Vaidic Jyotish
September 17, 2024 1:01 AM

Hal Shashti 2024: हल-चन्दन षष्ठी

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

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Hal Shashti 2024: नमो नारायण…..भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है,इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था,वर्ष 2024,में हल षष्ठी 24, अगस्त को मनाई जायेगी.हलषष्ठी को हलछठ,कमरछठ, चन्दन छठ या खमरछठ भी कहा जाता है,संतान प्राप्ति व उनके दीर्घायू सुखमय जीवन की कामना रखकर माताएँ इस व्रत को रखती है.!

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भैया बलरामजी (बलदाऊ) का जन्म हुआ था| बलरामजी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम ‘हल षष्ठी’ पड़ा.!

मान्यता है इस दिन हल से जुते हुए अनाज व सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है| इसलिए महिलाएं इस दिन तालाब में उगे पसही के चावल खाकर व्रत रखती हैं| यह भी मान्यता है कि इस दिन गाय का दूध व दही इस्तेमाल में नहीं लाया जाता है इसदिन महिलाएं भैंस का दूध व दही इस्तेमाल करती है.!

-:Hal Shashti 2024: पौराणिक कथा:-
वसुदेव-देवकी के 6 बेटों को एक-एक कर कंस ने कारागार में मार डाला,जब सातवें बच्चे के जन्म का समय नजदीक आया तो देवर्षि नारद जी ने देवकी को हलषष्ठी देवी के व्रत रखने की सलाह दी थी,देवकी ने इस व्रत को सबसे पहले किया जिसके प्रभाव से उनके आनेवाले संतान की रक्षा हुई.!

सातवें संतान का जन्म समय जानकर भगवान श्री कृष्ण ने योगमाया को आदेश दिया कि माता देवकी के इस गर्भस्थ शिशु को खींचकर वसुदेव की बड़ी रानी रोहिणी के गर्भ में पहुंचा देना,जो कि इस समय गोकुल में नंद-यशोदा के यहां रह रही है तथा तुम स्वयं माता यशोदा के गर्भ से जन्म लेना.!

योगमाया ने भगवान के आदेश का पालन किया जिससे देवकी के गर्भ से संकर्षण होकर रोहणी के गर्भ से संतान के रूप में बलराम का जन्म हुआ,उसके बाद देवकी की आठवीं संतान के रूप में साक्षात भगवान श्री कृष्ण प्रकट हुए। इस तरह हलषष्ठी देवी के व्रत-पूजन से देवकी के दोनों संतानों की रक्षा हुई.!

हलषष्ठी का पर्व भगवान कृष्ण व भैया बलराम से संबंधित है,हल से कृषि कार्य किया जाता है तथा बलराम जी का प्रमुख हथियार भी है,बलदाऊ भैया कृषि कर्म को महत्व देते थे, वहीं भगवान कृष्ण गौ पालन को,इसलिए इस व्रत में हल से जुते हुए जगहों का कोई भी अन्न आदि व गौ माता के दुध, दही, घी आदि का उपयोग वर्जित है.!

इस दिन उपवास रखनेवाली माताएं हल चलेवाले जगहों पर भी नहीं जाती हैं,इस व्रत में पूजन के बाद माताएं अपने संतान के पीठवाले भाग में कमर के पास पोता (नए कपड़ों का टुकड़ा – जिसे हल्दी पानी से भिगाया जाता है) मारकर अपने आंचल से पोछती हैं जो कि माता के द्वारा दिया गया रक्षा कवच का प्रतीक है.!

पूजन के बाद व्रत करनेवाली माताएं जब प्रसाद-भोजन के लिए बैठती हैं,तो उनके भोज्य पदार्थ में पचहर चावल का भात, छह प्रकार की भाजी की सब्जी (मुनगा, कद्दु ,सेमी, तोरई, करेला,मिर्च) भैस का दुध, दही व घी, सेन्धा नमक, महुआ पेड़ के पत्ते का दोना – पत्तल व लकड़ी को चम्मच के रूप में उपयोग किया जाता है,बच्चों को प्रसाद के रूप मे धान की लाई, भुना हुआ महुआ तथा चना, गेहूं, अरहर आदि छह प्रकार के अन्नों को मिलाकर बांटा जाता है.!

इस व्रत-पूजन में छह की संख्या का अधिक महत्व है,जैसे- भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष का छठवां दिन, छह प्रकार का भाजी, छह प्रकार का खिलौना, छह प्रकार का अन्नवाला प्रसाद तथा छह कहानी की कथा.!

-:Hal Shashti 2024: प्रार्थना मन्त्र :-
गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते।
स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्‌॥
ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि।
अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः॥

– अर्थात् हे देवी! आपने गंगा द्वार,कुशावर्त, विल्वक,नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है,सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारम्बार नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिए.!

-:Hal Shashti 2024:एक अन्य कथा:-
प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी,उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था,एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था,उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा.!

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई,वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया.!

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई,संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी,गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया..!

उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था,उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था,अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया…!

इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ,फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया,उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया.!

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची,बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है.!

वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती,अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए.!

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था,वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी,तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया.!

बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है,तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पितAstro Dev YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II
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