भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥
अक्षर चौविस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥
शाश्वत सतोगुणी सत रूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥
हंसारूढ श्वेताम्बर धारी। स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी॥
पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला। शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥
हे प्राणस्वरुप दुखनाशक सुख स्वरुप गायत्री मां परमात्मा के साथ मिलकर तीनों लोकों की जननी आप ही हैं। हे गायत्री मां आप इस कलियुग में पापों का दलन करती हैं। आपके मंत्र (गायत्री मंत्र) के 24 अक्षर सबसे पवित्र हैं ( वेदों का सबसे महत्वपूर्ण व फलदायी मंत्र गायत्री मंत्र को ही माना जाता है)। इन चौबीस अक्षरों में सभी वेद शास्त्र श्रुतियों व गीता का ज्ञान समाया हुआ है। आप सदा से सतोगुणी सत्य का रुप हैं। आप हमेशा से सत्य का अनूठा अमृत हैं। आप श्वेत वस्त्रों को धारण कर हंस पर सवार हैं, आपकी कान्ति अर्थात आपकी चमक स्वर्ण यानि सोने की तरह पवित्र हैं व आप आकाश में भ्रमण करती हैं। आपके हाथों में पुस्तक, फूल, कमण्डल और माला हैं आपके तन का रंग श्वेत है व आपकी बड़ी बड़ी आखें भी सुंदर लग रही हैं।
ध्यान धरत पुलकित हिय होई। सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अद्भुत माया॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥
तुम्हरी महिमा पार न पावैं। जो शारद शत मुख गुन गावैं॥
हे मां गायत्री आपका ध्यान धरते ही हृद्य अति आनंदित हो जाता है, दुखों व दुर्बुधि का नाश होकर सुख की प्राप्ति होती है। हे मां आप कामधेनु गाय की तरह समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करती हो आपकी शरण में देववृक्ष कल्पतरु की छाया के समान सुख मिलता है। आप निराकार भगवान की अद्भुत माया हैं। आपकी शरण में जो कोई भी आता है, वह सारे संकटों से पार पा लेता है अर्थात उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। आप सरस्वती, लक्ष्मी और काली का रुप हैं। आपकी दीप ज्योति सबसे निराली है। हे मां यदि मां सरस्वती के सौ मुखों से भी कोई आपका गुणगान करता है तो भी वह आपकी महिमा का पार नहीं पा सकता अर्थात वह आपकी महिमा का पूरा गुणगान नहीं कर सकता।
चार वेद की मात पुनीता। तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥
महामन्त्र जितने जग माहीं। कोउ गायत्री सम नाहीं॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै। आलस पाप अविद्या नासै॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी। कालरात्रि वरदा कल्याणी॥
हे मां आप ही चारों वेदों की जननी हैं, आप ही भगवान ब्रह्मा की पत्नी ब्रह्माणी हैं, आप ही मां पार्वती हैं, आप ही मां सीता हैं। संसार में जितने भी महामंत्र हैं, कोई भी गायत्री मंत्र के समान नहीं हैं अर्थात गायत्री मंत्र ही सर्वश्रेष्ठ मंत्र है। आपके मंत्र का स्मरण करते ही हृद्य में ज्ञान का प्रकाश हो जाता है व आलस्य, पाप व अविद्या अर्थात अज्ञानता का नाश हो जाता है। आप ही सृष्टि का बीज मंत्र हैं जगत को जन्म देने वाली मां भवानी भी आप ही हैं, अतिंम समय में कल्याण भी हे गायत्री मां आप ही करती हैं।
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते। तुम सों पावें सुरता तेते॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे। जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी। जय जय जय त्रिपदा भयहारी॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना। तुम सम अधिक न जगमे आना॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा। तुमहिं पाय कछु रहै न कलेशा॥
जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई। पारस परसि कुधातु सुहाई॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई। माता तुम सब ठौर समाई॥
भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव के साथ-साथ जितने भी देवी देवता हैं, सभी अपना देवत्व आपसे ही प्राप्त करते हैं। जो भक्त आपकी भक्ति करते हैं, आप हमेशा उनके साथ रहती हैं। जिस प्रकार मां को अपनी संतान प्राणों से प्यारी होती है, उसी प्रकार आपको भी अपने भक्त प्राणों से प्यारे हैं। आपकी महिमा तो अपरंपार है। हे त्रिपदा (भु:, भुव:, स्व:) भय का हरण करने वाली गायत्री मां आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आपने ने संसार में ज्ञान व विज्ञान की अलख जगाई अर्थात संसार के सारे ज्ञान विज्ञान एवं आध्यात्मिक ज्ञान आपने ही पिरोए हैं। पूरे ब्रह्मांड में कोई भी आपसे श्रेष्ठ नहीं है। आपको जानने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रहता, ना ही आपको पाने के बाद किसी तरह का दुख किसी तरह का क्लेश जीवन में रहता है। आपको जानने के बाद वह आपका ही रुप हो जाता है जिस प्रकार पारस के संपर्क आने से लोहा भी सोना हो जाता है। आपकी शक्ति हर और आलोकित है, प्रकाशमान हैं, आप सर्वत्र विद्यमान हैं।
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे। सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥
सकल सृष्टि की प्राण विधाता। पालक पोषक नाशक त्राता॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी। तुम सन तरे पातकी भारी॥
जापर कृपा तुम्हारी होई। तापर कृपा करें सब कोई॥
ब्रह्माण्ड में बहुत सारे ग्रह हैं, नक्षत्र हैं ये सब आपकी प्रेरणा, आपकी कृपा, आपके कारण ही गतिशील हैं। आप समस्त सृष्टि में प्राणों का विधान करने वाली हैं, अर्थात सृष्टि को प्राण तत्व आपने ही प्रदान किया है। पालन पोषण से लेकर नष्ट करने वाली भी तुम्हीं हो। हें मां आपका व्रत धारण करने वालों पर आप दया करती हैं व पापी से पापी प्राणी को भी मुक्ति दिलाती हैं। जिस पर भी आपकी कृपा होती है उस पर सभी कृपा करते हैं।
मन्द बुद्धि ते बुधि बल पावें। रोगी रोग रहित हो जावें॥
दरिद्र मिटै कटै सब पीरा। नाशै दुःख हरै भव भीरा॥
गृह क्लेश चित चिन्ता भारी। नासै गायत्री भय हारी॥
सन्तति हीन सुसन्तति पावें। सुख संपति युत मोद मनावें॥
भूत पिशाच सबै भय खावें। यम के दूत निकट नहिं आवें॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई। अछत सुहाग सदा सुखदाई॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी। विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥
हे मां गायत्री आपके जाप से मंद बुद्धि, बुद्धि बल प्राप्त करते हैं तो रोगियों के रोग दूर हो जाते हैं। दरिद्रता के साथ-साथ तमाम पीड़ाएं कट जाती हैं। आपके जप से ही दुखों व चिंताओं का नाश हो जाता है, आप हर प्रकार के भय का हरण कर लेती हैं। यदि किसी के घर में अशांति रहती है, झगड़े होते रहते हैं, गायत्री मंत्र जाप करने से उनके संकट भी कट जाते हैं। संतान हीन भी अच्छी संतान प्राप्त करते हैं व सुख समृद्धि के साथ खुशहाल जीवन जीते हैं। आप भूत पिशाच सब प्रकार के भय से छुटकारा दिलाती हैं व अंतिम समय में भी यम के दूत उसके निकट नहीं आते अर्थात जो आपका जाप करता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जो सुहागनें ध्यान लगाकर आपका स्मरण करती हैं, उनका सुहाग सदा सुरक्षित रहता है, उन्हें सदा सुख मिलता है। जो कुवांरियां आपका ध्यान लगाती हैं उन्हें सुयोग्य वर प्राप्त होता है। आपके जाप से विधवाओं को सत्य व्रत धारण करने की शक्ति मिलती है।
जयति जयति जगदम्ब भवानी। तुम सम ओर दयालु न दानी॥
जो सतगुरु सो दीक्षा पावे। सो साधन को सफल बनावे॥
सुमिरन करे सुरूचि बडभागी। लहै मनोरथ गृही विरागी॥
हे मां जगदंबे, हे मां भवानी आपकी जय हो, आपकी जय हो। आपके समान और दूसरा कोई भी दयालु व दानी नहीं है। जो सच्चे गुरु से दीक्षा प्राप्त करता है वह आपके जप से अपनी साधना को सफल बनाता है। आपका सुमिरन व आपमें जो रुचि लेता है वह बहुत ही भाग्यशाली होता है। गृहस्थ से लेकर सन्यासी तक हर कोई आपका जाप कर अपनी मनोकामनाएं पूरी करता है।
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता। सब समर्थ गायत्री माता॥
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी। आरत अर्थी चिन्तित भोगी॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें। सो सो मन वांछित फल पावें॥
बल बुधि विद्या शील स्वभाउ। धन वैभव यश तेज उछाउ॥
सकल बढें उपजें सुख नाना। जे यह पाठ करै धरि ध्याना॥
हे गायत्री मां आप आठों सिद्धियां नौ निधियों की दाता हैं, आप हर मनोकामना को पूर्ण करने में समर्थ हैं। ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, योगी, राजा, गरीब, या फिर चिंता का सताया हुआ कोई भी आपकी शरण में आता है तो उसे इच्छानुसार फल की प्राप्ति होती है। जो भी आपका ध्यान लगाता है उसे बल, बुद्धि, विद्या, शांत स्वभाव तो मिलता ही है साथ ही उनके धन, समृद्धि, प्रसिद्धि में तेजी से बढ़ोतरी होती है। जो भी आपका ध्यान धर कर यह पाठ करता है उसे कई प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है व उसका वैभव हर प्रकार से बढ़ता है।
॥दोहा॥
यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई।
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय॥
पूरी भक्ति के साथ जो भी इस चालीसा का पाठ करेगा उस पर मां गायत्री प्रसन्न होकर कृपा करती हैं।