December 22, 2024 11:40 AM

जिस प्रकार हर काम के करने की एक विधि होती है एक तरीका होता है उसी प्रकार पूजा की भी विधियां होती हैं क्योंकि पूजा का क्षेत्र भी धर्म के क्षेत्र जितना ही व्यापक है। हर धर्म, हर क्षेत्र की संस्कृति के अनुसार ही वहां की पूजा विधियां भी होती हैं। मसलन मुस्लिम नमाज अदा करते हैं 

नामकरण

नाम में क्या रखा है? अपने नाटक में रोमैंटिकता लाने के लिये शेक्सपियर ने ये बात लिख तो दी कि नाम में क्या रखा है लेकिन वे इस बात पर गौर करना भूल गये होंगे कि यदि उनका नाम नहीं होता तो उनकी कोई पहचान नहीं होती और वे इस दुनिया को सबकुछ देकर अमर होने की बजाय गुमनामी की मौत मरते। कोई नहीं जान पाता कि रोमियो जूलियट, जूलियस सीजर और ओथेलो जैसे प्रसिद्ध नाटकों को किसने लिखा। नाम व्यक्ति के लिये खास मायने रखता है। नाम अस्तित्व है, नाम पहचान है, परिचय है। इसलिये तो हर धर्म और देश में अलग-अलग रीति-रिवाजों से बच्चे का नाम रखा जाता है। नाम रखने की इस प्रक्रिया को नामकरण कहा जाता है। विशेषकर सनातन धर्म में नामकरण का बहुत महत्व है। आइये जानते हैं क्या होती है नामकरण की यह विधि और इस दिन कैसे की जाती है पूजा।
नामकरण की पूजा विधि
सनातन धर्म में शास्त्रानुसार बच्चे के जन्म के समय ग्रहों की दशा देखकर उसकी कुंडली बनाई जाती है। कुंडलीनुसार बच्चे की चंद्र राशि के आधार पर राशि के प्रथम अक्षर पर शिशु का नाम रखा जाता है। नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के दसवें दिन या उसके बाद किसी शुभ मुहूर्त में किया जाता है। इस बीच परिजनों, मित्रों, शुभचिंतकों द्वारा बच्चे के लिये प्रदत अक्षर पर आधारित नाम के सुझाव लिये जाते हैं। इन्हीं नामों में से सबसे अच्छे नाम को चुन लिया जाता है। फिर नामकरण संस्कार के दिन घर में पूरे साफ-सफाई कर घर की सजावट की जाती है। शिशु को नहला कर नये वस्त्र पहनाये जाते हैं। बच्चे के माता-पिता नये वस्त्र धारण कर संस्कार में शामिल होते हैं। नामकरण संस्कार के लिये छोटी पूजा की जाती है। इसके लिये माता-पिता शिशु को गोद में लेकर बैठते हैं। इसके बाद निर्धारित क्रम से मङ्गलाचरण, षट्कर्म, संकल्प, यज्ञोपवीत परिवर्तन, कलावा, तिलक एवं रक्षा-विधान तक का क्रम पूरा करके विशेष कर्मकाण्ड प्रारम्भ किया जाता है। सिंचन के लिए तैयार कलश में मुख्य कलश का थोड़ा-सा जल या गंगाजल मिलाया जाता है। तत्पश्चात मंत्रोच्चारण के साथ बालक का संस्कार कराने वालों एवं उपकरणों पर सिंचन किया जाता है। इसके बाद संस्कार के लिए तैयार मेखला शिशु की कमर में बाँधी जाती है। यह कटिबद्ध रहने का प्रतीक है। माना जाता है कि इससे शिशु का में आलस्य नहीं रहता, वह मुस्तैद रहता है व कर्तव्यपरायण होता है। मधुर वाणी के लिये बच्चे को चांदी के चम्मच या अंगूठी आदि से बच्चे को शहद चटाया जाता है। इस तरह पंडित द्वारा विधि विधान से अन्य प्रक्रियाएं भी संपन्न कर माता-पिता से बच्चे के कान में उसके नाम का धीरे से उच्चारण करवाया जाता है। इस तरह नामकरण संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाती है।

नामकरण में इन बातों का रखें ध्यान
नामकरण संस्कार घर में ही करवायें तो अच्छा होता है इसके अलावा, प्रज्ञा संस्थानों या यज्ञ स्थलों पर भी यह संस्कार कराया जाना उचित है। पूजा के लिये कलश पर रोली से ॐ, स्वस्तिक आदि शुभ चिह्न भी बनायें। शिशु की कमर में इस दिन सुतली या रेशम का धागा भी बांधा जाता है। नाम घोषणा में प्रयोग होने वाली थाली नई होनी चाहिये जिसे नाम घोषणा के समय ही खोला जाये। घर में सात्विक व्यंजनों का प्रयोग करें इससे भविष्य में बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। पूजा के समय बच्चे को मां पास रखना अच्छा व शुभ माना जाता है।