Vaidic Jyotish
September 19, 2024 9:53 PM

Chandra Navami 2024 : श्रीचन्द्र नवमी

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

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Chandra Navami 2024 : ॐ श्री चंद्राये नमः….15 वीं शताब्दी का राजनीतिक और सांस्कृतिक द्रष्टि से अस्थिरता का काल रहा,यह दैवी तथा आसुरी सम्पदाओं के टकराहट का युग था,विभिन्न धर्मों,सम्प्रदाओं,मत-मतान्तरों तथा उपासना प्रणालियों के लोग सत्य से कोसों दूर चले गये थे,भेदभाव एवं विषमताओं से परिपूर्ण थे.विधर्मी शासन ने पूरे देश को जकड़ लिया था,सामान्य जनता त्रस्त हो उठी थी.आवश्यकता थी जो देश की आध्यातिमक एवं भौतिक जगत की डूबती नैया को पार लगा सके,ऐसी विषम परस्थितियों में जगतगुरु श्रीचन्द्रदेव जी का प्रादुर्भाव भाद्रपद शुक्ल नवमी संवत 1551 को लाहौर की खड़गपुर तहसील के तलवंडी नामक स्थान में श्रीगुरु नानकदेव जी की पत्नी सुलक्षणा देवी के घर हुआ था,आप निवृत्ति प्रधान सनातन धर्म के पुनरुद्धार के लिये अवतरित हुये थे.जन्म से ही सिर पर जटाएं,शरीर पर भस्म तथा दाहिने कान में कुंडल शोभित था.आप के भस्म विभूषित विग्रह को देखकर दर्शनार्थी अपर शिव मानकर श्रद्धा संवलित हो उठते थे.जन्म साखी रचना में इसी प्रकार के भाव व्यक्त हुए हैं.वर्ष 2024 में श्रीचंद्र नवमी 12 सितम्बर को मनाई जायेगी.!

आचार्य श्रीचन्द्र देव जी बचपन से ही वैराग्य वृत्तियों से युक्त थे.ऋद्धि~सिद्धियाँ हाथ जोड़े हुए आपकी सेवा में सदैव तत्पर रहती थीं.ग्यारहवें वर्ष में पंडित हरदयाल शर्मा जी के द्वारा आपका यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हुआ,आपने परम ज्ञानी वेदवेत्ता विद्वान,कुलभूषण,कश्मीर मुकुटमणि पंडित पुरुषोत्तम कौल जी से वेद-वेदांग और शास्त्रों का गंभीर अध्ययन किया,अद्वितीय प्रतिभा के सम्पन्न होने के कारण आपने बहुत ही कम समय में सारी विधायें हस्तामलक कर लीं,आपने भगवान बुद्ध की तरह लोकभाषा में उपदेश किया,भाष्यकार आधशंकराचार्य जी की तरह वेदों का भाष्य किया तथा कबीर आदि संतों की तरह वाणी साहित्य की रचना की.!

आचार्य श्रीचन्द्रदेव जी वैदिक कर्मकाण्ड के पूर्ण समर्थक थे,उन्होनें ज्ञान-भकित के समुच्चय सिद्धांत को प्रतिपादित किया.उन्होनें करामाती फकीरों, सूफी संतों, अघोरी तांत्रिकों और विधर्मियों को अपनी अलौकिक सिद्धियों और उपदेशों से प्रभावित कर वैदिक धर्म की दीक्षा दी.बाह्माडम्बर,मिथ्याचार अवैदिक मत-मतान्तरों, पाखंडों का खंडन कर श्रुति-स्मृति सम्मत आचार-विचार की प्रतिष्ठा की.भावात्मक एवं वैचारिक धरातल पर जीव मात्र की एकता का प्रतिपादन किया,जाति-पांति,ऊँच-नीच, छोटे-बड़े के भेदभाव को समाप्त कर मानव मात्र की मुकित की राह दिखाई,उनका उदघोष था :-

चेतहु नगरी,तारहु गाँव.अलख पुरुष का सिमरहु नांव.!
भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिये शैव,वैष्णव,शाक्त,सौर तथा गणपत्य मतावलंवियों को संगठित कर पंचदेवोपासना की प्रतिष्ठा की,स्मार्त हिन्दू धर्म की महिमा समझाई.वैचारिक वाद-विवाद को मिटाकर सत्य सनातन धर्म को समन्वय का विराट सूत्र प्रदान किया.उन्होनें कहा-”निर्वैर सन्ध्या दर्शन छापा वाद-विवाद मिटावै आपा”.!

अन्तत: आचार्य देव जी ने अपने प्रमुख चारों शिष्यों ‘श्री अलिमस्त साहेब जी,श्री बालूहसना साहेब जी, श्री गोविन्ददेव साहेब जी एवं श्री फूलसाहेब जी को चारों दिशाओं उत्तर,पूरब,दक्षिण एवं पशिचमद्ध के प्रतीक चार धूना से सुशोभित किया,जिनकी परम्परा स्वरूप आज भी चार मुख्य महंत होते हैं.धूणे के रूप में वैदिक यज्ञोपासना को नूतन रूप दिया तथा निर्वाण साधुओं के रहने का आदर्श प्रतिपादित कर निवृत्ति प्रधान धर्म की प्रतिष्ठा की.150 वर्षों तक धराधाम पर रहकर अंतिम क्षणों में ब्रह्राकेतु जी को उपदेश दिया और रावी में शिला पर बैठकर पार गये तथा चम्बा नामक जंगल में ”वि0 संवत 1700 पौष कृष्ण पंचमी को अंर्तध्यान हो गये.वह अजर-अमर शिव रूप होकर आज भी भक्तों और श्रद्धालु आसितकों की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पितAstro Dev YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II
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