काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।
बगला सिद्ध विद्या च मातंगी कमलात्मिका
एता दशमहाविद्याः सिद्धविद्या प्रकीर्तिताः॥
जय माता दी… गुप्त नवरात्रि शनिवार 06 जुलाई से प्रारम्भ हो रही हैं, गुप्त नवरात्रि वर्ष में दो बार आती हैं,पहला माघ महीने में और दूसरा आषाढ़ के महीने में,गुप्त नवरात्रि आम नवरात्रि से अलग तरह से मनाई जाती है,इसमें मनोकामना और सिद्धियों के लिए गुप्त रूप से साधना की जाती है इसलिए इस गुप्त नवरात्रि कहते हैं,वर्ष 2024 में आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शनिवार 06 जुलाई से सोमवार 15 जुलाई तक रहेंगे, साल में कुल चार बार नवरात्र होते हैं जिसमें दो चैत्र एवं शारदीय नवरात्र और दो गुप्त नवरात्र.!
गुप्त नवरात्रों में मां दुर्गा की पूजा का विधान होता है, यह गुप्त नवरात्र साधारण जन के लिए नहीं होते हैं मुख्य रुप से इनका संबंध साधना और तंत्र के क्षेत्र से जुड़े लोगों से होता है. इन दिनों भी माता के विभिन्न रूपों की पूजा का विधान होता है. जैसे नवरात्रों में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है उसी प्रकार इन गुप्त नवरात्रों में भी साधक माता की विभिन्न प्रकार से पूजा करके उनसे शक्ति और सामर्थ्य की प्राप्ति का वरदान मांगता है.!
-:Gupt Navratri गुप्त नवरात्र रहस्य:-
मां दुर्गा को शक्ति कहा गया है ऐसे में इन गुप्त नवरात्रों में मां के सभी रुपों की पूजा की जाती है. देवी की शक्ति पूजा व्यक्ति को सभी संकटों से मुक्त करती है व विजय का आशीर्वाद प्रदान करती हैं.गुप्त नवरात्र भी सामान्य नवरात्र की भांति दो बार आते हैं एक आषाढ़ माह में और दूसरे माघ माह में.!
इन नवरात्र के समय साधना और तंत्र की शक्तियों में इजाफा करने हेतु भक्त इसे करता है. तंत्र एवं साधना में विश्वास रखने वाले इसे करते हैं. इन नवरात्रों में भी पूजन का स्वरूप सामान्य नवरात्रों की ही तरह होता है. जैसे चैत्र और शारदीय नवरात्रों में मां दुर्गा के नौं रूपों की पूजा नियम से की जाती है उसी प्रकार इन गुप्त नवरात्रों में भी दस महाविद्याओं की साधना का बहुत महत्व होता है.!
-:Gupt Navratri क्या होते हैं गुप्त नवरात्रि:-
गुप्त नवरात्र में माता की शक्ति पूजा एवं अराधना अधिक कठिन होती है और माता की पूजा गुप्त रूप से की जाती है इसी कारण इन्हें गुप्त नवरात्र की संज्ञा दी जाती है. इस पूजन में अखंड जोत प्रज्वलित की जाती है. प्रात:कल एवं संध्या समय देवी पूजन-अर्चन करना होता है. गुप्त नवरात्र में तंत्र साधना करने वाले दस महाविद्याओं की साधना करते हैं. नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशति का पाठ किया जाता है. अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन कर व्रत पूर्ण होता है.!
-:Gupt Navratri गुप्त नवरात्रि पूजा विधि:-
गुप्त नवरात्रों में माता आद्य शक्ति के समक्ष शुभ समय पर घट स्थापना की जाती है जिसमें जौ उगने के लिये रखे जाते है. इस के एक और पानी से भरा कलश स्थापित किया जाता है. कलश पर कच्चा नारियल रखा जाता है. कलश स्थापना के बाद मां भगवती की अंखंड ज्योति जलाई जाती है. भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है. उसके बाद श्री वरूण देव, श्री विष्णु देव की पूजा की जाती है. शिव, सूर्य, चन्द्रादि नवग्रह की पूजा भी की जाती है. उपरोक्त देवताओं कि पूजा करने के बाद मां भगवती की पूजा की जाती है. नवरात्रों के दौरान प्रतिदिन उपवास रख कर दुर्गा सप्तशती और देवी का पाठ किया जाता है.!
-:गुप्त नवरात्र और तंत्र साधना:-
गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं के पूजन को प्रमुखता दी जाती है. भागवत के अनुसार महाकाली के उग्र और सौम्य दो रुपों में अनेक रुप धारण करने वाली दस महा-विद्याएँ हुई हैं. भगवान शिव की यह महाविद्याएँ सिद्धियाँ प्रदान करने वाली होती हैं. दस महाविद्या देवी दुर्गा के दस रूप कहे जाते हैं. प्रत्येक महाविद्या अद्वितीय रुप लिए हुए प्राणियों के समस्त संकटों का हरण करने वाली होती हैं. इन दस महाविद्याओं को तंत्र साधना में बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण माना जाता है.!
01. देवी काली- दस महाविद्याओं मे से एक मानी जाती हैं.तंत्र साधना में तांत्रिक देवी काली के रूप की उपासना किया करते हैं,गुप्तनवरात्रि के प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री के साथ देवी काली की साधना की जाती हैं.!
02. देवी तारा- दस महाविद्याओं में से माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है.माँ तारा परारूपा हैं एवं महासुन्दरी कला-स्वरूपा हैं तथा देवी तारा सबकी मुक्ति का विधान रचती हैं.गुप्तनवरात्रि के द्वितीय दिवस माँ ब्रह्मचारिणी के साथ देवी तारा की साधना की जाती हैं.!
03. माँ ललिता- माँ ललिता की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है. दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है.गुप्तनवरात्रि के तृतीय दिवस माँ चंद्रघंटा के साथ माँ ललिता की साधना की जाती हैं.!
04. माँ भुवनेश्वरी – माता भुवनेश्वरी सृष्टि के ऐश्वयर की स्वामिनी हैं. भुवनेश्वरी माता सर्वोच्च सत्ता की प्रतीक हैं. इनके मंत्र को समस्त देवी देवताओं की आराधना में विशेष शक्ति दायक माना जाता है.गुप्तनवरात्रि के चतुर्थ दिवस माँ कुष्मांडा के साथ माँ भुवनेश्वरी की साधना की जाती हैं.!
05. त्रिपुर भैरवी – माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं.गुप्तनवरात्रि के पञ्चम दिवस माँ स्कंदमाता के साथ माँ त्रिपुर भैरवी की साधना की जाती हैं.!
06. माता छिन्नमस्तिका -माँ छिन्नमस्तिका को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है. माँ भक्तों के सभी कष्टों को मुक्त कर देने वाली है.गुप्तनवरात्रि के षष्ठम दिवस माँ कात्यायनी के साथ माँ छिन्नमस्तिका की साधना की जाती हैं.!
07. माँ धूमावती – मां धूमावती के दर्शन पूजन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. माँ धूमावती जी का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है.गुप्तनवरात्रि के सप्तम दिवस माँ कालरात्रि के साथ माँ धूमावती की साधना की जाती हैं.!
08. माँ बगलामुखी – माँ बगलामुखी स्तंभन की अधिष्ठात्री हैं. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है.गुप्तनवरात्रि के अष्टम दिवस माता महागौरी के साथ माँ बग्लामुखी साधना की जाती हैं.!
09. देवी मातंगी – यह वाणी और संगीत की अधिष्ठात्री देवी कही जाती हैं. इनमें संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं.भगवती मातंगी अपने भक्तों को अभय का फल प्रदान करती हैं,गुप्तनवरात्रि के नवम दिवस माँ महागौरी के साथ माँ मातंगी माता की साधना की जाती हैं.!
09. माता कमला – मां कमला सुख संपदा की प्रतीक हैं.धन संपदा की आधिष्ठात्री देवी है, भौतिक सुख की इच्छा रखने वालों के लिए इनकी अराधना सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं.गुप्तनवरात्रि के नवम दिवस ही माँ महागौरी के साथ माता कमला माँ की साधना की जाती हैं.!