ॐ नमः शिवाय……भारत देश धार्मिक आस्था और विश्वास का देश है.तथा ईद देश में अनेकानेक धर्मस्थल है.इन धर्मस्थलों “ज्योतिर्लिंगों” को विशेष स्थान प्राप्त हैं,और इन दिव्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों की विशेष रुप से पूजा की जाती है.!
श्रीशैलम (श्रीसैलम नाम से भी जाना जाता है) नामक ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश के पश्चिमी भाग में कुर्नूल जिले के नल्लामल्ला जंगलों के मध्य श्री सैलम पहाड़ी पर स्थित है.यहां शिव की आराधना मल्लिकार्जुन नाम से की जाती है.इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं.मंदिर का गर्भगृह बहुत छोटा है और एक समय में अधिक लोग नहीं जा सकते,इस कारण यहां दर्शन के लिए लंबी प्रतीक्षा करनी होती है.स्कंद पुराण के श्री शैल काण्ड में इस मंदिर का वर्णन है.कहते हैं आदि शंकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की तब उन्होंने शिवनंद लहरी की रचना की थी.महाभारत, शिव पुराण तथा पद्मपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है !
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे,तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं,नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥
जय मल्लिकार्जुन,जय मल्लिकार्जुन,जय मल्लिकार्जुन॥
-:श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा’:-
शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता खंड के अध्याय 15-16 में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भाव की कथा और उसकी महिमा दी गयी है.!
सूतजी कहते हैं :- महर्षियो.! अब मैं मल्लिकार्जुन के प्रादुर्भाव का प्रसंग सुनाता हूँ,जिसे सुनकर बुद्धिमान् पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाता है.!
एक समय की बात है,भगवान शंकरजी के दोनों पुत्र,श्रीगणेश और श्रीकार्त्तिकेय स्वामी,विवाह के लिए परस्पर झगड़ने लगे,प्रत्येक का आग्रह था कि पहले मेरा विवाह किया जाए,उन्हें लड़ते-झगड़ते देखकर
भगवान् शंकर और मां भवानी ने कहा:–
तुम लोगों में से जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर यहां वापस लौट आएगा,उसी का विवाह पहले किया जाएगा,माता-पिता की यह बात सुनकर श्रीकार्त्तिकेय स्वामी अपने वाहन मयूर पर विराजित हो तुरंत पृथ्वी-प्रदक्षिणा के लिए दौड़ पड़े,श्रीगणेशजी की सूक्ष्म और तीक्ष्ण बुद्धि लेकिन गणेशजी के लिए तो यह कार्य बड़ा ही कठिन था,एक तो उनकी काया स्थूल थी,दूसरे उनका वाहन भी मूषक-चूहा था,भला वे दौड़ में स्वामी कार्त्तिकेय की बराबरी किस प्रकार कर पाते.?
लेकिन उनकी काया जितनी स्थूल थी,बुद्धि उसी के अनुपात में सूक्ष्म और तीक्ष्ण थी,उन्होंने अविलंब पृथ्वी की परिक्रमा का एक सुगम उपाय खोज निकाला,सामने बैठे माता-पिता का पूजन करने के पश्चात
उनकी सात प्रदक्षिणाएं करके,उन्होंने पृथ्वी-प्रदक्षिणा का कार्य पूरा कर लिया.I
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति यः ।
तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम् ॥
पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर स्वामी कार्त्तिकेय जब तक लौटे,तब तक गणेशजी का सिद्धि और बुद्धि नाम वाली दो कन्याओं के साथ विवाह हो चुका था और उन्हें क्षेम तथा लाभ नामक दो पुत्र भी प्राप्त हो चुके थे,यह सब देखकर स्वामी कार्त्तिकेय अत्यंत रुष्ट होकर क्रौञ्च पर्वत पर चले गए.।
माता पार्वती वहां उन्हें मनाने पहुंचीं,पीछे शंकर भगवान् वहां पहुंचकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और उसी समय से मल्लिकार्जुन-ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रख्यात हुए.तथा इनकी अर्चना सर्वप्रथम मल्लिका-पुष्पों से की गई थी,मल्लिकार्जुन नाम पड़ने का यही कारण है.।
एक अन्य कथा यह भी कही जाती है :–
इस शैल पर्वत के निकट किसी समय राजा चंद्रगुप्त की राजधानी थी,किसी विपत्ति विशेष के निवारणार्थ उनकी एक कन्या महल से निकलकर इस पर्वतराज के आश्रम में आकर यहां के गोपों के साथ रहने लगी,उस कन्या के पास एक बड़ी ही शुभ लक्षरा सुंदर श्यामा गौ थी.।
उस गौ का दूध रात में कोई चोरी से दुह ले जाता था,एक दिन संयोगवश उस राजकन्या ने चोर को दूध दुहते देख लिया और क्रुद्ध होकर उस चोर की ओर दौड़ी,किंतु गौ के पास पहुंचकर उसने देखा कि,वहां शिवलिंग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है.।
-:’राजकुमारी ने मंदिर का निर्माण करवाया’:-
राजकुमारी ने कुछ समय पश्चात उस शिवलिंग पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया,यही शिवलिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध है,शिवरात्रि के पर्व पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है,इस मल्लिकार्जुन-शिवलिंग का दर्शन-पूजन एवं अर्चन करने वाले भक्तों की सभी सात्त्विक मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं,उनकी भगवान् शिव के चरणों में स्थिर प्रीति हो जाती है.दैहिक, दैविक, भौतिक
सभी प्रकार की बाधाओं से वे मुक्त हो जाते हैं.।
-:श्री मल्लिकार्जुन मंगलाशासनम् स्तोत्रम’:-
उमाकांताय कांताय कामितार्थ प्रदायिने.!
श्रीगिरीशाय देवाय मल्लिनाथाय मंगलम् ॥
सर्वमंगल रूपाय श्री नगेंद्र निवासिने.!
गंगाधराय नाथाय श्रीगिरीशाय मंगलम् ॥
सत्यानंद स्वरूपाय नित्यानंद विधायने.!
स्तुत्याय श्रुतिगम्याय श्रीगिरीशाय मंगलम् ॥
मुक्तिप्रदाय मुख्याय भक्तानुग्रहकारिणे.!
सुंदरेशाय सौम्याय श्रीगिरीशाय मंगलम् ॥
श्रीशैले शिखरेश्वरं गणपतिं श्री हटकेशं.
पुनस्सारंगेश्वर बिंदुतीर्थममलं घंटार्क सिद्धेश्वरम्।
गंगां श्री भ्रमरांबिकां गिरिसुतामारामवीरेश्वरं.
शंखंचक्र वराहतीर्थमनिशं श्रीशैलनाथं भजे ॥
हस्तेकुरंगं गिरिमध्यरंगं शृंगारितांगं गिरिजानुषंगम्.!
मूर्देंदुगंगं मदनांग भंगं श्रीशैललिंगं शिरसा नमामि ॥
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