जिस प्रकार हर काम के करने की एक विधि होती है एक तरीका होता है उसी प्रकार पूजा की भी विधियां होती हैं क्योंकि पूजा का क्षेत्र भी धर्म के क्षेत्र जितना ही व्यापक है। हर धर्म, हर क्षेत्र की संस्कृति के अनुसार ही वहां की पूजा विधियां भी होती हैं। मसलन मुस्लिम नमाज अदा करते हैं 

बृहस्पतिवार पूजा

बृहस्पतिवार यानि बृहस्पति का दिन, बृहस्पति यानि देवताओं के गुरु, इसलिये यह गुरु का दिन यानि गुरुवार भी कहलाता है। हालांकि बृहस्पतिवार के दिन पूजा भगवान श्री विष्णु जी की होती है, इनकी पूजा से बृहस्पतिदेव भी प्रसन्न होते हैं। हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में बृहस्पतिवार के व्रत का महत्व भी बताया गया है। मान्यता है कि अनुराधा नक्षत्र युक्त बृहस्पतिवार से शुरु कर लगातार सात गुरुवार तक व्रत करने से बृहस्पति ग्रह के कारण पैदा हुए दोष से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक ग्रंथों में ही बृहस्पतिवार की कथा भी मिलती है।

अन्य पूजा विधियां

बृहस्पतिवार व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है कि किसी नगर में एक व्यापारी रहता था। व्यापारी बहुत ही सज्जन था लेकिन उसकी पत्नी बहुत ही कंजूस। व्यापारी जहां कमाने के साथ-साथ दान पुण्य के काम भी दिल खोल कर करता वहीं उसकी पत्नी आये दिन द्वार पर आये साधुओं का निरादर करती रहती। एक बार क्या हुआ कि स्वयं बृहस्पतिदेव साधु के भेष में व्यापारी के द्वार पर पंहुच गये। अब घर पर व्यापारी तो था नहीं इसलिये वह साधु का निरादर करने लगी और कहने लगी कि उसे इस धन दौलत से बहुत परेशानी हो रही है कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे यह नष्ट हो जाये। तब साधु के वेश में प्रकट हुए बृहस्पतिदेव ने उन्हें समझाने का प्रयास भी किया कि वह धन को नेकी के कामों में लगाये लेकिन उसने एक न सुनी। तब बृहस्पतिदेव ने कहा यदि तुम वाकई यह चाहती हो तो लगातार सात बृहस्पतिवार को अपने घर को गोबर से लीपना, अपना केश भी पीली मिट्टी से गुरुवार के दिन ही धोना, कपड़े भी इसी दिन धोना, अपने पति से भी बृहस्पतिवार को हजामत करवाने की कहना, भोजन में भी मांस-मदिरा आदि का सेवन करने की कहना। यह कहकर बृहस्पतिदेव वहां से अंतर्ध्यान हो गये। लेकिन उनकी बातों को व्यापारी की पत्नी ने हल्के में नहीं लिया और जैसा उन्होंने कहा वैसा ही करने लगी, तीसरे बृहस्पतिवार तक तो उनके घर में कंगाली आ गयी और वह भी मृत्यु को प्राप्त हो गई। व्यापारी की एक पुत्री भी थी। अब वह अपनी पुत्री को लेकर सड़क पर आ चुका था, गुजर-बसर करने के लिये उसने दूसरे गांव की शरण ली। वह जंगल से लकड़ियां काटता और उन्हें बेचकर जैसे तैसे दिन काटने लगा। अपनी बेटी की छोटी-छोटी इच्छाओं को पूरा करने में असमर्थ होने पर उसे अत्यंत पीड़ा होती। एक दिन तो जंगल में वह अपने जीवन को देखकर विलाप करने लगा कि इस हालत में देख बृहस्पतिदेव साधु रूप में उसके सामने प्रकट हुए और बृहस्पति की पूजा करने व कथा पाठ करवाने की सलाह दी, बृहस्पति देव के आशीर्वाद से उस दिन व्यापारी की लकड़ियां भी अच्छे दाम में बिकी। अब उसने साधु के कहे अनुसार बृहस्पति देव की आराधना की व उपवास रखा और कथा भी सुनी। उनके दिन फिरने लगे लेकिन सात व्रत पूरे होने से पहले ही एक गुरुवार वह कथा और उपवास करना भूल गया। उसी दिन राजा ने भोज के लिये सभी को निमंत्रण दिया था। लेकिन यहां भी वे देरी से पंहुचे और राजा ने अपने परिवार के साथ उन्हें भोजन करवाया। बृहस्पति देव की माया देखिये कि रानी का हार चोरी हो जाता है और आरोप बाप-बेटी पर लग जाता है दोनों को कारागार में डाल दिया जाता है। व्यापारी को फिर बृहस्पतिदेव की याद आती है तो वे कहते हैं कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है यहां रहते हुए भी तुम बृहस्पति का उपवास रख सकते हो कथा सुनो व सुनाओ और गुड़ चने का प्रसाद बांटो। अब व्यापारी को 2 पैसे वहीं जेल के दरवाज़े पर मिलते हैं वह एक महिला को गुड़ चना लाने के लिये बोलता है लेकिन वह कहती है कि उसके बेटे का विवाह है इसलिये वह थोड़ी जल्दी में है वहीं एक ओर स्त्री आती है जिसके पुत्र की मृत्यु हो जाती है और वह उसके लिये कफ़न ला रही होती है। वह उससे भी वही कहता है कि बृहस्पति देव की कथा करने के लिये उसे गुड़ व चना लाकर दे। वह उसे लाकर देती है और स्वयं भी उसकी कथा सुनती है। अब जिस औरत के पुत्र का विवाह था वह तो घोड़ी से नीचे गिरकर मर जाता है और जो महिला अपने बेटे के लिये कफन लेने गई थी उसके मुंह में प्रसाद व चरणामृत डालते ही वह जीवित हो उठता है। दूसरी महिला भी विलाप करते हुए व्यापारी के पास पंहुचती है और अपनी भूल पर क्षमा मांगती है और बृहस्पति जी की कथा सुनकर प्रसाद व चरणामृत लेकर अपने पुत्र के मुंह में डालती है जिससे वह पुन: जीवित हो उठता है। उसी रात राजा को भी बृहस्पति देव सपने में आकर बताते हैं कि उनका हार खोया नहीं है बल्कि वह वहीं खूंटी पर टंगा है। उसने निर्दोष पिता-पुत्री को कारागार में डाल रखा है। अगले ही दिन राजा उन्हें आज़ाद कर देता है और व्यापारी को बहुत सारा धन देकर उसकी पुत्री का विवाह भी स्वयं ही अच्छे धनी परिवार में करवाता है।

बृहस्पतिवार व्रत पूजा विधि
कुल मिलाकर उपरोक्त कहानी को पढ़ने से बृहस्पतिवार के महत्व के बारे में हमें पता चलता है कि इस दिन किसी भी साधु सन्यासी, घर के बड़े-बुजूर्ग, किसी दीन-दुखी का उपहास नहीं उड़ाना चाहिये, ना ही उनकी उपेक्षा करनी चाहिये। इनकी सेवा करके पुण्य कमाना चाहिये। साथ ही ऐसे कर्म भी नहीं करने चाहियें जिनसे गुरु ग्रह बृहस्पति के कोप का भाजन बनना पड़े। गुरुवार के दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा की जाती है। कई जगह देवगुरु बृहस्पति व केले के पेड़ की पूजा करने की भी मान्यता है। बृहस्पति बुद्धि के कारक माने जाते हैं तो केले का पेड़ हिंदूओं की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि अनुराधा नक्षत्र युक्त गुरुवार से आरंभ कर लगातार सात गुरुवार उपवास रखना चाहिये। प्रत्येक उपवास के दिन श्री हरि की पूजा के पश्चात गुरुवार व्रत कथा सुननी चाहिये। इस दिन पीले वस्त्र धारण करने चाहियें। पीले फलों का पूजा में इस्तेमाल करना चाहिये। इस दिन सिर्फ एक बार बिना नमक का पीले रंग का भोजन ग्रहण करना चाहिये, चने की दाल का प्रयोग भी उत्तम माना जाता है। व्रती को प्रात: उठकर भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत संकल्प लेना चाहिये। अगर बृहस्पतिदेव की पूजा करनी हो तो उनका ध्यान करना चाहिये और फल, फूल पीले वस्त्रादि से बृहस्पतिदेव और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिये। केले का प्रसाद बहुत शुभ माना जाता है। केले दान करना भी शुभ रहता है। बृहस्पतिवार की कथा शाम के समय सुननी चाहिये और कथा के बाद बिना नमक का भोजन ग्रहण करना चाहिये।

मान्यता है कि विधिपूर्वक उपवास रखने व गुरुवार व्रत कथा श्रवण से व्यक्ति का गुरु ग्रह से संबंधित दोष दूर हो जाता है और अपने से बड़े लोगों की कृपा बनी रहती है। इस दिन कपड़े धोना या फिर बाल या दाड़ी बनवाना वर्जित माना जाता है।