Raksha Bandhan Shubh Muhurat 2024: जय नारायण की …….रक्षाबन्धन पर्व श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को भद्रा रहित तीन मुहूर्त या उससे अधिक व्यापिनी पूर्णिमा को अपराह्न काल व प्रदोष काल में मनाया जाता है.!
शास्त्रानुसार “यथा पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमुहूत्र्ताधिकोदय व्यापिन्यामपराले प्रदोषे वा कार्यम्” भारतीय ज्योतिष शास्त्र में वार, तिथि, योग, नक्षत्र व करण का अपना विशेष महत्व तथा “पंचांगों” का व्यक्ति पर भी सर्वाधिक प्रभाव होता है.पंचांग के इन्हीं पांच अंगों से किसी भी त्यौहार की श्रेष्ठ स्थित तथा पर्व को खास बनाने वाले योगों का निर्धारण होता है.!
वर्ष 2024 श्रावणी पूर्णिमा 19 अगस्त को सोमवार के दिन श्रवण तदुपरान्त धनिष्ठा नक्षत्र तथा शोभन योग सुसम्पन्न होगी,सोमवार के दिन श्रवण नक्षत्र के शुभ संयोग से सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है.,तथापि विगत वर्षों की भाँती इस वर्ष भी रक्षाबंधन पर भद्रा का साया रहेगा.!
रक्षाबन्धन (रक्षा सूत्र) धारण करने का शुभ समय मध्याहन 13:31 बजे से रात्रि 21:11 बजे तक हैं तथापि सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त मध्यान 13:41 बजे से अपराह्न 14:59 बजे तक तथा प्रदोष वेला में गौधूलि मुहूर्त में 18:11 बजे से रात्रि 21:11 बजे तक भी उत्तम मुहूर्त हैं.!
रक्षाबंधन भद्र समाप्ति समय – मध्यान 13:30 बजे
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 19 अगस्त 2024 को प्रातः 03:04 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 19 अगस्त 2024 को रात्रि 23:56 बजे तक
“सर्व प्रथम किसने बांधी राखी किस को और क्यों….?
लक्ष्मी जी ने सर्वप्रथम बलि को बांधी थी।
ये बात हैं जब की जब राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में सब कुछ ले लिया तब उसे भगवान ने पाताल लोक का राज्य रहने के लिये दें दिया तब उसने प्रभु से कहा की कोई बात नहीँ मैं रहने के लिये तैयार हूँ
पर मेरी भी एक शर्त होगी ।
उन्होने कहा ऐसे नहीँ प्रभु आप छलिया हो पहले मुझे वचन दें की जो मांगूँगा वो आप दोगे
नारायण ने कहा दूँगा दूँगा दूँगा ।
जब त्रिबाचा करा लिया तब बोले बलि
“की मैं जब सोने जाऊँ तो जब उठूं तो जिधर भी नजर जाये उधर आपको ही देखूं
नारायण ने अपना माथा ठोका और बोले इसने तो मुझे पहरेदार बना दिया हैं। ये तो सबकुछ हार के भी जीत गया है पर अब मैं कर भी क्या सकता हूं वचन जो दें चुका हूं।
जब काफी समय बीत गया……
उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी नारायण के बिना ………..
उधर नारद जी का आना हुआ
लक्ष्मी जी ने कहा नारद जी आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं क्या नारायण को कहीँ देखा आपने ?
तब नारद जी बोले की पाताल लोक में हैं राजा बलि की पहरेदार बने हुये हैं .
तब लक्ष्मी जी ने कहा मुझे आप ही राह दिखाये की मुझे नारायण कैसे मिलेंगे ?
तब नारद ने कहा आप राजा बलि को भाई बना लो और रक्षा का वचन लो और पहले तिर्बाचा करा लेना फिर कहना दक्षिणा में जो मांगुगी वो देनी पड़ेगी ।
फिर आप और दक्षिणा में अपने नारायण को माँग लेना।
लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुँची राजा बलि के पास ।
बलि ने कहा क्यों रो रहीं हैं आप ।
तब लक्ष्मी जी बोली की मेरा कोई भाई नहीँ हैं इसलिए मैं दुखी हूँ ।
तब बलि बोले की तुम मेरी धरम की बहिन बन जाओ .
तब लक्ष्मी ने तिर्बाचा कराया और बलि को राखी बांधी फिर बोली मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये भैय्या।
बलि अपना माथा पीटते हुवे बोला
धन्य हो माता आप आपके पति आये तो सब कुछ लें गये और आप ऐसी आयीं की उन्हे भी लें गयीं ।
तब से ये रक्षाबन्धन शुरू हुआ था और इसी लिये कलावा बाँधते समय यह मंत्र बोला जाता हैं ……
“येन बद्धो राजा बलि दानबेन्द्रो महाबला तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल: “।