Rama Ekadashi Vrat Katha: नमो नारायण…..एकादशी के व्रत को व्रतों में श्र्ष्ठ माना गया है.एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है.इसी श्रेणी में रमा एकादशी व्रत भी आता है.यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है.वर्ष 2024 में 28 अक्टूबर के दिन रमा एकादशी व्रत किया जायेगा. इस दिन भगवान श्री विष्णु जी का पूजन एवं भागवत गीता का पाठ इत्यादि कार्य उत्तम होते हैं…!
-:”Rama Ekadashi Vrat Katha: रमा एकादशी पौराणिक महत्व”:-
रमा एकादशी का पौराणिक महत्व रहा है पुराणों के अनुसार मुचुकुन्द नाम का राजा था वह दयालु व श्री विष्णु का परम भक्त था.इन्द्र, वरूण, कुबेर और विभीषण आदि उसके मित्र थे.उसके राज्य में सभी प्रसन्न व सुख पूर्वक रहते थे.एक समय राजा के घर में एक कन्या ने जन्म लिया.कन्या का नाम चन्द्रभागा रखा गया. पुत्री के युवा होने पर राजा ने उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र साभन के साथ कर दिया….!
जब चन्द्रभागा अपने ससुराल में थी,तो एक एकादशी पडी तो वह भी एकादशी का व्रत करने की कामना करती है.परंतु उसका पति शोभन इस व्रत को करने में शारीरिक रुप से अक्षम था वह अत्यन्त कमजोर था इस कारण वह अपनी पत्नी को व्रत न कर सकने के बारे में कहता है व्रत न करने की बात जब चन्द्रभागा को पता चली तो वह बहुत परेशान होती है. वह अपने पति को उस दिन के लिए किसी अन्य स्थान पर चले जाने को कहती है क्योंकि यदि वह घर पर रहेगा तो उसे व्रत अवश्य ही करना पडेगा.पत्नी की यह बात सुनकर शोभन कहता है कि तब तो मैं यही रहूंगा और व्रत अवश्य ही करूंगा. इस प्रकार दोनो पति पत्नी एकादशी का व्रत करते हैं. व्रत में वह भूख प्यास से पीडित होने लगा और उसकी मृत्यु हो गई….!
रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को एक उतम नगर प्राप्त हुआ,परन्तु यह राज्य अदृश्य था. एक बार उसकी पत्नी के राज्य का एक ब्राह्माण भ्रमण के लिए निकला,उसने मार्ग में सोभन का नगर देखा और सोभन ने उसे बताया कि उसे रमा एकादशी के प्रभाव से यह नगर प्राप्त हुआ है.सोभन ने ब्राह्माण से कहा की मेरी पत्नी चन्द्र भागा से इस नगर के बारे में और मेरे बारे में कहना. वह सब ठिक कर देगी. ब्राह्माण ने वहां आकर चन्द्रभागा को सारा वृ्तान्त सुनाया.चन्द्रभागा बचपन से ही एकादशी व्रत करती चली आ रही थी.उसने अपनी सभी एकादशियों के प्रभाव से अपने पति और उसके राज्य को यथार्थ का कर दिया. और अन्त में अपने पति के साथ दिव्यरुप धारण करके तथा दिव्य वस्त्र अंलकारों से युक्त होकर आनन्द पूर्वक अपने पति के साथ रहने लगी…!
-:”Rama Ekadashi Vrat Katha: रमा एकादशी व्रत फल”:-
कार्तिक मास के कृ्ष्णपक्ष की एकादशी का नाम रमा एकादशी है.इस एकादशी को रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.इसका व्रत करने से समस्त पाप नष्ट होते है. एकादशी के सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है.जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, दान करने से वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है….!
संसाररूपी भंवर में फंसे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है.स्वयं भगवान ने यही कहा है कि रमा व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता.एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करने से इस संसार के समस्त पापों से निजात मिलती है. विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से प्रसन्न होते हैं. रमा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्माहत्या आदि के पाप नष्ट होते हैं….!
-:”Rama Ekadashi Vrat Katha: रमा एकादशी कथा”:-
धर्मराज युधिष्टर कहने लगे कि हे भगवान…! कार्तिक कृष्ण एकादशी का क्या नाम है…? इसकी विधि क्या है…? इसके करने से क्या फल मिलता है,सो आप विस्तारपूर्वक बताइए,भगवान श्रीकृष्ण बोले कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा है,यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है,इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ,ध्यानपूर्वक सुनो……!
हे राजन! प्राचीनकाल में मुचुकुंद नाम का एक राजा था,उसकी इंद्र के साथ मित्रता थी और साथ ही यम, कुबेर, वरुण और विभीषण भी उसके मित्र थे,यह राजा बड़ा धर्मात्मा, विष्णुभक्त और न्याय के साथ राज करता था,उस राजा की एक कन्या थी, जिसका नाम चंद्रभागा था,उस कन्या का विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था,एक समय वह शोभन ससुराल आया,उन्हीं दिनों जल्दी ही पुण्यदायिनी एकादशी {रमा} भी आने वाली थी….!
जब व्रत का दिन समीप आ गया तो चंद्रभागा के मन में अत्यंत सोच उत्पन्न हुआ कि मेरे पति अत्यंत दुर्बल हैं और मेरे पिता की आज्ञा अति कठोर है,दशमी को राजा ने ढोल बजवाकर सारे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए,ढोल की घोषणा सुनते ही शोभन को अत्यंत चिंता हुई औ अपनी पत्नी से कहा कि हे प्रिये.!अब क्या करना चाहिए मैं किसी प्रकार भी भूख सहन नहीं कर सकूँगा,ऐसा उपाय बतलाओ कि जिससे मेरे प्राण बच सकें,अन्यथा मेरे प्राण अवश्य चले जाएँगे…..!
चंद्रभागा कहने लगी कि हे स्वामी.! मेरे पिता के राज में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करता,हाथी, घोड़ा, ऊँट, बिल्ली, गौ आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं कर सकते, फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या है,यदि आप भोजन करना चाहते हैं तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहीं रहना चाहते हैं तो आपको अवश्य व्रत करना पड़ेगा,ऐसा सुनकर शोभन कहने लगा कि हे प्रिये.! मैं अवश्य व्रत करूँगा, जो भाग्य में होगा, वह देखा जाएगा..!
धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा कार्तिक कृष्ण एकादशी का नाम,इसकी विधि, उसका फल कैसे मिलता हैं यह मिलता है यह विस्तारपूर्वक बताइए,ऐसा पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा है,यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है….!
इस प्रकार से विचार कर शोभन ने व्रत रख लिया और वह भूख व प्यास से अत्यंत पीडि़त होने लगा,जब सूर्य नारायण अस्त हो गए और रात्रि को जागरण का समय आया जो वैष्णवों को अत्यंत हर्ष देने वाला था,परंतु शोभन के लिए अत्यंत दु:खदायी हुआ,प्रात:काल होते शोभन के प्राण निकल गए,तब राजा ने सुगंधित काष्ठ से उसका दाह संस्कार करवाया,परंतु चंद्रभागा ने अपने पिता की आज्ञा से अपने शरीर को दग्ध नहीं किया और शोभन की अंत्येष्टि क्रिया के बाद अपने पिता के घर में ही रहने लगी,
रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ,वह अत्यंत सुंदर रत्न और वैदुर्यमणि जटित स्वर्ण के खंभों पर निर्मित अनेक प्रकार की स्फटिक मणियों से सुशोभित भवन में बहुमूल्य वस्त्राभूषणों तथा छत्र व चँवर से विभूषित, गंधर्व और अप्सराअओं से युक्त सिंहासन पर आरूढ़ ऐसा शोभायमान होता था मानो दूसरा इंद्र विराजमान हो…..!
एक समय मुचुकुंद नगर में रहने वाले एक सोम शर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थयात्रा करता हुआ घूमता-घूमता उधर जा निकला और उसने शोभन को पहचान कर कि यह तो राजा का जमाई शोभन है, उसके निकट गया,शोभन भी उसे पहचान कर अपने आसन से उठकर उसके पास आया और प्रणामादि करके कुशल प्रश्न किया,ब्राह्मण ने कहा कि राजा मुचुकुंद और आपकी पत्नी कुशल से हैं,नगर में भी सब प्रकार से कुशल हैं, परंतु हे राजन! हमें आश्चर्य हो रहा है,आप अपना वृत्तांत कहिए कि ऐसा सुंदर नगर जो न कभी देखा, न सुना, आपको कैसे प्राप्त हुआ….!
तब शोभन बोला कि कार्तिक कृष्ण की रमा एकादशी का व्रत करने से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ, परंतु यह अस्थिर है,यह स्थिर हो जाए ऐसा उपाय कीजिए। ब्राह्मण कहने लगा कि हे राजन…! यह स्थिर क्यों नहीं है और कैसे स्थिर हो सकता है आप बताइए, फिर मैं अवश्यमेव वह उपाय करूँगा,मेरी इस बात को आप मिथ्या न समझिए,शोभन ने कहा कि मैंने इस व्रत को श्रद्धारहित होकर किया है,अत: यह सब कुछ अस्थिर है,यदि आप मुचुकुंद की कन्या चंद्रभागा को यह सब वृत्तांत कहें तो यह स्थिर हो सकता है…..!
ऐसा सुनकर उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने अपने नगर लौटकर चंद्रभागा से सब वृत्तांत कह सुनाया,ब्राह्मण के वचन सुनकर चंद्रभागा बड़ी प्रसन्नता से ब्राह्मण से कहने लगी कि हे ब्राह्मण ! ये सब बातें आपने प्रत्यक्ष देखी हैं या स्वप्न की बातें कर रहे हैं,ब्राह्मण कहने लगा कि हे पुत्री! मैंने महावन में तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है,साथ ही किसी से विजय न हो ऐसा देवताओं के नगर के समान उनका नगर भी देखा है,उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थिर नहीं है,जिस प्रकार वह स्थिर रह सके सो उपाय करना चाहिए,चंद्रभागा कहने लगी हे विप्र ! तुम मुझे वहाँ ले चलो, मुझे पतिदेव के दर्शन की तीव्र लालसा है, मैं अपने किए हुए पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूँगी,आप ऐसा कार्य कीजिए जिससे उनका हमारा संयोग हो क्योंकि वियोगी को मिला देना महान पु्ण्य है,सोम शर्मा यह बात सुनकर चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर गया,वामदेवजी ने सारी बात सुनकर वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का अभिषेक कर दिया,तब ऋषि के मंत्र के प्रभाव और एकादशी के व्रत से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वह दिव्य गति को प्राप्त हुई….!
इसके बाद बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने पति के निकट गई,अपनी प्रिय पत्नी को आते देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ,और उसे बुलाकर अपनी बाईं तरफ बिठा लिया,चंद्रभागा कहने लगी कि हे प्राणनाथ..! आप मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिए,अपने पिता के घर जब मैं आठ वर्ष की थी तब से विधिपूर्वक एकादशी के व्रत को श्रद्धापूर्वक करती आ रही हूँ,इस पुण्य के प्रताप से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा तथा समस्त कर्मों से युक्त होकर प्रलय के अंत तक रहेगा,इस प्रकार चंद्रभागा ने दिव्य आभूषणों और वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी…!
हे राजन…..! यह मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य कहा है, जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं,उनके ब्रह्म हत्यादि समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं,कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों की एकादशियाँ समान हैं,इनमें कोई भेदभाव नहीं है,दोनों समान फल देती हैं,जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ते अथवा सुनते हैं,वे समस्त पापों से छूटकर विष्णुलोक को प्राप्त होता हैं…….!