या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जय माता दी……चैत्र वसंत नवरात्रि 09 अप्रैल से से 17 अप्रैल तक रहेगी.इस वर्ष चैत्र नवरात्रि की आरम्भता अविस्मरणीय-अकल्पनीय-अतुलनीय शुभ संयोग के साथ हो रही है,इस दिन नव संवत्सर पर गजकेसरी योग,बुधादित्य योग,हंस योग,शष योग,धर्मात्मा बने हैं.!
प्रतिवर्ष चार नवरात्रि पड़ती हैं जिनमें से एक चैत्र नवरात्रि मंगलवार 09 अप्रैल से प्रारम्भ हो रही है.चैत्र नवरात्रि की आरम्भ चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि से होती है.इन नवरात्रि की अवधी में विधि-विधान से मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है.वासन्त नवरात्रि में जो भक्त मां दुर्गा की आराधना करते हैं उन्हें मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और मां उनके समस्त कष्टों को हर लेती हैं.वासन्त नवरात्रि की आरम्भता घटस्थापना से होती है तथा अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर कन्या पूजन के साथ समापन किया है.!
-:’घट स्थापना शुभ मुहूर्त’:-
सम्वत 2081 कालयुक्त नाम से जाना जाएगा,09 अप्रैल 2024 को कलश/घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में प्रातः06 बजकर 07 मिनट से लेकर 10 बजकर 11 मिनट तक है,इसके अतिरिक्त 11 बजकर 58 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त है। आप इन दोनों मुहूर्त में घटस्थापना कर सकते हैं.!
-:’चैत्र नवरात्रि पर बना रहे हैं अनेकानेक शुभ संयोग’:-
इस बार चैत्र वासन्त नवरात्रि की शुरुआत शुभ संयोग में हो रही है.चैत्र नवरात्रि प्रतिपदा में घटस्थापन्ना के दिन कई शुभ योग भी रहेंगे,इस दिन मेष राशि में चंद्रमा+बुध+बृहस्पति की युति से गजकेसरी योग,हंस योग,शष योग,धर्मात्मा और राज लक्षण योग का निर्माण हो रहा हैं,इतने शुभ संयोगों के कारण यह चैत्र नवरात्रि भक्तों के लिए विशेष फलदायी रहने वाली है.!
-:’घट/कलश स्थापना विधि’:-
पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ,गेहूं आदि सप्त धान्य बोएं,उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने,तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें,कलश के ऊपर सोना,चांदी,तांबा, मिट्टी,पत्थर की भगवती मूर्ती या चित्रमयी मूर्ति रखें.मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी,कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें.!
मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु की पूजा करें,नवरात्र व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका,लोकपाल,नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें…!
अन्त में प्रधान देवता अर्थात भगवती की मूर्ति की पूजा करें,दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए.!
-:’संक्षिप्त कलश/घट पूजन विधि’:-
-:व्रत का संकल्प लेने के पश्चात ब्राह्मण द्वारा या स्वयं ही मिटटी की वेदी बनाकर जौ बोये जाते है,कलश की स्थापना के साथ ही सबसे पहले दीपक,व धूप प्रज्वलित करें!
-:11 बार ओम गण गणपतये नमः का उच्चारण करें.!
-:कलश में भगवान विष्णु को स्थापित करें और विष्णुब्ये नमः का 11 बार जाप करें.!
-:तत्पश्चात ओम देब्ये नमः का 11 बार उच्चारण करें.!
-:अपने पितरों {पूर्वज जो शरीर छोड़ चुके हों} को प्रणाम करें.!
-:सूर्यादि नवग्रह को प्रणाम करें.!
-:एवं अंत मैं मां भगवती {दुर्गा} का पूजन आरंभ करें.!
-:सबसे पहले शुद्ध जल से स्नान करायें.!
-:दूध दही घी शहद शक्कर से और अंत में गंगा जल से तथा इस अवधि में मन ही मन ओउम जगत जननी दुर्गा देब्ये नमः का जाप करते रहें.!
-:वस्त्र तिलक अक्षत {चावल} श्रृंगार आभूषण पुष्प अर्पण करें.!
-:दीपक और धूप प्रदृशित करें.!
-:मां को भोग लगाएं पांच फल अर्पण करें,ताम्बूल लौंग इलाइची अर्पण करें.!
-:श्रद्धा भावना से दक्षिणा अर्पण करें.!
-:विशेष कामना हेतु नारिकेला {गिरि नारियल }से विशेष अर्घ्य अर्पण करें.!
-:अन्त में माँ की आरती करें.तत्पश्चात दुर्गा शप्तशती;दुर्गा स्तोत्र;या दुर्गा चालीसा ज्ञान के अनुसार पाठ करें.नौ दिनों तक चलनेवाला यह पर्व अपने साथ सुख,शांति और समृद्धि प्रदान करने वाला होता है. शक्ति पूजा का यह समय संपूर्ण ब्रह्माण की शक्ति को नमन करने और प्रकृत्ति के निर्विकार रुप से अग्रसर होने का समय होता है.!
नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook पर प्राप्त कर सकते हैं.II