स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम।
मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी ।।
ॐ नमः शिवाय….एक हिन्दु तिथि में दो करण होते हैं.जब विष्टि नामक करण आता है तब उसे ही भद्रा कहते हैं.माह के एक पक्ष में भद्रा की चार बार पुनरावृति होती है.जैसे शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है और चतुर्थी व एकादशी तिथि के उत्तरार्ध में भद्रा होती है.!
कृष्ण पक्ष में तृतीया व दशमी तिथि का उत्तरार्ध और सप्तमी व चतुर्दशी तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा व्याप्त रहती है.!
-:’भद्रा में वर्जित कार्य’:-
मुहुर्त्त चिंतामणि और अन्य ग्रंथों के अनुसार भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है. जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाह संस्कार, गृह – प्रवेश, रक्षाबंधन, शुभ यात्रा, नया व्यवसाय आरंभ करना और सभी प्रकार के मंगल कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं.!
मुहुर्त्त मार्त्तण्ड के अनुसार भद्रा में किए गये शुभ काम अशुभ होते हैं. कश्यप ऋषि ने भद्रा का अति अनिष्टकारी प्रभाव बताया है. उनके अनुसार अपना जीवन जीने वाले व्यक्ति को कोई भी मंगल काम भद्राकाल में नहीं करना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति अनजाने में ही मंगल कार्य करता है तब उसके मंगल कार्य के सब फल खतम हो सकते हैं.!
-:’भद्रा में किए जाने वाले कार्य ‘:-
भद्रा में कई कार्य ऎसे भी है जिन्हें किया जा सकता है. जैसे अग्नि कार्य, युद्ध करना, किसी को कैद करना, विषादि का प्रयोग, विवाद संबंधी काम, क्रूर कर्म, शस्त्रों का उपयोग, आप्रेशन करना, शत्रु का उच्चाटन, पशु संबंधी कार्य, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य, शत्रु का दमन करना आदि कार्य भद्रा में किए जा सकते हैं.!
-:’भद्रा का वास’:-
मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है. चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में रहता है. कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में चंद्रमा के स्थित होने पर भद्रा पाताल लोक में होती है.!
भद्रा जिस लोक में रहती है वही प्रभावी रहती है. इस प्रकार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तभी वह पृथ्वी पर असर करेगी अन्यथा नही. जब भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फलदायी कहलाएगी.!
-:’भद्रा संबंधी परिहार’:-
यदि दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में आ जाए तब भद्रा का परिहार माना जाता है. भद्रा का दोष पृथ्वी पर नहीं होता है. ऎसी भद्रा को शुभ फल देने वाली माना जाता है.!
एक अन्य मतानुसार जब उत्तरार्ध की भद्रा दिन में तथा पूर्वार्ध की भद्रा रात में हो तब इसे शुभ माना जाता है. भद्रा दोषरहित होती है.!
यदि कभी भद्रा में शुभ काम को टाला नही जा सकता है तब भूलोक की भद्रा तथा भद्रा मुख-काल को त्यागकर स्वर्ग व पाताल की भद्रा पुच्छकाल में मंगलकार्य किए जा सकते हैं.!
-:’भद्रा पुच्छ और भद्रा मुख जानने की विधि’:-
भद्रा मुख :- मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की पांचवें प्रहर की पांच घड़ियों में भद्रा मुख होता है, अष्टमी तिथि के दूसरे प्रहर के कुल मान आदि की पांच घटियाँ, एकादशी के सातवें प्रहर की प्रथम 5 घड़ियाँ तथा पूर्णिमा के चौथे प्रहर के आदि की पाँच घड़ियों में भद्रा मुख होता है.!
ठीक इसी तरह कृष्ण पक्ष की तृतीया के आठवें प्रहर आदि की 5 घड़ियाँ भद्रा मुख होती है, कृष्ण पक्ष की सप्तमी के तीसरे प्रहर में आदि की 5 घड़ी में भद्रा मुख होता है. इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि का छठा प्रहर और चतुर्दशी तिथि का प्रथम प्रहर की पांच घड़ी में भद्रा मुख व्याप्त होता है.!
भद्रा पुच्छ :- शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के अष्टम प्रहर की अन्त की 3 घड़ी दशमांश तुल्य, भद्रा पुच्छ कहलाती है. पूर्णिमा की तीसरे प्रहर की अंतिम तीन घटी में भी भद्रा पुच्छ होती है.!
पाठकों के लिए एक बात ध्यान देने योग्य यह है कि भद्रा के कुल मान को 4 से भाग देने पर प्रहर आ जाता है, 6 से भाग देने पर षष्ठांश आता है और दस से भाग देने पर दशमांश प्राप्त हो जाता है.!
-:’पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा कौन थी.?
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्य देव की पुत्री तथा शनिदेव की बहन का नाम भद्रा है, भविष्यपुराण में कहा गया है की भद्रा का प्राकृतिक स्वरूप अत्यंत भयानक है इनके उग्र स्वभाव को नियंत्रण करने के लिए ही ब्रह्मा जी ने इन्हें कालगणना का एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया,कहा जाता है की ब्रह्मा जी ने ही भद्रा को यह वरदान दिया है कि जो भी जातक/व्यक्ति उनके समय में कोई भी शुभ /मांगलिक कार्य करेगा,उस व्यक्ति को भद्रा अवश्य ही परेशान करेगी,इसी कारण वर्तमान समय में भी ज्योतिषी तथा गृह के बुजुर्ग भद्रा काल में शुभ कार्य करने से मना करते है,ऐसा देखा भी गया है की इस काल में जो भी कार्य प्रारम्भ किया जाता है वह या तो पूरा नही होता है या पूरा होता है तो देर से होता है.!
-:’भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने का उपाय’:-
भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने के लिए मनुष्य को भद्रा नित्य प्रात: उठकर भद्रा के बारह नामों का स्मरण करना चाहिए,विधिपूर्वक भद्रा का पूजन करना चाहिए,भद्रा के बारह नामों का स्मरण और उसकी पूजा करने वाले को भद्रा कभी परेशान नहीं करतीं,ऐसे भक्तों के कार्यों में कभी विघ्न नहीं पड़ता.!
-:’भद्रा के बारह नाम’:-
01,धन्या
02,दधिमुखी
03,भद्रा
04,महामारी
05,खरानना
06,कालरात्रि
07,महारुद्रा
08,विष्टि
09,कुलपुत्रिका
10,भैरवी
11,महाकाली
12,असुरक्षयकारी
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