रामदास जी का संत परंपरा में एक विशेष स्थान रहा है. इनके द्वारा की गई रचनाओं और ज्ञान को पाकर लोगों का मार्गदर्शन हो पाया है. आज भी उनकी संत रुपी वाणी के वचनों को पढ़ कर और सुन कर लोग प्रकाशित होते हैं. संत रामदास का जन्म होना एक अत्यंत शुभ घटना थी. रामदास जी ने अपनी प्रतिभा, व्यक्तित्व और चिन्तन से संत परंपरा को आगे बढ़ाया है. रामदास जी ने अपनी प्रखर प्रतिभा, व्यक्तित्व और प्रौढ़ चिन्तन से संत परंपरा को आगे बढ़ाया है. कवि सुलभ सुहृदयता एवं मार्मिक व्यंजना शैली के बल पर संत विचारों और काव्य का प्रचार किया. रामदास जी के व्यक्तित्व में जो आकर्षण था .
इनका जन्म काल (1606 – 1682) का है. इस महान संत को महाराष्ट्र के महान संतों में से एक कहा गया है. इन्होंने अपने दीर्घ जीवन काल में अनेक लम्बी यात्राएँ करके भारत का भ्रमण किया. अपने सिद्धान्तों का प्रचार किया, जिसके स्मारक अब भी अनेक स्थानों पर उपलब्ध हैं. कबीर, रैदास, नामदेव, दादू आदि संतो की श्रेणी में रामदास जी का नाम का बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है.
क्यों मनाई जाती है दास नवमी.
रामदास जी ने फाल्गुन कृष्ण नवमी को समाधि ली थी.इस दिन को उनके भक्तों द्वारा एक पर्व के रुप में मनाया जाता है. जो आज भी आज भी पूरे जोश और उत्साह के साथ में मनाया जाता है. इस समय पर उनके अनुयायी दास नवमी के उत्सव के रूप में सभाएं और भजन कीर्तन करते हैं. रामदास जी ने जीवन का अंतिम समय महाराष्ट्र में सातारा के पास परली के किले में व्यतीत किया था.
रामदास द्वारा किए गए कार्य.
रामदास जी ने अनेकों ऎसे कार्य किए जिनके द्वारा लोगों का कल्याण संभव हो पाया है. उनके जीवन की दिनचर्या भी बहुत रोचक और प्रभावशाली रही थी. रामदास जी ने अपने जीवन द्वारा समाज के युवा वर्ग को भी प्रभावित किया. पैदल ही यात्राएं भी की, उनकी यात्राओं में जन सैलाब सदैव ही रहा. भ्रमण काल के दौरान उन्होंने विभिन्न स्थानों पर हनुमानजी की प्रतिमाएं भी स्थापित की. कुछ मठों का भी निर्माण किया और राष्ट्र नव-चेतना के निर्माण में सहयोग दिया.
रामदास जी का जीवन एक साधाराण था पर असाधारण रुप से सभी को आकर्षित कर लेता था. योगशास्त्र में उनकी पकड़ मजबूत थी. वह सदैव रामनाम का जाप करते थे. जो भी कहते थे वह सभी कसौटी पर खरा उतरता था. संगीत के उत्तम जानकार थे इसलिए उनके अनेक रागों में गायी जानेवाली रचनाएं भी प्राप्त होती हैं.
रामदास जी के रचना(लेखन) कार्य.
रामदास जी का जीवन दुर्गम गुफाओं, पहाड़ों, जंगलों और नदियों के किनारे पर गुजरा था. यहीं पर उन्होंने अपनी कई रचनाओं का निर्माण किया. रामदास जी ने दासबोध, आत्माराम, मनोबोध आदि ग्रंथों की रचना की. उनका दासबोध ग्रंथ गुरुशिष्य संवाद रूप में है. रामदास जी द्वारा रची गयी आरतियाँ आज भी कई स्थानों पर गायी जाती हैं.
अपनी रचनाओं में राजनीती, व्यवस्थापन शास्त्र जैसे विषयों पर भी बहुत कुछ लिखा. मान्यताओं और अनेक कथाएं उनके जीवन से जुड़ी हुई हैं. कहा जाता है की उन्हें बचपन में ही भगवान राम के दर्शन होते हैं. इस लिए उनका नाम रामदास हो गया था. शिवाजी महाराज ने रामदास जी को अपना गुरु माना था. ऎसे महान संत का प्रकाश भारत के कोने कोने में फैला और आज भी उसकी ज्योति सभी ओर प्रकाशित रहती है.
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