नमो नारायण……कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी बहुत ख़ास और शुभ मानी जाती है,इस दिन उत्तर भारत और मध्य भारत में कूष्माण्डा नवमी/आरोग्य नवमी/अक्षय नवमी/आंवला नवमी का पर्व मनाया जाता है,जबकि दक्षिण और पूर्व भारत में इसी दिन जगद्धात्री पूजा का पर्व मनाया जाता है,वर्ष 2023 में 21 नवम्बर को यह व्रत संपन्न किया जाएगा,मान्यता है कि इस दिन अच्छे कार्य करने से अगले कई जन्मों तक हमें इसका पुण्य फल मिलता रहेगा,धर्म ग्रंथो के अनुसार आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ पर भगवान विष्णु एवं शिव जी वास करते हैं,इसलिए इस दिन सुबह उठकर इस वृक्ष की सफाई करनी चाहिए,साथ ही इस पर दूध एवं फल चढ़ाना चाहिए,पुष्प अर्पित करने चाहिए और धूप-दीप दिखाना चाहिए,शास्त्रों के अनुसार आंवला नवमी या अक्षय नवमी उतनी ही शुभ और फलदायी है जीतनी की वैशाख मास की अक्षय तृतीया……!
कूष्माण्डा नवमी सिद्धि प्रदान करने वाली होती है.इसके पूजन से समस्त रोग-शोक दूर हो जाते हैं भक्त को दैवीय आशिर्वाद प्राप्त होता है.कूष्माण्डा नवमी पूजा आयु में वृद्धि करने वाली और व्यक्ति को मान सम्मान और यश प्रदान करती है.!
“या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता.! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
यह मंत्र माता के स्वरूप को दर्शाता है.सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में देवी भक्त के समस्त पापों का नाश करती हैं. मंद मुस्कान से सृष्टि को उत्पन्न करने के कारण देवी को यह नाम प्राप्त होता है. जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ अत: यह देवी कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुई.!
–:कूष्माण्डा नवमी पूजन:–
दुर्गा का चौथा रुप हैं देवी कूष्माण्डा इस दिन पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी का ध्यान करने से आत्मिक संतुष्टि प्राप्त होती है. यही सृष्टि की आदिशक्ति है. इनका निवास सूर्य मण्डल के भीतर माना जाता है. सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति इन्ही में है, इनके शरीर की कान्ति और प्रभा देदीप्यमान है. अष्टभुजा में धनुष-बाण, कमण्डल, कमल, कलश, चक्र व गदा धारण किए हुए हैं. यह सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली हैं, सिंह पर सवारा माता दुष्टों का नाश करती हुई निर्बलों को भय मुक्त करती हैं.!
जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा रखता है उसे माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा करनी चाहिए और साधना में बैठना चाहिए. इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है.!
इस दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु” मे. द्वारा स्मरण करें. देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए.!
–:कूष्माण्डा स्तोत्र पाठ:–
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥
—:कूष्माण्डा कवच:—
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥
इस प्रकार आरती के पश्चात सभी को माता का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.इस दिन भोग में दही, हलवा बनाना श्रेयस्कर होता है. फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान माता को भेंट करना चाहिए पूजा पश्चात माँ और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है. फल, फूल, दूध, अगरबत्ती लेकर मां कूष्माण्डा की पूजा की जाती है. कूष्माण्डा नवमी में मंदिरों में श्रद्धालुओं को तांता लगना शुरू हो जाता है. श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं संकीर्तन मंडली भजन दुर्गा स्तुति पाठ किया जाता है. सच्चे मन से मां कूष्माण्डा की पूजा करने वाले को बल, बुद्धि व विद्या की बढ़ोतरी होती है व रोगों से छुटकारा मिलता है.!
-:कूष्माण्डा नवमी/आरोग्य नवमी/अक्षय नवमी/आंवला नवमी महत्व:-
—-:मान्यता है कि जो व्यक्ति कूष्माण्डा नवमी/आरोग्य नवमी/अक्षय नवमी/आंवला नवमी का व्रत रखता है अथवा पूजा करता है उसे असीम शांति मिलती है,उसका मन पवित्र होता है और वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है,इसलिए उसे बार-बार जन्म लेने की आवश्यकता नही होती है,वह अपने लक्ष्य को भली-भांति समझता है.!
—-:जो महिलाएं आंवला नवमी की पूजा करती हैं उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति होती है,वह दीर्घायु होता है और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है,वह अपने वंश का नाम रौशन करने वाला होता है,इसके अतिरिक्त इस पूजा से घर का वंश भी बढ़ता है..!
—-:कहते हैं आंवला नवमी की पूजा से पति-पत्नी के बीच रिश्ता बहुत ही मधुर होता है,दोनों के बीच आपसी तालमेल बहुत अच्छा रहता है,इसका एक वैज्ञानिक फायदा भी है। कहा जाता है कि ये आंवले के सेवन से गरिष्ठ भोजन जल्दी पच जाता है.!
—-:आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर ही भोजन करना चाहिए,मान्यता है कि इस दिन भोजन करते समय यदि आपकी थाली में आंवला या उसका पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ संकेत होता है,माना जाता है कि इससे आप वर्ष भर स्वस्थ्य रहेंगे.!
—–:अक्षय नवमी को कार्तिक शुक्ल नवमी भी कहते हैं,इसी दिन द्वापर युग का भी आरंभ हुआ था, इसके अतिरिक्त इस दिन भगवान विष्णु ने कुष्मांडक नामक असुर का वध किया था,तभी उसके रोम से कुष्मांड नामक बेल उत्पन्न हुई थी,इसलिए इस इस बेल का दान करने से बेहतर परिणाम मिलते है, इसके अतिरिक्त इस दिन तुलसी का विवाह भी कराना चाहिए.I
–: इस विधि से करें आंवला वृक्ष की पूजा :—
आंवला नवमी को सुबह स्नान कर दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल आदि लेकर इस तरह व्रत का संकल्प लें-
अद्येत्यादि अमुकगोत्रोमुक (अपना गोत्र बोलें) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा
श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये।
ऐसा संकल्प कर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ऊं धात्र्यै नम: मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके इन मंत्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-
पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
इसके बाद आंवले के पेड़ के तने में यह मंत्र बोलते सूत बाँधै
–
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।
इसके बाद कर्पूर या शुद्ध घी के दिए से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें –
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ही ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिए और अंत में स्वयं भी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए,एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू) लेकर उसके अंदर रत्न, सोना, चांदी या रुपए आदि रखकर निम्न संकल्प करें-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये।
इसके बाद योग्य ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कद्दू दे दें और यह प्रार्थना करें-
कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।
पितरों की शांति के लिए कंबल आदि ऊनी कपड़े भी योग्य ब्राह्मण को देना चाहिए,घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा,दानादि करने की भी परंपरा है अथवा गमले में आंवले का पौधा लगाकर घर में यह पूजा करनी चाहिए…।
–:विशेष:— आंवले खाने के 2 घंटे बाद तक दूध नहीं पीना चाहिए।
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