Durva Ganpati Vrat 2024: श्रीगणेशाय नमः….चतुर्थी का व्रत भगवान गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है,माह में दो चतुर्थियां होती हैं,पहली विनायकी या विनायक और दूसरी संकष्टी,अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं,श्रावण माह में दोनों ही चतुर्थी का खास महत्व होता है,शुक्ल पक्ष वाली चतुर्थी को दूर्वा गणपति चौथ कहा जाता है,वर्ष 2024 में दूर्वा गणपति चतुर्थी का व्रत गुरुवार 08 अगस्त 2024, को रखा जायेगा.!
इस दिन प्रात:काल उठकर गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर व्रत और पूजा का संकल्प लें,फिर ऊं गं गणपतयै नम: मंत्र बोलते हुए जितनी पूजा सामग्री उपलब्ध हो उनसे भगवान श्रीगणेश की पूजा करें,गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर लगाएं। फिर उन्हें 21 गुड़ की ढेली के साथ 21 दूर्वा चढ़ाएं, मतलब 21 बार 21 दूर्वा की गाठें अर्पित करना चाहिए।,इसके अलावा गणेशजी को मोदक और मोदीचूर के 21 लड्डू भी अर्पित करें,इसके बाद आरती करें और फिर प्रसाद बांट दें.।
दूर्वा अर्पित करने का मंत्र : ‘श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।’ : इस मंत्र के साथ श्रीगणेशजी को दूर्वा चढ़ाने से जीवन की सभी विघ्न समाप्त हो जाते हैं और श्रीगणेशजी प्रसन्न होकर सुख एवं समृद्धि प्रदान करते हैं.।
इस दिन गणेशजी को दूर्वा चढ़ाकर विशेष पूजा की जाती है,ऐसा करने से परिवार में समृद्धि बढ़ती है और मनोकामना भी पूरी होती है,इस व्रत का जिक्र स्कंद, शिव और गणेश पुराण में किया गया है.।
Durva Ganpati Vrat 2024: गणेशजी को क्यों प्रिय है दुर्वा :- अन्य पौराणिक कथा के अनुसार अनलासुर नाम के राक्षस ने बहुत उत्पात मचा रखा था,अनलासुर ऋषियों और आम लोगों को जिंदा निगल जाता था,दैत्य से परेशान होकर देवी-देवता और ऋषि-मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे,शिवजी ने कहा कि अनलासुर को सिर्फ गणेश ही मार सकते हैं। सभी देवताओं ने गणेशजी की आराधना की.।
देवताओं की आराधना से प्रसन्न होकर गणेशजी उस राक्षस से युद्ध करते हुए उसे निगल गए थे और तब दैत्य के मुंह से तीव्र अग्नि निकली जिससे गणेश के पेट में बहुत जलन होने लगी,इस जल को शांत करने के लिए कश्यप ऋषि ने उन्हें दूर्वा की 21 गांठें बनाकर खाने के लिए दी,दूर्वा को खाते ही गणेश जी के पेट की जलन शांत हो गई और गणेशजी प्रसन्न हुए। कहा जाता है तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई.।
Durva Ganpati Vrat 2024: दूर्वा की उत्पत्ति -: दूर्वा एक प्रकार की घास है जिसे प्रचलित भाषा में दूब भी कहा जाता है,संस्कृत में इसे दूर्वा,अमृता,अनंता, गौरी, महौषधि, शतपर्वा, भार्गवी आदि नामों से जाना जाता है,दूर्वा कई महत्वपूर्ण औषधीय गुणों से युक्त है,इसका वैज्ञानिक नाम साइनोडान डेक्टीलान है,मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब समुद्र से अमृत-कलश निकला तो देवताओं से इसे पाने के लिए दैत्यों ने खूब छीना-झपटी की जिससे अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर भी गिर गईं थी जिससे ही इस विशेष घास दूर्वा की उत्पत्ति हुई.।
|| श्री गणेशपंचरत्न स्तोत्रं ||
मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् ।
कलाधरावतंसकं विलासिलोक रक्षकम् ।
अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकम् ।
नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ 1 ॥
नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरम् ।
नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्ढरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम् ।
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ 2 ॥
समस्त लोक शङ्करं निरस्त दैत्य कुञ्जरम् ।
दरेतरोदरं वरं वरेभ वक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् ।
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ 3 ॥
अकिञ्चनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनम् ।
पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।
प्रपञ्च नाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणम् ।
कपोल दानवारणं भजे पुराण वारणम् ॥ 4 ॥
नितान्त कान्ति दन्त कान्ति मन्त कान्ति कात्मजम् ।
अचिन्त्य रूपमन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम् ।
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ 5 ॥
महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योஉन्वहम् ।
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम् ।
समाहितायु रष्टभूति मभ्युपैति सोஉचिरात् ॥ 6॥