Maharshi Dadhichi Jayanti 2024: श्रीमन्न महागणाधिपतये नमः…प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की शुक्ल अष्टमी को दाधीच जंयती मनाई जाती है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियो को दान में देकर देवताओं की रक्षा की थी.इस वर्ष 11 सितंबर 2024 को दधिचि जयंती मनाई जाएगी.महर्षि दधीचि जयंती पूरे देश मे श्राद्धा एवं उल्लास के साथ मनाई जाती है.!
-:Maharshi Dadhichi Jayanti 2024: महर्षि दधीचि कथा:-
भारतीय प्राचीन ऋषि मुनि परंपरा के महत्वपूर्ण ऋषियों में से एक रहे ऋषि दधीचि जिन्होंने विश्व कल्याण हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग किया.इसलिए इन महान आत्मत्याग करने वालों में महर्षि दधीचि का नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है. महर्षि दधीची के पिता महान ऋषि अथर्वा जी थे और इनकी माता का नाम शान्ति था.ऋषि दधीचि जी ने अपना संपूर्ण जीवन भगवान शिव की भक्ति में व्यतीत किया.उन्होंने कठोर तप द्वारा अपने शरीर को कठोर बना लिया था.अपनी कठोर तपस्या द्वारा तथा अटूट शिवभक्ति से ही यह सभी के लिए आदरणीय हुए.!
-:Maharshi Dadhichi Jayanti 2024: महर्षि दधीचि और इंद्र:-
इन्हीं के तपसे एक बार भयभीत होकर इन्होंने सभी लोगों को हैरान कर दिया था.कथा इस प्रकार है एक बार महर्षि दधीचि ने बहुत कठोर तपस्या आरंभ कि उनकी इस तपस्या से सभी लोग भयभीत होने लगे इंद्र का सिंहांसन डोलने लग इनकी तपस्या के तेज़ से तीनों लोक आलोकित हो गये. इसी प्रकार सभी उनकी तपस्या से प्रभावित हुए बिना न रह सके.समस्त देवों के सथ इंद्र भी इस तपस्या से प्रभावित हुए और इन्द्र को लगा कि अपनी कठोर तपस्या के द्वारा दधीचि इन्द्र पद प्राप्त करना चाहते हैं.!
अत: इंद्र ने महर्षि की तपस्या को भंग करने के लिए अपनी परम रूपवती अप्सरा को महर्षि दधीचि के समक्ष भेजा. अपसरा के अथक प्रयत्न के पश्चात भी महर्षि की तपस्या जारी रहती है. असफल अपसरा इन्द्र के पास लौट आती हैं बाद में इंद्र को उनकी शक्ति का भान होता है तो वह ऋषि के समक्ष अपनी भूल के लिए क्षमा याचना करते हैं.!
-:Maharshi Dadhichi Jayanti 2024: वृत्रासुर और दधीचि का अस्थि दान:-
एक बार वृत्रासुर के भय से इन्द्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ मारे-मारे फिरने लगते हैं वह अपनी व्यथा ब्रह्मा जी को बताते हैं तो ब्रह्मा जी उन्हें ऋषि दधीचि के पास जाने की सलाह देते हैं क्योंकि इस संकट समय़ केवल दधीचि ही उनकी सहायता कर सकते थे. यदि वह अपनी अस्थियो का दान देते तो उनकी अस्थियो से बने शस्त्रों से वृत्रासुर मारा जा सकता है…!
महर्षि दधीचि की अस्थियों मे ब्रहम्म तेज था जिससे वृत्रासुर राक्षस मारा जा सकता था. वृत्रासुर पर इंद्र के किसी भी कठोर-अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था तथा समस्त देवताओं के द्वारा चलाये गये अस्त्र-शस्त्र भी उसके अभेद्य दुर्ग को न भेद सके सभी अस्त्र-शस्त्र भी उस दैत्य के सामने व्यर्थ हो जाते हैं.!
-:Maharshi Dadhichi Jayanti 2024: दधीचि का दान:-
तब इंद्र ब्रह्मा जी के कहे अनुसार महर्षि दधीचि के पास जाते हैं “क्योंकि ऋषि को शिव के वरदान स्वरुप मजबूत देह का वरदान प्राप्त था अत: उनकी हड्डीयों से निर्मित अस्त्र द्वारा ही वृतासुर को मारा जा सकता था” इंद्र महर्षि से प्रार्थना करते हुए उनसे उनकी हड्डियाँ दान स्वरुप मांगते हैं.महर्षि दधीचि उन्हें निस्वार्थ रुप से लोकहित के लिये मैं अपना शरीर प्रदान कर देते हैं.!
इस प्रकार महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र का निर्माण होता है और जिसके उपयोग द्वारा इंद्र देव ने वृत्रासुर का अंत किया.इस प्रकार परोपकारी ऋषि दधीचि के त्याग द्वारा तीनों लोकों की रक्षा होती है और इंद्र को उनका स्थान पुन: प्राप्त होता है.!