ॐ श्री सिद्धि विनायक नमो नमः..यह व्रत भगवान प्रथम पूज्य श्री गणेश की कृपा प्रसाद पाने के लिये किया जाता है,इस व्रत के देवता श्री सिद्धि विनायक है,जो भगवान गणेश ही का एक और नाम है,क्योंकि गणेश मंत्र एवं नामावली की श्रृंखला में अनेको नामों को शामिल किया गया है,जिसमें सिद्धि विनायक नाम बड़ा ही प्रसिद्ध एवं भक्तों की मनो कामनाओं को पूरा करने वाला होता है,भगवान गणेश का जन्म भी चतुर्थी तिथि में हुआ था,इसलिये उनकी कृपा प्रसाद पाने के लिये प्रत्येक चतुर्थी तिथि में उनकी विधि विधान से पूजा की जाती है,क्योंकि यह गणेश का रूप एवं नाम सभी विघ्नों को शमन करने वाला होता है,तथा भक्तों की कामना को सिद्धि करने के कारण इन्हें सिद्धि विनायक कहा जाता है,भगवान गणेश को ही विनायक और रिद्धि-सिद्धि का दाता कहा जाता है,प्रत्येक मास मे दो चतुर्थी तिथियां आती रहती है,भगवान गणेश के व्रत एवं पूजन से विद्या एवं अध्ययन के क्षेत्रों में लगे हुये विद्यार्थियों की बुद्धि और तीव्र होती है,तथा लेखन एवं शोध के कामों को करने वाले तमाम गीत संगीत आदि क्षेत्रों में बड़ी पदप्रतिष्ठा के लिये सतत् गणेश की वन्दना प्रार्थना तथा वैदिक रीति से उनकी पूजा करते है,और उनकी तिथि में उत्सव एवं भण्डारों का आयोजन करते हैं,प्रत्येक माह की चतुर्थी चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो या फिर शुक्ल पक्ष की उसका अपना महत्व होता है,कथा एवं उपस्थित घटना क्रम के अनुसार उनका नाम एवं महत्व है,इसी प्रकार विनायक चतुर्थी का भी जहा ज्ञान एवं बुद्धि की दृष्टि से महत्व है,वहीं संकटों को दूर करने के कारण इसका बहुत ही महत्व है,ऋणादि से परेशान लोगों तथा अन्य प्रकार की पीड़ाओं से पीड़ित व्यक्तियों के लिये गणपति की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण एवं फल प्रदान करने वाली होती है,क्योंकि रविवार और मंगलवार के दिन पड़ने वाली चतुर्थी बहुत ही पुण्य एवं फलदायक होती है,जिससे इसके पूजा और व्रत बड़ा ही महत्व होता है,यह सभी तरह के विघ्नों को हरने वाले तथा वांछित फलों को देने वाले होते हैं,इनके वन्दन करने से तन एवं मन के रोगों छुटकारा प्राप्त होता है,तथा धन सम्पत्ति बढ़ती है,धन का आभाव एवं गरीबी से भी इन्हीं की कृपा से छुटकारा प्राप्त होता है,कष्ट चाहे जैसे हो सभी से छुटकारा भगवान गणपति की कृपा से प्राप्त हो जाता है,अतः विनायक चतुर्थी में भगवान गणेश की पूजा एवं उत्सवों को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.!
-:’सिद्धि विनायक व्रत पूजा विधि’:-
इस व्रत करने के लिये व्रती साधक को व्रत के एक दिन पहले से ही अपने आचार-विचार एवं नियम तथा संयम को साधते हुये पवित्रता के गुणों का पालन करना चाहिये,तथा तामसिक आहारों एवं गुस्से का त्याग करना चाहिये,तथा व्रत वाले दिन शौचादि क्रियाओं से पवित्र होकर व्रत की समस्त सामाग्री को एकत्रित करके अपने अर्थ बल के अनुसार भगवान गणेश की प्रतिमा सोने, चांदी, पीतल, मिट्टी आदि की स्थापित करें,फिर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख किसी आसन मे स्थित होकर भगवान का ध्यान करते हुये आचमन एवं आत्मशुद्धि की क्रिया को करें,तथा अपने व्रत का संकल्प लें,ध्यान रहे कि सकाम संकल्प के समय शुभ एवं मांगलिक वस्तुओं को हाथ में रखकर ही संकल्प लें,और उनकी पूजा विविध प्रकार से करें,नारियल एवं पान तथा पुष्प उन्हें अर्पित करें,या फिर किसी कर्मकाण्ड में निपुण ब्रह्मण के द्वारा पूजा अर्चना विधि पूर्वक करवायें,और जो भी उनकी प्रिय वस्तुयें हो जैसे मोदक, सिंदूर आदि जरूर अर्पित करें,अपने सम्पूर्ण पूजा एवं अर्चना कर्म को बड़े ही विनम्र भाव से भगवान गणेश को अर्पित कर दें.!
-:’श्री सिद्धि विनाकय व्रत कथा’:-
भगवान श्री गणेश के संदर्भ में कई पौराणिक एवं लोक कथायें प्रचलित है,जिसमें एक बुढ़िया की कथा है जिसकी सेवा से भगवान श्री गणेश प्रसन्न हो गये थे,और उन्होने उसकी श्रद्धा भक्ति एवं विश्वास से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिया और वरदान मांगने को कहा जिसमें बुढ़िया ने कहा कि क्या हे,प्रभु मै आपसे क्या वरदान मांगू,फिर श्री विनायक भगवान उससे कहने लगे कि आप मांगे जो मांगेगी वह आपको जरूर मिलेगा,इस बात को जब उसने घर परिवार में बताया तो पता चला कि सभी अपने-अपने मतलब की बातें कह रहे हैं,इस बारे में उसने किसी पास के व्यक्ति से चर्चा की तो उसने कहा कि माई तू अपने आखों की रोशनी भगवान विनायक से मांग लें,इस प्रकार सभी की बातों को सुनकर उसने भगवान विनायक से वरदान मांगा,कि आप मुझे काया, माया एवं नेत्र ज्योति तथा पुत्र पौत्र आदि सभी तरह से सम्पन्न कर दो,तब भगवान गणेश मुस्कुराये और बोले वरदान तो किसी एक वस्तु का लिया जाता है,किन्तु आपने तो एक साथ कई वस्तुयें मांगी है,आपकी भक्ति से प्रसन्न होने के कारण मै आपके सभी वांछितों को सिद्धि करने का वरदान देता है,तब से इस सिद्धि विनाकय व्रत का नाम सिद्धि विनायक पड़ा क्योंकि सभी के कामों को सिद्धि करने के कारण इसे सिद्धि विनायक कहा जाता है.!
-:’श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र’:-
मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् ।
कलाधरावतंसकं विलासिलोक रक्षकम् ।
अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकम् ।
नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ 1 ॥
नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरम् ।
नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्ढरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम् ।
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ 2 ॥
समस्त लोक शङ्करं निरस्त दैत्य कुञ्जरम् ।
दरेतरोदरं वरं वरेभ वक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् ।
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ 3 ॥
अकिञ्चनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनम् ।
पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।
प्रपञ्च नाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणम् ।
कपोल दानवारणं भजे पुराण वारणम् ॥ 4 ॥
नितान्त कान्ति दन्त कान्ति मन्त कान्ति कात्मजम् ।
अचिन्त्य रूपमन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम् ।
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ 5 ॥
महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं ।
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम् ।
समाहितायु रष्टभूति मभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ 6 ॥
नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook पर प्राप्त कर सकते हैं.!