ॐ नमः शिवाय…..सावन की शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज महोत्सव के रुप में मनाया जाता है. यह तीज पर्व सिंधारा,हरियाली तीज,मधुस्रवा तृतीय या छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है.इस वर्ष यह त्यौहार बुधवार 07 अगस्त 2024 के दिन मनाया जाएगा.तीज विशेष रुप से महिलाओं का त्यौहार होता है. तीज का संपूर्ण रंग प्रकृत्ति के रंग में मिलकर अपनी अनुपम छठा बिखेरता है. तीज के आगम पर हाट ओर बाजार सजने लगते हैं, प्रकृत्ति भी अपने सौंदर्य में लिपटी मानो इसी समय का इंतजार कर रही होती है.!
चारों और तीज की रौनक देखते ही बनती है. बच्चियों से लेकर युवा और बुजुर्ग महिलाएं सभी इस उत्सव की तैयारियों में लग जाती हैं. नव विवाहिताएं यह उत्सव अपने मायके में मनाती है, महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य के लिए करती हैं. देश के पूर्वी इलाकों में लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं. इस समय प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित हो जाता है जगह-जगह झूले पड़ते हैं और स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं.!
-:’Hariyali Teej 2024: मधुश्रवा तीज व्रत पूजन’:-
तीज का पौराणिक धार्मिक महत्व रहा है, मान्यता है कि देवी पार्वती भगवान शिव को पति रुप में प्राप्त करने के लिए सावन माह में व्रत रखती हैं. देवी की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान शिव उन्हें अपनी वामांगी होने का आशिर्वाद प्रदान करते हैं. अत: इसी कारण से विवाहित महिलाएं इस व्रत को अपने सुखी विवाहित जीवन की कामना के लिए करती हैं. इस दिन स्त्रियां माँ पार्वती का पूजन – आह्वान करती हैं.!
समस्त उत्तर भारत एवं के भारत के अनेक भागों में बहुत जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इन दिनों घर-घर झूले पडते है, सावन में सुन्दर सुन्दर पकवान गुंजिया घेवर फ़ैनी आदि विवाहिता बेटियों को सिंधारा रूप में भेजा जाता है तथा बायना छूकर सासू को दिया जाता है. तीज पर मेंहदी लगाने का विशेष महत्व है इस दिन माता पार्वती की पूजा की जाती है मान्यता है कि इस श्रावण शुक्ल तृतीया (तीज) के दिन देवी पार्वती वर्षों की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव को प्राप्त करती हैं. समस्त उत्तर भारत में तीज पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है.!
मधुश्रवा तीज का आगमन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही आरंभ हो जाता है. सावन के महीने के आते ही आसमान काले मेघों से आच्छ्दित हो जाता है और वर्षा की बौछर पड़ते ही हर वस्तु नवरूप को प्राप्त करती है. ऎसे में भारतीय लोक जीवन में हरियाली तीज या कजली तीज महोत्सव मनाया जाता है. इस अवसर पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नव विवाहिता को ससुराल से मायके बुला लिया जाता है. विवाहिता स्त्रियों को उनके ससुराल पक्ष की ओर से सिंधारा भिजवाया जाता है जिसमें वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई इत्यादि सामान भेजा जाता है.!
तीज पर अनेक मेलों का आयोजन भी होता है. तीज के साथ ही रक्षा बंधन का आगमन होने की आहट भी सुनाई देने लगती है इसलिए ऎसे समय पर सभी ओर छोटे बडे़ अनेक मेलों का आयोजन किया जाता है. मेलों में मेहंदी लगाने और झूले झूलने की व्यवस्था भी होती है. युवतियाँ हाथों में मेंहदी रचाती हैं तथा लोक गीतों को गाते हुए झूले झूलती हैं. महिलाएं हाथों पर विभिन्न प्रकार से बेलबूटे बनाकर मेंहदी रचाती हैं तो कुछ पैरों में आलता भी लगाती हैं. तीज के दिन खुले स्थान पर बड़े–बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले पड़ जाते हैं, हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं.!
-:’Hariyali Teej 2024: मधुश्रवा तीज का पौराणिक महत्व’:-
सावन की तीज का पौराणिक महत्व भी रहा है. इस पर एक धार्मिक किवदंती प्रचलित है जिसके अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए इस व्रत का पालन करती हैं और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें भगवान शिव वरदान स्वरुप प्राप्त होते हैं. मान्यता है कि श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन देवी पार्वती ने सौ वर्षों की तपस्या साधना पश्चात भगवान शिव को पाया था.इसी मान्यता के अनुसार स्त्रियां माँ पार्वती का पूजन करती हैं.!