ॐ विश्वकर्मण्ड्ये नमः….महादेव ने ब्रह्मा,विष्णु को अवतरित कर सृष्टि के सृजन,पालन की जिम्मेदारी सौंपी,इस जिम्मेदारी के निर्वाहन हेतु ब्रह्मा ने अपने वंशज देव शिल्पी श्री विश्वकर्मा जी को आदेश किया,जिन्होंने तीनो लोकों का निर्माण किया,भगवान विश्वकर्मा की महत्ता इस बात से समझी जा सकती है कि उनके महत्व का वर्णन ऋग्वेद में 11 ऋचाएं लिख कर किया गया है,उनकी अनंत व अनुपमेय कृतियों में सतयुग में स्वर्गलोक, त्रेतायुग मे लंका, द्वापर में द्वारका, कलयुग में जगगन्नाथ मंदिर की विशाल मूर्ति आदि हैं.!
-:विश्वकर्मा पूजा का आध्यात्मिक महत्व:-
जिसकी सम्पूर्ण सृष्टि और कर्म व्यापार है वह विश्वकर्मा है,सहज भाषा मे यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी कर्म सृजनात्मक है, जिन कर्मो से जीव का जीवन संचालित होता है,उन सभी के मूल में विश्वकर्मा है,अतः उनका पूजन जहां प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक ऊर्जा देता है वहीं कार्य में आने वाली सभी अड़चनों को खत्म करता है.!
-:17 सितंबर को ही क्यों होता है पूजन:-
वर्ष 2023 में भाद्रपद मास के अंतिम तिथि अर्थात 17 सितम्बर को पड़ेगी,भारत के कुछ भाग में यह मान्यता है कि अश्विन मास के प्रतिपदा को विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लगभग सभी मान्यताओं के अनुसार यही एक ऐसा पूजन है जो सूर्य के पारगमन के आधार पर तय होता है। इस लिए प्रत्येक वर्ष यह 17 सितम्बर को मनाया जाता है..!
–:पूजा के लिए शुभ मुहूर्त्त:–
इस वर्ष वृश्चिक लग्न जो कि सुबह 07:51 बजे से 12:57 तक है, विशेष लाभकारी व सफलतादायी है, क्योंकि मंगल पराक्रम भाव में उच्च का बैठा है.!
–: भगवान विश्वकर्मा पूजन विधि :–
सर्वप्रथम श्री विश्वकर्मा जी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी,रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि की व्यवस्था कर लें। इसके बाद फैक्ट्री, वर्कशॉप, आॅफिस, दुकान आदि के स्वामी को स्नान करके सपत्नीक पूजा के आसन पर बैठना चाहिए,कलश को अष्टदल की बनी रंगोली जिस पर सतनजा हो रखें। फिर विधि—विधान से क्रमानुसार स्वयं या फिर अपने पंडितजी के माध्यम से पूजा करें,ध्यान रहे कि पूजा में किसी भी प्रकार की शीघ्रता भूलकर न करें…!
-:भगवान विश्वकर्मा जी ने बनाई थी सोने की लंका और स्वर्ग लोक:–
17 सितंबर 2023 को विश्वकर्मा जयंती है,इस दिन देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है,पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को देव शिल्पी कहा जाता है,ऐसी मान्यता है सभी पौराणिक रचनाओं का निर्माण स्वयं इन्हींने किया था,देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा का जन्म देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है,भगवान विश्वकर्मा ने समस्त अस्त्र, शस्त्र और भवन का निर्माण किया था,भगवान विश्वकर्मा ने सोने की लंका, पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज, भगवान शिव का त्रिशूल, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगर और भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका को बनाया था,
कहा जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाएं, भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं,भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है,पौराणिक युग के अस्त्र और शस्त्र, भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित हैं,वज्र का निर्माण भी उन्होंने ही किया था,माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था.!
भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के बारे में विचार किया,इसकी जिम्मेदारी शिवजी ने भगवान विश्वकर्मा दी तब भगवान विश्वकर्मा ने सोने के महल को बना दिया,इस महल की पूजा करने के लिए भगवान शिव ने रावण का बुलाया। लेकिन रावण महल को देखकर इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने पूजा के बाद दक्षिणा के रूप में महल ही मांग लिया,भगवान शिव ने महल को रावण को सौंपकर कैलाश पर्वत चले गए।इसके अलावा भगवान विश्वकर्मा ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगर का निर्माण भी किया था,कौरव वंश के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था.!
भगवान विश्वकर्मा में किसी बेजान वस्तु में जान डालना की अद्भुत कला थी,वर्तमान समय में इस कला को इंजीनियर का दर्जा दिया जाता हैं,पूर्व और उत्तर भारत में विश्वकर्मा पूजन हर साल 17 सितम्बर को मनाया जाता है,इस दिन सभी कार्यस्थलों, फैक्टरियों, कम्पनियों आदि में मशीनों, औजारों आदि की पूजा की जाती है,ऐसा कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा, एक देवता थे जिन्होने ब्रह्माण्ड को बनाया। वह भगवान ब्रह्म्देव के पुत्र थे और ईश्वर के रहने वाले सभी धार्मिक स्थानों का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था,ईश्वर के उड़ने वाले विमानों का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था, ईश्वरों के सभी शस्त्रों को भी विश्वकर्मा देवता ने बनाया था,भगवान विश्वकर्मा आज के युग की भाषा में इंजीनियर थे.!
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस समस्त ब्रह्मांड की रचना भी विश्वकर्मा जी के हाथों से हुई है,ऋग्वेद के 10वे अध्याय के 121वे सूक्त में लिखा है कि विश्वकर्मा जी के द्वारा ही धरती, आकाश और जल की रचना की गई है,विश्वकर्मा पुराण के अनुसार आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की.।
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