ॐ मृत्युंजयमहादेवं त्राहि मां शरणागतम्,जन्ममृत्युजराव्याधिपीडितं कर्मबन्धनै:॥
ॐ नमः शिवाय……भारत देश धार्मिक आस्था और विश्वास का देश है.तथा ईद देश में अनेकानेक धर्मस्थल है.इन धर्मस्थलों “ज्योतिर्लिंगों” को विशेष स्थान प्राप्त हैं,और इन दिव्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों की विशेष रुप से पूजा की जाती है.!
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
भारत वर्ष के महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद जनपद के सन्निकट दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्णेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है,यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है,कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं,बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं, इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था,शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है,द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है,इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है,यह महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से बारह मीर दूर वेरुलगाँव के पास स्थित है.।
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्,समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरस्वभावं,घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये॥
-:’श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग’:-
घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है .घृष्णेश्वर मन्दिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है.इसे घुसृणेश्वर एवं घृष्णेश्वर के नाम से भी जाना जाता है.इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा करवायागया था.शहर के शोर से से दूर स्थित यह मंदिर शांति एवं सादगी से परिपूर्ण है. दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और आत्मिक शांतिप्राप्त करते हैं.भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है.बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिरके समीप स्थित हैं. यहीं पर श्री एकनाथ जी गुरु श्री जनार्दन महाराज जी की समाधि भी है.I
-:’श्रीघृष्णेश्वर मन्दिर पौराणिक कथा’:-
इस ज्योतिर्लिंग के बारे मे एक कथा प्रचलित है कहते हैं भारत के दक्षिण प्रदेश के देवगिरि पर्वत के निकट सुकर्मा नामक ब्राह्मण और उसकी पत्नीसुदेश निवास करते थे. दोनों ही भगवान शिव के परम भक्त थे. परंतु इनके कोई संतान सन्तान न थी इस कारण यह बहुत दुखी रहते थे जिसकारण उनकी पत्नि उन्हें दूसरी शादी करने का आग्रह करती थी अत: पत्नि के जोर देने सुकर्मा ने अपनी पत्नी की बहन घुश्मा के साथ विवाह करलिया. घुश्मा भी शिव भगवान की अनन्य भक्त थी और भगवान शिव की कृपा से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई. पुत्र प्राप्ति से घुश्मा का मान बढ़गया परंतु इस कारण सुदेश को उससे ईष्या होने लगी जब पुत्र बड़ा हो गया तो उसका विवाह कर दिया गया यह सब देखकर सुदेहा के मन मे औरअधिक ईर्षा पैदा हो गई. जिसके कारण उसने पुत्र का अनिष्ट करने की ठान ली ओर एक दिन रात्रि में जब सब सो गए तब उसने घुश्मा के पुत्र कोचाकू से मारकर उसके शरीर के टुकड़े कर दिए और उन टुकड़ों को सरोवर में डाल दिया जहाँ पर घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव लिंग का विसर्जन कियाकरती थी. शव को तालाब में फेंककर वह आराम से घर में आकर सो गई,रोज की भाँति जब सभी लोग अपने कार्यों मे व्यस्त हो गए और नित्यकर्ममें लग गये तब सुदेहा भी आनन्दपूर्वक घर के काम-काज में जुट गई. परंतु जब बहू नींद से जागी तो बिस्तर को ख़ून में सना पाया तथा मांस केकुछ टुकड़े दिखाई दिए यह भयानक दृश्य देखकर व्याकुल बहू अपनी सास घुश्मा के पास जाकर रोने लगी और पति के बारे मे पूछने लगी औरविलाप करने लगी. सुदेहा भी उसके साथ विलाप मे शामिल हो गई ताकी किसी को भी उस पर संदेह न हो बहू के क्रन्दन को सुनकर घुश्मा जरा भीदुखी नहीं हुई और अपने नित्य पूजन व्रत में लगी रही व सुधर्मा भी अपने नित्य पूजा-कर्म में लगे रहे. दोनों पति-पत्नि भगवान का पूजन भक्ति केसाथ बिना किसी विघ्न, चिन्ता के करते रहे. जब पूजा समाप्त हुई तब घुश्मा ने अपने पुत्र की रक्त से भीगी शैय्या को देखा यह विभत्स दृश्यदेखकर भी उसे किसी प्रकार का विलाप नहीं हुआ.उसने कहा की जिसने मुझे पुत्र दिया है वही शिव उसकी रक्षा भी करेंगे वह तो स्वयं कालों के भीकाल हैं, सत्पुरूषों के आश्रय हैं और वही हमारे संरक्षक हैं. अत: चिन्ता करने से कुछ न होगा इस प्रकार के विचार कर उसने शिव भगवान को यादकिया धैर्य धारण कर शोक से मुक्त हो गईं. और प्रतिदिन की तरह शिव मंत्र ऊँ नम: शिवाय का उच्चारण करती रही तथा पार्थिव लिंगों को लेकरसरोवर के तट पर गई जब उसने पार्थिव लिंगों को तालाब में प्रवाहित किया तो उसका पुत्र सरोवर के किनारे खड़ा हुआ दिखाई पड़ा अपने पुत्र कोदेखकर घुश्मा प्रसन्नता से भर गई इतने में ही भगवान शिव उसके सामने प्रकट हो गये,भगवान शिव घुश्मा की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए औरवरदान मांगने को कहा भगवाने ने कहा यदि वो चाहे तो वो उसकी बहन को त्रिशूल से मार डालें. परंतु घुश्मा ने श्रद्धा पूर्वक महेश्वर को प्रणाम करकेकहा कि सुदेहा बड़ी बहन है अत: आप उसकी रक्षा करे उसे क्षमा करें. घुश्मा ने निवेदन किया की मैं दुष्कर्म नहीं कर सकती और बुरा करने वालेकी भी भलाई करना ही अच्छा माना जाता है. अत: भगवान शिव घुश्मा के भक्तिपूर्ण विचारों को सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हो उठे और कहा घुश्मा तुमकोई और वर मांग सकती हो घुश्मा ने कहा हे महादेव मुझे वर देना ही चाहते हैं तो लोगों की रक्षा और कल्याण के लिए आप यहीं सदा निवास करेंघुश्मा की प्रार्थना से प्रसन्न महेश्वर शिवजी ने उस स्थान पर सदैव वास करने का वरदान दिया तथा तालाब के समीप ज्योतर्लिंग के रूप में वहां परवास करने लगे और घुश्मेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए उस तालाब का नाम भी तब से शिवालय हो गया.I
-:’श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महत्व’:-
मान्यता है की शिवालय सरोवर का दर्शन करने से सब प्रकार के अभीष्ट प्राप्त होते हैं. निसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है. घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंगका दर्शन व पूजन करने से सब प्रकार के सुखों की वृद्धि होती है. जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने भी घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा अराधना की थी.!
विशेष -: मित्रों इस मंदिर मैं दर्शन करने से निश्चित ही सन्तान ही दंपत्ती को भी सन्तान सुख जरूर प्राप्त होता हैं,तथा मानव मात्र का कल्याण इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से शुनिश्चित हैं.I
-:’महा मृत्युंजय मंत्र की सशब्द ब्याख्या’:-
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॥
इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ’ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।
इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है।
मंत्र विचार :
इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है।
शब्द बोधक शब्द बोधक
‘त्र’ ध्रुव वसु ‘यम’ अध्वर वसु
‘ब’ सोम वसु ‘कम्’ वरुण
‘य’ वायु ‘ज’ अग्नि
‘म’ शक्ति ‘हे’ प्रभास
‘सु’ वीरभद्र ‘ग’ शम्भु
‘न्धिम’ गिरीश ‘पु’ अजैक
‘ष्टि’ अहिर्बुध्न्य ‘व’ पिनाक
‘र्ध’ भवानी पति ‘नम्’ कापाली
‘उ’ दिकपति ‘र्वा’ स्थाणु
‘रु’ भर्ग ‘क’ धाता
‘मि’ अर्यमा ‘व’ मित्रादित्य
‘ब’ वरुणादित्य ‘न्ध’ अंशु
‘नात’ भगादित्य ‘मृ’ विवस्वान
‘त्यो’ इंद्रादित्य ‘मु’ पूषादिव्य
‘क्षी’ पर्जन्यादिव्य ‘य’ त्वष्टा
‘मा’ विष्णुऽदिव्य ‘मृ’ प्रजापति
‘तात’ वषट
इसमें जो अनेक बोधक बताए गए हैं। ये बोधक देवताओं के नाम हैं।
शब्द की शक्ति-
शब्द वही हैं और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है-
शब्द शक्ति शब्द शक्ति
‘त्र’ त्र्यम्बक, त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘म’ मंगल ‘ब’ बालार्क तेज
‘कं’ काली का कल्याणकारी बीज ‘य’ यम तथा यज्ञ
‘जा’ जालंधरेश ‘म’ महाशक्ति
‘हे’ हाकिनो ‘सु’ सुगन्धि तथा सुर
‘गं’ गणपति का बीज ‘ध’ धूमावती का बीज
‘म’ महेश ‘पु’ पुण्डरीकाक्ष
‘ष्टि’ देह में स्थित षटकोण ‘व’ वाकिनी
‘र्ध’ धर्म ‘नं’ नंदी
‘उ’ उमा ‘र्वा’ शिव की बाईं शक्ति
‘रु’ रूप तथा आँसू ‘क’ कल्याणी
‘व’ वरुण ‘बं’ बंदी देवी
‘ध’ धंदा देवी ‘मृ’ मृत्युंजय
‘त्यो’ नित्येश ‘क्षी’ क्षेमंकरी
‘य’ यम तथा यज्ञ ‘मा’ माँग तथा मन्त्रेश
‘मृ’ मृत्युंजय ‘तात’ चरणों में स्पर्श
यह पूर्ण विवरण ‘देवो भूत्वा देवं यजेत’ के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है.I
ओ३म नमः शिवाय.! ओ३म नमः शिवाय.!! हर हर भोले नमः शिवाय.!!!
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