Kushotipatni Amavasya 2024: ॐ हुं फट स्वाहा……भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को कुशग्रहणी अमावस्या कहते हैं,धर्म ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है,इस दिन वर्ष भर किए जाने वाले धार्मिक कामों तथा श्राद्ध आदि कामों के लिए कुश { एक विशेष प्रकार की घास,जिसका उपयोग धार्मिक व श्राद्ध आदि कार्यों में किया जाता है} एकत्रित किया जाता है,इस बार कुशग्रहणी अमावस्या 02 सितम्बर, सोमवार को है,यह तिथि पूर्वान्ह्व्यापिनी ली जाती है,हिंदुओं के अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में कुश का उपयोग आवश्यक रूप से होता है………..I
पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:।
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया।।
अत: प्रत्येक गृहस्थ को इस दिन कुश का संचय {इकट्ठा} करना चाहिए.शास्त्रों में दस प्रकार के कुशों का वर्णन मिलता है:—-
कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।
इनमें से जो भी कुश इस तिथि को मिल जाए, वही ग्रहण कर लेना चाहिए.जिस कुश में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो,वह देव तथा पितृ दोनों कार्यों के लिए उपयुक्त होता है.कुश निकालने के लिए इस तिथि को सूर्योदय के समय उपयुक्त स्थान पर जाकर पूर्व या उत्तराभिमुख बैठकर यह मंत्र पढ़ें और दाहिने हाथ से एक बार में कुश उखाड़ें:—–
ॐ हुं फट स्वाहा
विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।
–: Kushotipatni Amavasya 2024: इसलिए धार्मिक कार्यों में उपयोग किया जाता है कुश :—-
धार्मिक अनुष्ठानों में कुश नाम की घास से बना आसन बिछाया जाता है,पूजा-पाठ आदि कर्मकांड करने से इंसान के अंदर जमा आध्यात्मिक शक्ति पुंज का संचय कहीं लीक होकर फालतू न हो जाए यानी पृथ्वी में न समा जाए,उसके लिए कुश का आसन वि्द्युत कुचालक का काम करता है.इस आसन के कारण पार्थिव विद्युत प्रवाह पैरों से शक्ति को खत्म नहीं होने देता है.कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाते हैं.कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झड़ते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता,उल्लेखनीय हे कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि,आयु की वृद्धि करने वाला और दुषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है………..।
–: Kushotipatni Amavasya 2024: कुश की पवित्री पहनना जरूरी क्यों….?
कुश की अंगुठी बनाकर अनामिका उंगली मे पहनने का विधान है,ताकि हाथ में संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए,क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है.सूर्य से हमें जीवनी शक्ति,तेज और यश मिलता है.दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकता है.कर्मकांड के दौरान यदि भूल से हाथ जमीन पर लग जाए तो बीच में कुश का ही स्पर्श होगा.इसलिए कुश को हाथ में भी धारण किया जाता हैं.इसके पीछे मान्यता यह भी है कि हाथ की ऊर्जा की रक्षा न की जाए,तो इसका बुरा असर हमारे दिल और दिमाग पर पड़ता है…….।