Vatsa Dwadashi: वत्स द्वादशी

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Vatsa Dwadashi: वत्स द्वादशी
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नमो नारायण …. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को वत्स द्वादशी के रुप में मनाया जाता है.इस वर्ष यह एकादशी सोमवार 11 सितम्बर 2023 को मनाया जाएगा,वत्स द्वादशी को बछवास,ओक दुआस या बलि दुआदशी के नाम से भी पुकारा जाता है.वत्स द्वादशी के रूप मे पुत्र सुख की कामना एवं संतान की लम्बी आयु की इच्छा समाहित होती है.वर्तमान में यह पर्व राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में ही देखने में आता है.समय की धूल ने इस पर्व के उल्लास को ढक दिया है.वत्सद्वादशी में परिवार की महिलाएं गाय व बछडे का पूजन करती है.इसके पश्चात माताएं गऊ व गाय के बच्चे की पूजा करने के बाद अपने बच्चों को प्रसाद के रुप में सूखा नारियल देती है.यह पर्व विशेष रुप से माता का अपने बच्चों कि सुख-शान्ति से जुडा हुआ है.!

-:वत्स द्वादशी कथा एवं पूजन:-
वत्स द्वादशी उत्साह से मनाई जाती है इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र एवं सुख सौभाग्य की कामना करती हैं.बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर बच्चों को नेग तथा श्रीफल का प्रसाद रुप में देती हैं.इस दिन घरों में चाक़ू का काटा नहीं बनाया जाता इस दिन विशेष रुप से चने, मूंग,कढ़ी आदि पकवान बनाए जाते हैं तथा व्रत में इन्हीं का भोग लगाया जाता है.!

इस दिन गायों तथा उनके बछडो़ की सेवा की जाती है.सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर गाय तथा बछडे़ का पूजन किया जाता है.आधुनिक समय में कई लोगों के घरों में गाय नहीं होती है.वह किसी दूसरे के घर की गाय का पूजन कर सकते हैं.यदि घर के आसपास भी गाय और बछडा़ नहीं मिले तब गीली मिट्टी से गाय तथा बछडे़ को बनाए और उनकी पूजा करें. इस व्रत में गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग नहीं किया है.!

-:वत्स द्वादशी पूजा विधि:-
सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इस दिन दूध देने वाली गाय को बछडे़ सहित स्नान कराते हैं.फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढा़या जाता है.दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हैं. दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं. सींगों को मढा़ जाता है.!
तांबे के पात्र में सुगंध,अक्षत,तिल,जल तथा फूलों को मिलाकर दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करना चाहिए.गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ खिलाने चाहिए.गाय माता का पूजन करने के बाद वत्स द्वादशी की कथा सुनी जाती है. सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्टदेव तथा गौमाता की आरती की जाती है.उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.!

-:वत्स द्वादशी व्रत का महत्व:-
वत्स द्वादशी का यह व्रत संतान प्राप्ति एवं उसके सुखी जीवन की कामाना के लिए किया जाने वाला व्रत है यह व्रत विशेष रुप से स्त्रियों का पर्व होता है यह व्रत पुत्र संतान की कामना के लिये किया जाता है और इसे पुत्रवती स्त्रियाँ करती हैं.इस दिन अंकुरित मोठ,मूँग,तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है और प्रसाद रुप में इन्हें ही चढाया जाता है.इस दिन द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाते है इस दलीय अन्न तथा चाकू द्वारा काटा गया कोई भी पदार्थ वर्जित होता है.!

सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस।।
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते।
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी।।

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