November 2, 2024 10:26 AM

Santan Saptami 2023: मुक्ताभरण/सन्तान सप्तमी व्रत

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest

श्रीमन्न महागणाधिपतये नमः… संतान सप्तमी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है.इस वर्ष 22,सितंबर 2019 को मुक्ताभरण संतान सप्तमी व्रत किया जाएगा.यह व्रत विशेष रुप से संतान प्राप्ति,संतान रक्षा और संतान की उन्नति के लिये किया जाता है. इस व्रत में भगवान शिव एवं माता गौरी की पूजा का विधान होता है. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी का व्रत अपना विशेष महत्व रखता है.!

-:सप्तमी व्रत विधि:-
सप्तमी का व्रत माताओं के द्वारा किया अपनी संतान के लिये किया जाता है इस व्रत को करने वाली माता को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृ्त होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद प्रात काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. और सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए.!
निराहार व्रत कर,दोपहर को चौक पूरकर चंदन,अक्षत,धूप,दीप,नैवेध,सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए.सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है. संतान की रक्षा की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ को कलावा अर्पित किया जाता है तथा बाद में इसे स्वयं धारण कर इस व्रत की कथा सुननी चाहिए.!

-:संतान सप्तमी व्रत कथा:-
सप्तमी व्रत की कथा से संबन्धित एक पौराणिक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार एक बार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि किसी समय मथुरा में लोमश ऋषि आए थे. मेरे माता-पिता देवकी तथा वसुदेव ने भक्तिपूर्वक उनकी सेवा की तो ऋषि ने उन्हें कंस द्वारा मारे गए पुत्रों के शोक से उबरने के लिए उन्हें ‘संतान सप्तमी’ का व्रत करने को कहा.!

लोमश ऋषि ने उन्हें व्रत का पूजन-विधान बताकर व्रतकथा भी बताते हैं:- नहुष अयोध्यापुरी का प्रतापी राजा था उसकी पत्नी का नाम चंद्रमुखी था.उसके राज्य में ही विष्णुदत्त नामक एक ब्राह्मण रहता था. उसकी पत्नी का नाम रूपवती था.रानी चंद्रमुखी तथा रूपवती में परस्पर घनिष्ठ प्रेम था.एक दिन वे दोनों सरयू में स्नान करने गईं.वहाँ अन्य स्त्रियाँ भी स्नान कर रही थीं.उन स्त्रियों ने वहीं पार्वती-शिव की प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक उनका पूजन किया.तब रानी चंद्रमुखी तथा रूपवती ने उन स्त्रियों से पूजन का नाम तथा विधि पूछी.!

उन स्त्रियों में से एक ने बताया- यह व्रत संतान देने वाला है.उस व्रत की बात सुनकर उन दोनों सखियों ने भी जीवन-पर्यन्त इस व्रत को करने का संकल्प किया और शिवजी के नाम का डोरा बाँध लिया. किन्तु घर पहुँचने पर वे संकल्प को भूल गईं.फलतः मृत्यु के पश्चात रानी वानरी तथा ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में पैदा हुईं.!
कालांतर में दोनों पशु योनि छोड़कर पुनः मनुष्य योनि में आईं.चंद्रमुखी मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की रानी बनी तथा रूपवती ने फिर एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया.इस जन्म में रानी का नाम ईश्वरी तथा ब्राह्मणी का नाम भूषणा था.भूषणा का विवाह राजपुरोहित अग्निमुखी के साथ हुआ. इस जन्म में भी उन दोनों में बड़ा प्रेम हो गया.!
व्रत भूलने के कारण ही रानी इस जन्म में भी संतान सुख से वंचित रही.भूषणा ने व्रत को याद रखा था. इसलिए उसके गर्भ से सुन्दर तथा स्वस्थ आठ पुत्रों ने जन्म लिया. रानी ईश्वरी के पुत्रशोक की संवेदना के लिए एक दिन भूषणा उससे मिलने गई. उसे देखते ही रानी के मन में इर इर्ष्या पैदा हो गई और उसने उसके बच्चों को मारने का प्रयास किया किन्तु बालक न मर सके.उसने भूषणा को बुलाकर सारी बात बताई और फिर क्षमायाचना करके उससे पूछा- किस कारण तुम्हारे बच्चे नहीं मर पाए. भूषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात स्मरण कराई और उसी के प्रभाव से आप मेरे पुत्रों को चाहकर भी न मरवा सकीं. यह सब सुनकर रानी ईश्वरी ने भी विधिपूर्वक संतान सुख देने वाला यह मुक्ताभरण व्रत रखा. तब व्रत के प्रभाव से रानी पुनः गर्भवती हुई और एक सुंदर बालक को जन्म दिया. उसी समय से पुत्र-प्राप्ति और संतान की रक्षा के लिए यह व्रत प्रचलित है.!

-:संतान सप्तमी व्रत पूजन:-
व्रत की कथा सुनने के बाद सांय काल में भगवान शिव- पार्वती की पूजा दूप,दीप,फल,फूल और सुगन्ध से करते हुए नैवैध का भोग भगवान को लगाना चाहिए और भगवान श्विव कि आरती करनी चाहिए.!

नोट :- अपनी पत्रिका से सम्वन्धित विस्तृत जानकारी अथवा ज्योतिष, अंकज्योतिष,हस्तरेखा, वास्तु एवं याज्ञिक कर्म हेतु सम्पर्क करें.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पितAstro Dev YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest