Vaidic Jyotish
September 15, 2024 9:08 PM

वर्ष 2024 में किस Date पर कौनसा श्राद्ध किया जायेगा व श्राद्ध महत्व

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

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ॐ पितृगणाय विद्महे… जगत धारिणी धीमहि… तन्नो पितृो प्रचोदयात्.।
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च,नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।

ॐ पित्रेभ्य नमः…श्रद्धयामदीयते इति श्राद्ध: वर्ष प्रयन्त में वह षोडश दिवस (16,दिन) जो पितृपक्ष के नाम से पूर्वजों/पितरों को समर्पित है.इस अवधी में पितरों की आत्मा की शांति तथा सन्तति की ओर अपने पित्रों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने हेतु श्राद्ध किये जाते है.सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार पितृपक्ष की आरम्भता भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से होती है तथा अश्विन मास की (कृष्णपक्ष) अमावस्या तिथि पर सर्व पितृ अमावस व सर्व पितृ विसर्जन के साथ इस श्रद्धा (श्राद्ध पक्ष) समापन होता है.!

पितृपक्ष अर्थात श्राद्ध का सनातन धर्म में विशेष महत्व है.पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक स्मरण (याद) करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है.पितृपक्ष में पितरों को तर्पण देने और श्राद्ध कर्म करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है.!

पितरों की (सदगति) मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है,तथापि उनके प्रति अपनी कृतज्ञता (सम्मान) ज्ञापित (समर्पित) करने के लिए भी किया जाता है. पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को तिलाँजलि देने का विधान है.!

वर्ष 2024 में मंगलवार 17 सितंबर से पितृ पक्ष का आरम्भ हो कर बुद्धवार 02 अक्टूबर को पूर्ण होगा, इस अवधी में पूर्वजों/पित्रों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण पिंडदान आदि हब्य और कर्म किए जाते हैं.!

-:’2024 किस तारिक को कोनसा श्राद्ध किया जाएगा’:-
– – – – -:”श्राद्ध की तिथियाँ”:- – – – –
मंगलवार 17 सितम्बर पूर्णिमा श्राद्ध
बुद्धवार 18 सितम्बर प्रतिपदा श्राद्ध
गुरुवार 19 सितम्बर द्वितीया श्राद्ध
शुक्रवार 20 सितम्बर तृतीया श्राद्ध
शनिवार 21 सितम्बर चतुर्थी श्राद्ध (श्रीगणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत)
रविवार 22 सितम्बर पंचमी श्राद्ध
सोमवार 23 सितम्बर षष्ठी श्राद्ध/सप्तमी श्राद्ध
मंगलवार 24 सितम्बर अष्टमी श्राद्ध (श्रीमहालक्ष्मी व्रत सम्पन्न)
बुद्धवार 25 सितम्बर नवमी श्राद्ध सौभाग्यवतीनाम श्राद्ध:,मातृ नवमी,(जीवित्पुत्रिका व्रत)
गुरुवार 26 सितम्बर दशमी श्राद्ध
शुक्रवार 27 सितम्बर एकादशी श्राद्ध
शनिवार 28 सितम्बर (इन्दिरा एकादशी व्रत)
रविवार 29 सितम्बर द्वादशी श्राद्ध (सन्यासीनाम श्राद्ध:/मघा श्राद्ध)
सोमवार 30 सितम्बर त्रयोदशी श्राद्ध
मंगलवार 01 अक्टूबर चतुर्दशी श्राद्ध (शस्त्र-विष,दुर्घटनादि मृतों का श्राद्ध)
बुद्धवार 02 अक्टूबर चतुर्दशी/अमावस,सर्व पितृ अमावस्या,पितृ विसर्जन

पितृ पक्ष की अवधी में पितर लोक से पितर धरती लोक पर आते हैं.इसलिए इस दौरान उनके नाम से पूजा पाठ करना उनकी आत्मा को शांति देता है.साथ ही उन्हें मोक्ष मिलता है.!

पितृपक्ष जिसे श्राद्ध भी कहा जाता है इस अवधी में अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तिलाँजली-तर्पण पिण्डदान आदि पितृ पूजन किया जाता है.!

पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितृ लोक से धरती लोक पर आते हैं.इसलिए इन दिनों में उनके श्राद्ध, तर्पण, और पिंडदान आदि करने का विधान है.पितृकर्म पद्धति गरुण पुराण आदि धर्म ग्रंथों के अनुसार पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध आदि करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.!

श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है.सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन अपना देह त्यागकर चले गए हैं,उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है.!

धर्म ग्रंथों के अनुसार मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं,ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें.जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हों,बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है.!

पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते है और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं. पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के निमित्त हब्य कार्य करने से पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शान्ति आती है.!

पितृपक्ष में प्रत्येक वर्ष पितरों के निमित्त तर्पण और पिण्डदान आदि पितृ कार्य किये जाते है.इस अवधी में अपने-अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसारए उनका श्राद्ध करना चाहिए.!

सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार जो लोग पितृपक्ष में पितरों का तर्पण नहीं करते उन्हेंक पितृदोष का भोगी बनाना पड़ता है.श्राद्ध करने से उनकी आत्माे को तृप्ति और शांति मिलती है.और वह प्रसन्न होकर पूरे परिवार को आशीर्वाद प्रदान करते हैं.!

प्रत्येक आत्मा को जल भोजन तथा मन की शांति की आवश्यकता होती है और उसकी यह पूर्ति सिर्फ उसके परिजन ही कर सकते हैं.परिजनों से ही वह आशा करती है.श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें तिलाँजलि व पिण्डदान आदि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे.इसी आशा के साथ पूर्वज पितृलोक से (मृतलोक) पृथ्वीलोक पर आते हैं.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पितAstro Dev YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II
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