Vivasvat Saptami: विवस्वत सप्तमी

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on email
Share on print

Vivasvat Saptami: नमो नारायण …..आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को विवस्वत सप्तमी के रुप में मनाई जाती है. इस वर्ष 2023 में विवस्वत सप्तमी रविवार 25 जून के दिन हैं,इस दिन सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व बताया जाता है. सूर्य के अनेकों नाम हैं जिनमें से एक नाम विवस्वत भी कहलाता है. प्रत्येक वर्ष की सप्तमी में सुर्य के पूजन की तिथि के लिए भी अत्यंत शुभदायक मानी गई है. ऎसे में आषाढ़ मास की सप्तमी के दिन भी सूर्य पूजन का विधान रहा है.!

-:”Vivasvat Saptami: विवस्वत सप्तमी कथा”:-

वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार होता है. इस पर कथा भी प्राप्त होती है. इस कथा को सुनने वाले परीक्षित थे. परीक्षित को शुकदेव जी ने सत्यव्रत की कथा सुनाते हैं – सत्यव्रत नाम के एक बड़े उदार राजा थे वह नित्य धर्म अनुरुप आचरण करते थे. एक बार अपनी तपस्या के दौरान वह जब कृतमाला नदी में खड़े होकर तर्पण का कार्य कर रहे होते हैं तभी उस समय के दौरान उनके हाथ में एक मछली आ जाती है. सत्यव्रत ने अपने हाथों में आई उस मछली को जैसे ही जल में छोड़ने का प्रयास किया उस मछली ने सत्यव्रत को ऎसा नहीं करने का आग्रह किया. मछली की वेदना सुन कर राजा सत्यव्रत ने उसके जीवन की रक्षा करने का प्रण किया. मछली को अपने कमण्डल पात्र के जल में रख दिया और उसे अपने साथ ले आए.!

लेकिन एक दिन में ही वह मछली आकार में इतनी बढ़ जाती है कि उस कमण्डल पात्र में समा ही नहीं पाती है. ऎसे में मछली राजा से पुन: आग्रह करती है की वह उसे यहां से निकाल कर किसी ओर स्थान में रखें. राजा सत्यव्रत ने मछली को उस पात्र से निकालकर एक बड़े पानी से भरे घड़े में डाल दिया. पर राजा के देखते ही देखते वह मछली उस घड़े में भी नहीं समा पाई और आकार में अधिक बढ़ गई. वह राजा से फिर से अपने लिए किसी सुखद स्थान की मांग करती है. इसके बाद राज ने उस मछली को घड़े से निकाल कर सरोवर में डाल देते हैं. मछली का आकार वहां भी बढ़ जाता है और सरोवर में भी पूरी नहीं आ पाती है. ऎसे में राजा सत्यव्रत उसे अनेक बड़े-बड़े सरोवरों में डालते हैं लेकिन मछली का आकार किसी भी सरोवर में नहीं समा पाता है. अंत में राजा उस मछली को समुद्र में डाल देते हैं.!

पर मछली समुद्र से भी विशाल हो जाती है. अंत में राजा को उस मछली को प्रणाम करते हुए कहते हैं की – “मैने आज तक ऎसा जीव नहीं देखा आप कोई सामान्य जीव नहीं हैं कृप्या करके आप मुझे अपना भेद बताएं और मुझे दर्शन दीजिये”. सत्यव्रत की निष्ठा को देख भगवान श्री विष्णु उसे दर्शन देते हैं ओर कहते हैं की आज से ठीक सात दिन बाद पृथ्वी पूर्ण रुप से जल मग्न हो जाएगी अर्थात जल में डूब जाएगी इसलिए मै तुम्हें यह कार्य सौंपने आया हूं की तुम ऋषियों मुनियों और सभी महत्वपूर्ण वस्तुओं जीवों वनस्पतियों को अपने साथ लेकर तैयार कर लीजिये. आज से सातवें दिन बाद तीनों लोक प्रलय के समुद्र में डूबने लगेंगे. तब तुम्हारे पास एक बहुत बड़ी नौका आयेगी उस नौका में तुम समस्त प्राणियों, वस्तुओं और सप्तर्षियों के साथ लेकर उस नौका में चढ़ जाना.तब मैं इसी मछली रूप में वहा आ उपस्थित हो जाउंगा. तब तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग में बांध देना. इतना कहकर श्री विष्णु अंतर्ध्यान हो जाते हैं.!

प्रभु के कहे वचन अनुसार ही सत्यव्रत ने वही किया है. तब सातवें दिन प्रलय आती है और सत्यव्रत ऋषियों समेत नौका में बैठा जाते हैं और मछली स्वरुप जब विष्णु भगवान मछली का रुप लिए वहां आते हैं तो वह उनके सींग पर उस ना व को बांध देते हैं और नाव में ही बैठकर प्रलय का अंत होता है.!
यही सत्यव्रत वर्तमान में महाकल्प में विवस्वान या वैवस्वत (सूर्य) के पुत्र श्राद्धदेव के नाम से विख्यात हुए और वैवस्वत मनु के नाम से भी जाने गए. सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु ही मनु स्‍मृति के रचयिता है. नव ग्रहों के राजा सूर्य देव की उपासना की परंपरा में विवस्वत सप्तमी का भी बहुत महत्व है. प्राचीन काल से ही इस दिन सूर्य के इस स्वरुप का पूजन होता आता रहा है.!

-:”Vivasvat Saptami: विवस्वत सप्तमी पूजा”:-

विवस्वत सप्तमी के दिन सूर्यदेव का पूजन करने से सभी सुख और परेशानियां समाप्त होती हैं. स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए इस दिन अवश्य ही सूर्य देव का पूजन बहुत ही सकारात्मक होता है. सरकार की ओर से यदि कोई परेशानी मिल रही है या फिर कोई प्रोपर्टी से संबंधित अगर कोई मामला हो तो वह भी इस स्थिति में दूर हो सकता है.!
-:विवस्वत सप्तमी के दिन सूर्य उदय से पुर्व उठ्ना चाहिये.!
-:स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिये.!
-:सूर्य को ज्ल देते समय जल में रोली,अक्षत और चीनी व लाल फूल जल में डालकर अर्घ्य देना चाहिये!
-:’ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करना चाहिये.!
-;इस दिन सिफ मीठी वस्तुओं का सेवन करना चाहिए.!
-:हलवा बनाकर सूर्य देव को भोग लगाना चाहिए.!
-:आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ एवं सूर्याष्टक का पाठ करना चाहिए.!

-:”Vivasvat Saptami: विवस्वत सप्तमी महत्व”:-

विवस्वत के संदर्भ को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित होती हैं. वैदिक साहित्य में मनु को विवस्वत् का पुत्र माना गया है, एवं इसे ‘वैवस्वत’ नाम दिया गया है. सूर्य का संबंध इसके साथ जुड़ने कारण ही इस दिन सूर्य उपासना का भी बहत मह्त्व रहा है. इस दिन विवस्वत मनु का पूजन होता है. इस दिन मनु कथा का श्रवण किया जाता है. वैवस्वत मनु के नेतृत्व में सृष्टि का सूत्रपात होता है. इसी से श्रुति और स्मृति की परम्परा चल पड़ी. विवस्वत से ही सूर्य वंश का आरंभ होता है जिसमें श्री राम का जन्म हुआ जो विष्णु के अवतार स्वरुप पृथ्वी पर आते हैं.!

नोट :- अपनी पत्रिका से सम्वन्धित विस्तृत जानकारी अथवा ज्योतिष, अंकज्योतिष,हस्तरेखा, वास्तु एवं याज्ञिक कर्म हेतु सम्पर्क करें.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on email
Share on print
नये लेख