ॐ गं गणपतये नमो नमः …प्रथम पूज्य गणेशजी का उत्सव इस बार भादौ {भाद्रपद} माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी मंगलवार 19 सितम्बर से आरम्भ होकर,अनंत चतुर्दशी गुरुवार 28 सितंबर को सम्पन्न होंगे,इसी दिन गणपति विसर्जन होगा,इस साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का आरम्भ 18 सितंबर को मध्याहन 12 बजकर 40 मिनट से होकर 19 सितंबर को मध्यहन 13 बजकर 44 मिनट तह रहेगी,अतैव उदयातिथि के अनुसार सिद्धिविनायक व्रत 19 सितंबर को ही करना शास्त्र सम्मत होगा.!
वृश्चिक जोकि स्थिर लग्न है. 19 सितंबर को पूर्वाह्न 10 बजकर 54 मिनट से मध्याहन 13 बजकर 11 मिनट तक रहेगा.इस सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में आप पूरे मान-सम्मान,हर्षोल्लास और ढोल-नगाड़ों के साथ गणपति को अपने घर लाकर विराजमान करें और विधि-विधान से पूजा करें.!
-:”इस तरह करें विघ्न नाशक की स्थापना”:-
प्रथम पूज्य गणेश जी की स्थापना के लिए चतुर्थी के दिन स्नान-ध्यान के बाद श्रेष्ठ चौघड़िया में गणेशजी की प्रतिमा को पाटे पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर गंध,अक्षत,पुष्प,धूप,दीप के साथ फलों और मोदक या बूंदी के लड्डू समर्पित करें,इसके बाद दूर्वा,हरे मूंग,गुड़ और चावल चढ़ाएं,पूजा में गणेशजी को तीन,पांच या सात पत्तियों वाली दूर्वा समर्पित करना चाहिए,दूर्वा चढ़ाने से गणेशजी बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं,आरती के बाद परिवार के सभी सदस्य प्रसाद बांटकर भोजन ग्रहण करें.!
-:”श्री गणेश चतुर्थी व्रत कैसे करें”:-
श्री गणेश को चतुर्थी तिथि बेहद प्रिय है,व्रत करने वाले जन को इस तिथि के दिन प्रात: काल में ही स्नान व अन्य क्रियाओं से निवृ्त होना चाहिए.इसके पश्चात उपवास का संकल्प लिया जाता है.संकल्प लेने के लिये हाथ में जल व दूर्वा लेकर गणपति का ध्यान करते हुए,संकल्प में यह मंत्र बोलना चाहिए.!
“मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये”
इसके पश्चात सोने या तांबे या मिट्टी से बनी प्रतिमा चाहिए.इस प्रतिमा को कलश में जल भरकर, कलश के मुँह पर कोरा कपडा बांधकर,इसके ऊपर प्रतिमा स्थापित की जाती है.फिर प्रतिमा पर सिंदूर चढाकर षोडशोपचार से उनका पूजन किया जाता है,पूजा करने के बाद आरती की जाती है.!
-:”श्री गणेश जी की आरती”:-
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
लडुअन के भोग लागे, सन्त करें सेवा। जय ..
एकदन्त, दयावन्त, चार भुजाधारी।
मस्तक सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी॥ जय ..
अन्धन को आंख देत, कोढि़न को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥ जय ..
हार चढ़े, पुष्प चढ़े और चढ़े मेवा।
सब काम सिद्ध करें, श्री गणेश देवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
विघ्न विनाशक स्वामी, सुख सम्पत्ति देवा॥ जय ..
पार्वती के पुत्र कहावो, शंकर सुत स्वामी।
गजानन्द गणनायक, भक्तन के स्वामी॥ जय ..
ऋद्धि सिद्धि के मालिक मूषक सवारी।
कर जोड़े विनती करते आनन्द उर भारी॥ जय ..
प्रथम आपको पूजत शुभ मंगल दाता।
सिद्धि होय सब कारज, दारिद्र हट जाता॥ जय ..
सुंड सुंडला, इन्द इन्दाला, मस्तक पर चंदा।
कारज सिद्ध करावो, काटो सब फन्दा॥ जय ..
गणपत जी की आरती जो कोई नर गावै।
तब बैकुण्ठ परम पद निश्चय ही पावै॥ जय .
श्री गणेशाय नम:
आरती के पश्चात दक्षिण अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाया जाता है. इसमें से पांच लड्डू श्री गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बाँट दिये जाते है.!
विशेष- गणेश चतुर्थी के दिन,चन्द्र दर्शन वर्जित होता है,इस दिन चन्द्र दर्शन करने से व्यक्ति पर झूठे कलंक लगने की आंशका रहती है.इसलिये यह उपवास को करने वाले व्यक्ति को अर्ध्य देते समय चन्द्र की ओर न देखते हुए,नजरे नीची कर अर्ध्य देना चाहिए.!
-:”चतुर्थी पूजन महत्व”:-
चंद्रमा को देखे बिना अर्ध्य देने का तात्पर्य है कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से व्यक्ति कलंक का भागी बनता है. क्योंकि एक बार चंद्रमा ने गणेश जी का मुख देखकर उनका मजाक उड़ाया था इस पर क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि,आज से जो भी तुम्हें देखेगा उसे झूठे अपमान का भागीदार बनना पडे़गा परंतु चंद्रमा के क्षमा याचना करने पर भगवान उन्हें श्राप मुक्त करते हुए कहते हैं कि वर्ष भर में एक दिन भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन से कलंक लगने का विधान बना रहेगा.!
व्रत से सभी संकट-विघ्न दूर होते हैं.चतुर्थी का संयोग गणेश जी की उपासना में अत्यन्त शुभ एवं सिद्धिदायक होता है.चतुर्थी का माहात्म्य यह है कि इस दिन विधिवत् व्रत करने से श्रीगणेश तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं.चतुर्थी का व्रत विधिवत करने से व्रत का सम्पूर्ण पुण्य प्राप्त हो जाता है.!
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