दूर होते हैं.I

-:”ज्येष्ठ अमावस्य मे क्या करें”:-
ज्येष्ठ अमावस्या पर गाय, कुते और कौओं को खाना खिलाना चाहिए.ज्येष्ठ अमावस्या के दिन पीपल और बड़ के वृक्ष का पूजन करना चाहिए.पितरों के लिए तर्पण के कार्य करने चाहिए.पीपल पर सूत बांधना चाहिये, कच्चा दूध चढ़ाना चाहिये.काले तिल का दान करना चाहिए.दीपक भी जलाना चाहिये.!

-:”ज्येष्ठ अमावस्या लाभ”:-
इस दिन उपासना से हर तरह के संकटों का नाश होता है.संतान प्राप्ति और संतान सम्बन्धी समस्याओं का निवारण होता है.अपयश और बदनामी के योग दूर होते हैं.हर प्रकार के कार्यों की बाधा दूर होती है.कर्ज सम्बन्धी परेशानियां दूर होती हैं.!

-:’ज्येष्ठ अमावस्या शनि जयन्ती”:-
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही शनि जयंती भी मनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन ही शनि देव का जन्म हुआ था. ऎसे में इस दिन शनि जयंती होने कारण शनि देव का पूजन होता है. इस दिन शनि के मंत्रों व स्तोत्रों को पढ़ा जाता है.ज्योतिष दृष्टि में नौ मुख्य ग्रहों में से एक शनि देव को न्यायकर्ता के रुप में स्थान प्राप्त है. मनुष्य के जीवन के सभी अच्छे ओर बुरे कर्मों का फल शनि देव ही करते हैं. इस दिन शनि पूजन करने पर पाप प्रभाव कम होते हैं और शनि से मिलने वाले कष्ट भी दूर होते हैं.!

शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान करने से शनिदेव विशिष्ट फल प्रदान करते हैं. इस अमावस्या के अवसर पर शनिदेव के निमित्त विधि-विधान से पूजा पाठ, व्रत व दान पूण्य करने से शनि संबंधी सभी कष्ट दूर होते हैं ओर शुभ कर्मों की प्राप्ति होती है. शनिदेव पूजा के लिए प्रात:काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर शनिदेव के निमित्त सरसों या तिल के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष के नीचे जलाना चाहिए. साथ ही शनि मंत्र “ॐ शनिश्चराय नम:” का जाप करना चाहिए. शनिदेव से संबंधित वस्तुओं तिल , उड़द, काला कंबल, लोहा,वस्त्र, तेल इत्यादि का दान करना चाहिए.!

-:” ज्येष्ठ अमावस्या के दिन “वट सावित्र””:-
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन “वट सावित्र” एक अन्य महत्वपूर्ण दिवस भी आता है. वट सावित्री व्रत स्त्रीयों द्वारा अखंड सौभाग्य एवं पति की लम्बी आयु के लिए रखा जाता है. इस दिन स्त्यवान और सावित्री की कथा सुनी जाती है और पीपल के वृक्ष का पूजन होता है. ज्येष्ठ अमावस्या पर विशेष तौर पर शिव-पार्वती के पूजन करने से भगवान की सदैव कृपा बनी रहती है. इस व्रत को करने से मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं. कुंवारी कन्याएं इस दिन पूजा करके मनचाहा वर पाती हैं और सुहागन महिलाओं को सुखी दांपत्य जीवन और अपने पति की लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है.!

ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शाम के समय नदी के किनारे या मंदिर में दीप दान करने का भी विधान है. इसी के साथ पीपल के वृक्ष का पूजन उस पर दीप जलाना ओर उसकी प्रदक्षिणा करना अत्यंत आवश्यक होता है और शुभ लाभ मिलता है. इस दिन प्रातः उठकर अपने इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए. शास्त्रों में इस दिन पीपल लगाने और पूजा का विधान बताया गया है. जिसको संतान नहीं है, उसके लिए पीपल वृक्ष को लगाना और उसका पूजन करना अत्यंत चमत्कारिक होता है. पीपल में ब्रह्मा, विष्णु व शिव अर्थात त्रिदेवों का वास होता है. पुराणों में कहा गया है कि पीपल का वृक्ष लगाने से सैंकड़ों यज्ञ करने के समान फल मिलता है और पुण्य कर्मों की वृद्धि होती है. पीपल के दर्शन से पापों का नाश, छुने से धन-धान्य की प्राप्ति एवं उसकी परिक्रमा करने से आयु में वृद्धि होती है.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पितAstro Dev YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest