नमो नारायण…माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी “जया एकादशी” कहलाती है. माघ माह में आने वाली इस एकादशी में भगवान श्री विष्णु के पूजन का विधान है. एकादशी तिथि को भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है. इस दिन व्रत और पूजा नियम द्वारा प्रत्येक मनुष्य भगवान श्री विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है. 20 फरवरी 2024 को जया एकादशी का व्रत रखा जाएगा.!
वैष्णवों में एकादशी को अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना गया है. इसी के साथ हिन्दू धर्म के लिए एकादशी तिथि एवं इसका व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है. नारदपुराण में एकादशी तिथि के विषय में बताया गया है, कि किस प्रकार एकादशी व्रत सभी पापों को समाप्त करने वाला है और भगवान श्री विष्णु का सानिध्य प्राप्त करने का एक अत्यंत सहज सरल साधन है. एकादशी व्रत के के दिन सुबह स्नान करने के बाद पुष्प, धूप आदि से भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए.!
-:’जया एकादशी कथा’:-
जया एकादशी की कथा को पढ़ना और सुनना अत्यंत ही उत्तम होता है.पद्मपुराण में वर्णित जया एकादशी महिमा की एक कथा का आधा फल इस व्रत कथा को सुनने मात्र से ही प्राप्त हो जाता है. आईये जानते हैं जया एकादशी कथा और उसकी महिमा के बारे में विस्तार से.!
जया एकादशी के विषय में जानने की इच्छा रखते हुए युधिष्ठिर भगवान मधूसूदन( श्री कृष्ण) से कथा सुनाने को कहते हैं. युधिष्ठिर कहते हैं की हे भगवान माघ शुक्ल पक्ष को आने वाली एकादशी किस नाम से जानी जाती है और इस एकादशी व्रत करने की विधि क्या है. आप इस एकादशी के माहात्म्य को हमारे समक्ष प्रकट करने की कृपा करिये.!
आप ही समस्त विश्व में व्याप्त है. आपका न आदि है न अंत, आप सभी प्राणियों के प्राण का आधार है. आप ही जीवों को उत्पन्न करने वाले, पालन करने और अंत में नाश करके संसार के बंधन से मुक्त करने वाले हैं. ऎसे में आप हम पर भी अपनी कृपा दृष्टि डालते हुए संसार का उद्धार करने वाली इस एकादशी के बारे में विस्तार से कहें. हम इस कथा को सुनने के लिए आतुर हैं.!
युधिष्ठिर के इन वचनों को सुनकर भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न भाव से उन्हें एकादशी व्रत की महिमा के विषय में बताते हुए कहते हैं कि- हे कुन्ति पुत्र माघ माह के शुक्ल पक्ष को आने वाली एकादशी, जया एकादशी होती है. अपने नाम के अनुरुप ही इस एकादशी को करने पर व्यक्ति को समस्त कार्यों में जय की प्राप्ति होती है. व्यक्ति अपने कार्यों को सफल कर पाता है.!
इस जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को ब्रह्म हत्या के पाप से भी मुक्ति प्राप्त हो जाती है. मनुष्य अपने पापों से मुक्त हो कर मोक्ष को प्राप्त करता है. इस एकादशी के प्रभाव से कष्टदायक योनियों से मुक्ति पाता है. जया एकादशी व्रत को विधि-विधान से करने पर मनुष्य मेरे सानिध्य एवं परमधाम को पाने का अधिकारी बनता है.!
जया एकादशी कथा इस प्रकार है- एक समय स्वर्ग के देवता देवराज इंद्र नंदन वन में अप्सराओं व गंधर्वों के साथ विहार कर रहे थे. वहां पर पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या, माल्यवान नामक गंधर्व पर मोहित हो जाती है. माल्यवान भी पुष्पवती के रुप सौंदर्य से आकर्षित हो जाता है. दोनों एक दूसरे के प्रेम में वशीभूत होने के कारण अपने संगीत एवं गान कार्य को सही से नहीं कर पाने के कारण इंद्र के कोप के भागी बनते हैं.!
उनके सही प्रकार के गान और स्वर ताल के बिगड़ जाने के कारण इंद्र का ध्यान भंग हो जाता है और वह क्रोध में आकर उन्हें श्राप दे देते हैं. इंद्र ने उन दोनों गंधर्वों को स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया. इंद्र के श्राप के प्रभाव स्वरुप वह दोनों दु:खी मन से हिमालय के क्षेत्र में जाकर अपना जीवन बिताने लगते हैं. वह अत्यंत कष्ट में जीवन व्यतीत करने लगते हैं. किसी भी वस्तु का उन्हें आभास भी नहीं हो पाता है, रुप, स्पर्श गंध इत्यादि का उन्हें बोध ही नहीं रह पाता है.!
अपने कष्टों से दुखी वह हर पल अपनी इस योनी से मुक्ति के मार्ग की अभिलाषा रखते हुए जीवन बिता रहे होते हैं. तब माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी का दिन भी आता है. उस दिन उन दोनों को पूरा दिन भोजन नही मिल पाता है. बिना भोजन किए वह संपूर्ण दिन व्यतीत कर देते हैं. भूख से व्याकुल हुए रात्रि समय उन्हें निंद्रा भी प्राप्त नहीं हो पाती है. उस दिन जया एकादशी के उपवास और रात्रि जागरण का फल उन्हें प्राप्त होता है और अगले दिन उसके प्रभाव स्वरुप वह पिशाच योनी से मुक्ति प्राप्त करते हैं.!
इस प्रकार श्रीकृष्ण, कथा संपन्न करते हैं. वह युधिष्ठिर से कहते हैं कि जो भी इस एकादशी के व्रत को करता है और इस कथा को सुनता है उसके समस्त पापों का नाश होता है. जया एकादशी के व्रत से भूत-प्रेत-पिशाच आदि योनियों से मुक्ति प्राप्त होती है. इस एकादशी के व्रत में पूजा, दान, यज्ञ, जाप का अत्यंत महत्व होता है. अत: जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही मोक्ष को प्राप्त होते हैं.!
-:’जया एकादशी व्रत विधि’:-
:-जया एकादशी का व्रत करने के लिए. दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का ध्यान रखना चाहिए.!
-:दशमी तिथि से ही ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए समस्त तामसिक वस्तुओं का त्याग करना चाहिए.!
-:अगले दिन एकादशी तिथि समय सुबह स्नान करने के बाद पुष्प, धूप आदि से भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए.!
-:इस दिन शुद्ध चित्त मन से भगवान श्री विष्णु का पूजन करना चाहिए.!
-:दिन भर व्रत रखना चाहिए. अगर निराहार नहीं रह सकते हैं तो फलाहार का सेवन करना चाहिए.!
-:ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश मंत्र का जाप करना चाहिए.!
-:विष्णु के सहस्रनामों का स्मरण करना चाहिए.!
-:सामर्थ्य अनुसार दान करना चाहिए.!
इसी प्रकार रात्रि के समय में भी व्रत रखते हुए श्री विष्णु भगवान का भजन किर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए. अगले दिन द्वादशी को प्रात:काल समय ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और स्वयं भी भोजन करके व्रत संपन्न करना चाहिए.!
नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook पर प्राप्त कर सकते हैं.!